इंदौर राउंड टेबल कांफ्रेंसः शहर को इन मुद्दों पर करना होगा फोकस
फीस तो प्राइवेट स्कूलों में एक मुद्दा है ही, लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण सुरक्षा है। जब कोई घटना होती है तो सभी जागरुक हो जाते हैं, लेकिन समय के साथ फिर ढर्रे पर लौट आते हैं।
इंदौर, नई दुनिया प्रतिनिधि। पहले हम जंगलों में रहते थे। वहां खाना भी उपलब्ध था और पीने के लिए पानी भी। सभी सुविधाएं उपलब्ध होने के बाद भी मानव जाति से जंगल से कूच किया और एक सभ्य समाज के निर्माण के लिए बढ़े। इसका सबसे मुख्य कारण था सुरक्षा। किसी भी शहर का सुरक्षित माहौल वहां रहने का सर्टिफिकेट होता है। यदि वर्तमान परिदृश्य में देखें तो महिलाओं के साथ अपराध बहुत बढ़े हैं। आज अधिकांश वर्किंग वुमंस हैं और वे अपने बच्चे-बच्चियों को केयर सेंटर या झूलाघर में छोड़ कर जाते हैं। महिलाओं को वर्कप्लेस पर अपने बच्चों को लाने की आजादी मिलना चाहिए। इसके साथ केयर सेंटर पर महिला कर्मचारी अधिक होना चाहिए। ऐसे में अपराध कम होंगे। पुलिस को भी क्राइम को हार्ड तरीके से देखना चाहिए। हर अपराधी के मन में पुलिस का खौफ बना रहना जरूरी है। उक्त विचार एआईजी सोनाली दुबे ने नईदुनिया और उसके सहयोग प्रकाशन जागरण समूह के अभियान 'माय सिटी माय प्राइड के तहत शनिवार को नईदुनिया कार्यालय में आयोजित राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि लोग अथॉरिटी को स्वीकार करने के बजाए चुनौती देना पसंद करते हैं। यदि पुलिस अधिकारी कोई नियम बनाता है तो उसे चुनौती देने के बजाए स्वीकारना चाहिए क्योंकि वह आपकी सुरक्षा के लिए ही किया जा रहा है। शहर की ट्रैफिक व्यवस्था के बारे में उन्होंने कहा कि जब हम हाइवे पर जाते हैं तो टोल देते हैं, लेकिन शहर के आंतरिक मार्गों पर नहीं। यहां भी लोगों से शुल्क लेना चाहिए। जब शुल्क देंगे तो उन्हें जिम्मेदारी भी महसूस होगी। कॉन्फ्रेंस में शहर में विभिन्न् क्षेत्रों में सामाजिक कार्य कर रहे वक्ताओं ने भी शहर को बेहतर बनाने और समस्याओं को सुलझाने की दिशा में अपने सुझाव रखे।
सबसे ज्यादा रोजगार देती है होटल इंडस्ट्री
होटल इंडस्ट्री सबसे ज्यादा रोजगार देती है। यहां पर कम स्किल सेट वाले लोगों को भी आसानी से रोजगार मिलता है। यदि सरकार इस इंडस्ट्री को ध्यान में रखते हुए स्किल डेवलपमेंट सेंटर खोले तो हम एसोसिएशन की ओर से मदद के लिए तैयार हैं। इससे बेरोजगारी की समस्या बहुत हद तक सुलझ सकती है। एसोसिएशन से जुड़े कई होटल्स ने ग्रीन बेल्ट बनाए हैं। इसके साथ ही आहार एप के जरिए होटल में बचने वाले खाने को रोजाना हजारों लोगों तक पहुंचाया जा रहा है। कचरे के निपटान के लिए भी हमने प्लांट स्थापित किए हैं। सरकार की लाइसेंस पॉलिसी लचर है। एक साल के लिए ही लाइसेंस मिलता है और इसके बाद फिर महीने भर की प्रोसेस से गुजरना होता है। यह कम से कम 5 साल के लिए होना चाहिए।
सुमित सुरी, अध्यक्ष, इंडियन होटेलियर्स एसोसिएशन, इंदौर चैप्टर
ट्रैफिक के लिए बने पॉलिसी
जनप्रतिनिधि होने के नाते लोगों की मूलभूत समस्याएं सुलझाना हमारी प्राथमिकता है। इंदौर में ट्रैफिक की बहुत ज्यादा समस्या है। हम सभी हर दिन इसका सामना करते हैं। शहर में होने वाले जुलूस और रैली के लिए पॉलिसी बनना चाहिए। इनके लिए एक तय मार्ग हो और साथ ही समय भी तय हो। हमने वार्ड के सरकारी स्कूल में जनसहयोग से प्राइवेट स्कूलों जैसे स्मार्ट क्लासरूम, डायनिंग रूम, प्ले रूम आदि बनवाए हैं। साथ ही जनता क्लीनिक में लोगों को निशुल्क दवाई मिल रही हैं। इसके साथ महिलाओं को 5 रुपए में 6 सेनेटरी नैपकिन देते हैं। यदि सभी लोग इस तरह के प्रयास करें तो शहर का विकास निश्चित है। सामूहिक प्रयासों से ही हम स्वच्छता में नंबर वन और देश में रहने लायक शहरों में आठवें नंबर पर आए हैं। यह प्रयास बने रहना चाहिए।
दीपक जैन, पार्षद, वार्ड क्रमांक 6
सरकारी स्कूलों को बनाना होगा बेहतर
फीस तो प्राइवेट स्कूलों में एक मुद्दा है ही, लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण मुद्दा सुरक्षा है। जब कोई घटना होती है तो सभी जागरुक हो जाते हैं, लेकिन समय के साथ फिर उसी ढ़र्रे पर लौट आते हैं। हमें बच्चों को दूर-दूर स्कूल भेजना पड़ता है। ज्यादातर स्कूल बायपास क्षेत्र में बने हैं। शहर के मध्य में स्कूलों को विकसित करना होगा। इससे बच्चों को एक से दो घंटे स्कूल जाने के लिए ट्रैवल नहीं करना होगा। दूसरी महत्वपूर्ण बात क्वालिटी एजुकेशन है। सरकारी स्कूलों को भी ऐसा डेवलप किया जा सकता है जहां क्वालिटी एजुकेशन मिले। इससे प्राइवेट स्कूलों पर दबाव कम होगा। इसके लिए इंडस्ट्री के लीडर्स को आगे आना चाहिए। सरकारी स्कूलों में इंफ्रास्ट्रक्चर सरकार मुहैया करा देती है। हमें इसके मैनेजमेंट में मदद कर क्वालिटी सुधारना चाहिए।
अनुरोध जैन, प्रेसीडेंट, पैरेंट टीचर एसोसिएशन
तय हो फार्मेसी कंपनियों की जवाबदेही
हॉस्पिटल में दो तरह के मरीज आते हैं। एक जो बीमा पॉलिसी धारक हैं और दूसरे वे जिनका कोई बीमा नहीं है और इलाज के लिए पर्याप्त आर्थिक साधन भी नहीं हैं। हमें इस दूसरे तबके पर ध्यान देने की जरूरत है। सरकार कई योजनाएं ला रही है, लेकिन इनके क्रियान्वयन में प्राइवेट हॉस्पिटल्स की सहभागिता भी जरूरी है। स्कूलों में मिलने वाले आरटीई की तरह प्राइवेट हॉस्पिटल्स में भी कुछ बेड गरीबों के लिए आरक्षित होना चाहिए। इसमें वे किसी से मदद की गुहार लगाए बिना अधिकार के साथ अच्छा इलाज ले सकेंगे। दूसरी ओर हमें फार्मा कंपनियों के सामाजिक दायित्व पर भी ध्यान देना होगा। इनके द्वारा सीएसआर के क्षेत्र में कुछ खास नहीं किया जा रहा है। दवाओं के दाम को लेकर भी पॉलिसी बनाना जरूरी है।
डॉ. प्रमोद नेमा, एमडी, यूनिक हॉस्पिटल
कंपनियों और सामाजिक संस्थाओं के बीच बने सेतू
कंपनियों के लिए सीएसआर एक्टिविटी अनिवार्य है। वे सामाजिक क्षेत्र में काम भी करना चाहती हैं। ऐसे में एक ऐसा ब्रिज बनना चाहिए कि सामाजिक संस्थाएं और प्राइवेट कंपनियां मिलकर सामाजिक कार्य करें। कंपनी राशि उपलब्ध कराए और सामाजिक संस्था उसे सही जगह पर इस्तेमाल करे। इसकी मॉनिटरिंग कलेक्टर भी कर सकते हैं। इसका सबसे बेहतर इस्तेमाल सरकारी स्कूलों को बेहतर बनाने में हो सकता है। हम मेंटली चैलेंज्ड बच्चों के लिए काम करते हैं। यहां पर सरकारी नियम के अनुसार हर पांच साल में आईक्यू सर्टिफिकेट देना होता है। मेंटली चैलेंज्ड बच्चे का हर उम्र में आईक्यू एक जैसा ही रहेगा, फिर इस तरह के नियमों की क्या जरूरत है। इन बच्चों को रेलवे आरक्षण से लेकर अन्य सुविधाओं के लिए भटकना होता है।
दिवाकर शाह, पदाधिकारी, गुजराती समाज
स्मार्ट सिटी के नाम पर न हटाएं ठेले
इंदौर की पहचान यहां के खानपान से है। पूरे हिंदुस्तान में यहां सबसे शुद्ध खाना मिलता है फिर वह कोई बड़ा होटल हो या एक छोटा सा ठेला। स्मार्ट सिटी के नाम पर ठेलों को हटाया नहीं जाना चाहिए। प्रशासन के पास बहुत जमीन है। थोड़े-थोड़े जगह के अंतराल में बैरिकेट्स लगाकर थोड़ी जगह उपलब्ध कराना चाहिए जिससे वहां 30 से 40 ठेले खड़े हो सकें। क्षेत्र निश्चित होने से खाद्य विभाग के लिए भी इनकी मॉनिटरिंग और जांच आसान होगी। इसके साथ ही यदि कोई कॉमन पैकेजिंग यूनिट बने तो कई छोटे व्यापारी अपने उद्योग को बड़े मंच पर ला सकें। फूड इंडस्ट्री में छोटे स्तर पर काम कर रहे लोगों को यदि यह सुविधा मिलेगा तो वे अपना सामान तैयार कर यहां पैकेजिंग कर इसे निर्यात कर सकेंगे और व्यापार को बढ़ावा मिलेगा।
प्रकाश राठौर, डायरेक्टर, अपना समूह
वरिष्ठ नागरिकों की समस्या का तत्काल समाधान हो
शहर में यदि वरिष्ठ नागरिकों को सम्मान नहीं मिलेगा तो इसका स्मार्ट सिटी बनना भी संभव नहीं है। सीनियर सिटीजन एक्ट के अनुसार यदि कोई वरिष्ठ नागरिक अकेला रहता है तो सरकार की जिम्मेदारी है कि वह उसका ख्याल रखे। पुलिस को किसी भी एक सामाजिक संस्था के साथ महीने में कम से कम एक बार वरिष्ठ नागरिक के पास जाकर उसकी परेशानियां सुनना चाहिए। यह पुलिस के लिए अनिवार्य है, लेकिन इस पर अमल नहीं हो रहा है। आज वरिष्ठ नागरिकों के साथ जटिल समस्याएं हैं। हर घर की समस्याएं हमारे फोरम में आते हैं। हम नियमित वरिष्ठ नागरिकों की समस्या सुनकर काउंसलिंग के जरिए समाधान करते हैं। पुलिस का व्यवहार भी वरिष्ठ नागरिकों के प्रति संतोषजनक नहीं है। उनकी समस्याओं का तुरंत निदान करना चाहिए।
एनएस जादौन, वरिष्ठ नागरिक फोरम
लघु उद्योगों को देना होगा बढ़ावा
लघु उद्योग सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला क्षेत्र है। यह बड़ी कंपनियों से कई मायनों में अलग है। यहां पर मालिक और कर्मचारी के बीच एक मानवीय रिश्ता होता है, जबकि बड़ी कंपनियों में मालिक अपने कर्मचारी के बारे में खुद ज्यादा नहीं जानते हैं। यदि हम हमारे देश का इतिहास के पन्ने पलटकर देखें तो देश के विकास में सबसे बड़ा योगदान लघु उद्योगों का ही रहा है। इंदौर व्यापार की दृष्टि से प्रदेश का सबसे बड़ा केंद्र है और सबसे ज्यादा लघु उद्योग यहीं पर हैं। हाल की परिस्थितियों को देखते हुए लघु उद्योगों को संरक्षित करना बहुत महत्वपूर्ण है। यदि लघु उद्योगों को बढ़ावा मिला तो इसका अप्रत्यक्ष लाभ अन्य तरीकों से पूरे शहर को मिलेगा।
संजय पटवर्धन, स्टेट सेक्रेटरी, लघु उद्योग भारती
ब्रांडेड के बजाए जेनरिक दवाओं के लिए बने नियम
कुछ लोगों की वजह से एनजीओ के प्रति लोगों की भावना में बदलाव आया है। इस क्षेत्र में कुछ लोग गलत हो सकते हैं, लेकिन सभी नहीं। यदि सरकार कोई योजना बनाती है तो इसका क्रियान्वयन में एनजीओ की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। सभी एनजीओ को अवेयरनेस बढ़ाने की दिशा में सबसे पहले काम करना चाहिए। लोगों को पता ही नहीं होता है कि सरकार ने उनके हित में क्या योजना पेश की है। दूसरी ओर स्वास्थ्य सेवाओं की दिशा में काम करना जरूरी है। सरकार को ऐसा नियम लाना चाहिए कि ब्रांडेड के बजाए जेनरिक दवाएं ही लिखी जाएं। जेनरिक दवाओं के लिए कोई सर्टिफिकेशन हो। पैरामेडिकल सेवाएं भी बहुत महंगी हैं और स्टाफ की भी कमी है। इसलिए इन्हें भी बढ़ावा देना चाहिए और संस्थाआंेकी मदद से क्योर लिविंग सेंटर बनाने चाहिए।
आरके शर्मा, सचिव, अहिल्या प्रांतीय वरिष्ठ जन संगठन
इंडस्ट्री और संगठनों को साथ जोड़े सरकार
इंडस्ट्री में रोजगार बहुत है, लेकिन जो आते हैं वे काम करना नहीं चाहते हैं। सरकार को चाहिए कि इंडस्ट्री और संगठन को एक साथ जोड़ें, इससे रोजगार भी बढ़ेगा और इंडस्ट्री भी। सीएसआर का भी सदुपयोग नहीं हो पा रहा है। दूसरी ओर शहर के मुख्य जगहों पर बहुत की गलत तरीके से विकास हो रहा है। नवलखा, भंवरकुआ, गीता भवन आदि क्षेत्रों को देखें तो यहां पर हॉस्टल ही हॉस्टल बना दिए हैं। हर कोई हॉस्टल खोल लेता है, लेकिन सुरक्षा के नाम पर कुछ भी नहीं करता है। इससे व्यभिचार भी बढ़ा है। इस पर लगाम कसने की भी बहुत ज्यादा जरूरी है।
महेश गुप्ता, संभागीय अध्यक्ष, लघु उद्योग भारती