POCSO: पैंट की जिप खोलकर हाथ पकड़ना यौन शोषण नहींः बॉम्बे हाईकोर्ट

Bombay High Court बॉम्बे हाईकोर्ट ने वीरवार को कहा कि पॉक्सो एक्ट के तहत बच्ची का हाथ पकड़कर पैंट की जिप खोलना यौन शोषण के दायरे में नहीं आता। ये आईपीसी की धारा 354ए (आई) के तहत यौन उत्पीड़न के दायरे में आता है

By Sachin Kumar MishraEdited By: Publish:Thu, 28 Jan 2021 04:15 PM (IST) Updated:Thu, 28 Jan 2021 08:21 PM (IST)
POCSO: पैंट की जिप खोलकर हाथ पकड़ना यौन शोषण नहींः बॉम्बे हाईकोर्ट
पॉक्सो एक्ट में नहीं आता है लड़की का हाथ पकड़ना और जिप खोलनाः बॉम्बे हाईकोर्ट। फाइल फोटो

मुंबई, राज्य ब्यूरो। Bombay High Court: मुंबई उच्च न्यायालय (नागपुर पीठ) की न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला ने वीरवार को एक फैसला सुनाते हुए कहा कि पॉक्सो एक्ट के तहत बच्ची का हाथ पकड़कर पैंट की जिप खोलना यौन शोषण के दायरे में नहीं आता। ये आईपीसी की धारा 354ए (आई) के तहत यौन उत्पीड़न के दायरे में आता है। मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ की न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला ने एक 50 वर्षीय व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। सत्र न्यायालय ने उस व्यक्ति को 12 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ छेड़छाड़ का दोषी मानते हुए उसे पांच वर्ष की सजा सुनाई थी व उसके अपराध को यौन शोषण के गंभीर मामले की श्रेणी में रखा था।

यह शिकायत उक्त लड़की की मां ने दर्ज कराते हुए कहा था कि व्यक्ति ने अपनी पैंट की जिप खोलकर लड़की का हाथ पकड़ रखा था। पिछले सप्ताह 19 जनवरी को न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला ने ही यौन शोषण के एक और मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि किसी गतिविधि को यौन शोषण की श्रेणी में तभी माना जाएगा, जब त्वचा से त्वचा का संपर्क हुआ हो। सिर्फ जबरन छूना यौन शोषण की श्रेणी में नहीं आता। उनके उस फैसले की चौतरफा आलोचना शुरू होने के बाद बुधवार को सर्वोच्च न्यायालय ने उनके इस फैसले के अमल पर रोक लगा दी थी। अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा था कि मुंबई उच्च न्यायालय का यह फैसला उचित नहीं है।

50 वर्षीय लिबनस कुजूर को सत्र न्यायालय ने 12 वर्ष से कम उम्र की बच्ची के साथ छेड़छाड़ के मामले में पिछले वर्ष अक्टूबर में पांच वर्ष की सजा सुनाई थी। सत्र न्यायालय ने उसे आईपीसी की कई धाराओं के अलावा प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेज (पॉस्को) एक्ट की धाराओं के तहत भी दोषी करार दिया था। गनेडीवाला ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष उक्त व्यक्ति का पीड़ित लड़की के घर में जबरन घुसना तो साबित करने में कामयाब रहा है कि लेकिन वह यौन शोषण की बात साबित नहीं कर सका है। उनके अनुसार, पॉक्सो कानून के तहत दोषी पाए जाने के लिए यौनाचार की नीयत से शारीरिक संपर्क होना आवश्यक है।

प्रत्यक्षदर्शी, यानी लड़की की मां द्वारा लगाए गए आरोप के अनुसार, आरोपित के पैंट की जिप खोलना या नाबालिक लड़की का हाथ पकड़ने भर से यह आरोप सिद्ध नहीं होता। उच्च न्यायालय ने उसे आईपीसी की धारा 354ए (1) (आई), तथा पॉक्सो की धारा 12 के तहत ही दोषी माना है। पॉक्सो की धारा आठ व 10 के तहत उसे दोषी नहीं माना। 12 फरवरी, 2018 को उक्त मामले का आरोपित कुजूर पीड़ित लड़की के घर में जबरन घुस गया था। उस समय लड़की की मां घर से बाहर गई हुई थी। जब वह घर लौटी तो देखा कि कुजूर ने अपनी पैंट की जिप खोलकर लड़की का हाथ पकड़ रखा है। लड़की की मां ने कोर्ट को दिए अपने बयान में यह कहा कि कुजूर ने लड़की से अपने साथ सोने को भी कहा था।

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