हरी-भरी वादियों से घिरे पलक्कड़ जिले का है अहम योगदान कर्नाटक के संगीत में

केरल का पलक्कड़ हरियाली और सांस्कृतिक की वजह से मशहूर है। कर्नाटक संगीत में जिले का अहम योगदान है। चलते हैं इसके सफर पर...

By Priyanka SinghEdited By: Publish:Fri, 08 Mar 2019 04:23 PM (IST) Updated:Sun, 10 Mar 2019 08:00 AM (IST)
हरी-भरी वादियों से घिरे पलक्कड़ जिले का है अहम योगदान कर्नाटक के संगीत में
हरी-भरी वादियों से घिरे पलक्कड़ जिले का है अहम योगदान कर्नाटक के संगीत में

इस जिले में कदम रखते ही नीलगिरि की पहाडिय़ों का अलग रंग लुभाने लगता है। उसकी ऊंचाई कम पडऩे लगती है, पहाडि़यों पर रस्सी के समान लिपटी सड़कों के घुमावदार मोड़ कम होने लगते हैं। सड़कों के आसपास खुले खेत दिखने लगते हैं। मैदानी इलाकों की तरह आम के बाग दिखने लगते हैं। हरियाली की नई तस्वीर सामने आती है। दूर-दूर तक फैले धान के खेत। उन खेतों से उठती धान की भीनी-भीनी खुशबू अपने पास की हवा के सहारे चारों ओर बिखर जाती है। केरल में हरियाली बहुत है लेकिन हरियाली का यह अनुभव बिल्कुल अलग है। फसल की हरियाली में मानव और प्रकृति दोनों की खुशी दिखती है। केरल का एक बड़ा हिस्सा पहाड़ी है इसलिए पहाडिय़ां जब अपना स्थान खेतों को देते हुए पीछे हटने लगती हैं तो दूर तक प्रकृति का खुला हुआ रूप दिखता है। इस कृषि प्रधान जिले की यही सुंदरता है। धान के उन खेतों की मेड़ पर ताड़ और नारियल के पेड़ खड़े मिलते हैं। मेड़ पर उन्हें सिर उठाए देखकर ऐसा लगता है, जैसे वे इन खेतों की पहरेदारी कर रहे हों।

इतिहास के झरोखे से

केरल के इस इलाके का अपना इतिहास विस्तृत रहा है। इसका फैलाव आरंभिक प्रस्तर युग से चलकर ब्रिटिश भारत तक जाता है। बीच में बहुत से राजा और राजवंश आते हैं जो इस उपजाऊ जमीन को अपने नियंत्रण में रखते हैं और इस पर अपनी छाप छोडते हैं। इसी क्रम में जमोरिन की उपाधि रखने वाले कालीकट के शासक ने स्थानीय राजा पर आक्रमण कर दिया। स्थानीय राजा ने मैसूर के राजा हैदर अली की सहायता ली। हैदर अली के बेटे टीपू सुल्तान की अंग्रेजों के हाथों जब हार होने के बाद यहां भी ब्रिटिश शासन का दखल बढ़ गया।

पालघाट दर्रा बढ़ाता है शोभा

पलक्कड़ को पालघाट के नाम से भी जाना जाता है। जो इसी नाम के अपने दर्रे के लिए प्रसिद्ध है। पालघाट दर्रा, पश्चिमी घाट की पहाडिय़ों में एक 32 किलोमीटर चौड़ा खाली स्थान है। पश्चिमी घाट की पहाडिय़ों के दो अलग-अलग हिस्सों के बीच का यह स्थान केरल और तमिलनाडु की सीमा पर है। दर्रे के उत्तर में नीलगिरि और दक्षिण में अन्नामलाई की पहाडि़यां हैं। लंबे समय तक यह मुख्य रास्ते की तरह प्रयोग में आता रहा इसलिए यह कभी व्यापार के केंद्र के रूप में भी प्रसिद्ध रहा। पश्चिमी घाट की पहाडि़यों के बीच के इस दर्रे के कारण ही केरल और तमिलनाडु के एक बड़े इलाके में भारी वर्षा होती है। स्थानीय निवासियों का मानना है कि पूरब से आने वाली गरम और काली हवा उन्हें काला बनाती है। इस हवा को वे 'करींपंकाट' कहते हैं। इसका अर्थ होता है 'ताड़ या खजूर के पेड़ों की हवा'।

दक्षिण का एकमात्र रॉक गार्डन

यहां नीलगिरि की अपेक्षाकृत कम ऊंची पहाडि़यों पर बना यह बांध आसपास के इलाके के खेतों को पानी देने के अतिरिक्त बिजली भी पैदा करता है। वैसे, यह स्थान अपने आप में एक बड़ा पर्यटक स्थल भी है। यहां लोग पिकनिक मनाने और छुट्टियों में सैर करने आते हैं। जब आसमान में मेघाछन्न बादलों के बीच सूरज की अठखेलियां चलती रहती हैं, तब लबालब भरे बांध के पास बिछा बड़ा-सा पार्क अद्भुत सौंदर्य से भर उठता है। यह पार्क अपने आप में अनूठा है। यह दक्षिण भारत का एकमात्र 'रॉक गार्डन' है। समूचे पार्क को टूटी हुई चूडि़यों टूटे टाइल्स, प्लास्टिक और दूसरे अपशिष्ट पदाथरें से तैयार किया गया है। इसके सौंदर्य की कल्पना इसी से की जा सकती है कि इसके बीच से एक नहर बहती है जिस पर दो अलग-अलग स्थानों पर झूलने वाले पुल बने हुए हैं। यहां रोपवे है तो स्वीमिंग पुल भी। दरअसल, यह पूरा परिदृश्य पर्यटन और सिंचाई-बिजली परियोजना का अद्भुत समन्वय है जो देश के अन्य स्थानों के लिए भी एक मार्गदर्शक बन सकता है।

कानाइ की अनोखी कृति

मल्लमपुषा बांध के पास स्थित पार्क की सबसे अनोखी चीज है यक्षिणी की मूर्ति, जिसे 'मल्लमपुषा यक्षी' के नाम से जाना जाता है। स्थानीय शिल्पी कानाइ कुंहीरामन ने इस अद्भुत कलाकृति को बनाया है। केरल में जन्मे कानाइ ने पत्थरों को इस प्रकार तराशा है कि लगता है कि कालिदास के मेघदूत की यक्षिणी साकार हो उठी हो। उस पार्क के बीचोबीच बनी यह आकृति अलग से आकर्षित करती है। कला और साहित्य के जानकार इस कृति के महत्व और उसकी बारीकी देखने के लिए वहां जाते हैं। कानाइ ने अपनी कला से केरल के अनेक स्थानों के सौंदर्य को नया आयाम दिया लेकिन 'मल्लमपुषा यक्षी' उनकी पहचान बन गयी है।

आसपास कितनी खास जगहें

जैनामेडु है सदियों पुराना

पलक्कड़ रेलवे स्टेशन से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह जैन मंदिर केरल का सबसे प्रसिद्ध जैन मंदिर है। इस मंदिर को 500 साल से ज्यादा पुराना माना जाता है। ग्रेनाइट पत्थरों से बने इस मंदिर पर जैन तीर्थंकरों और यक्षिणियों की आकृति खुदी हुई है। यह मंदिर जैन तीर्थंकर चंद्रनाथस्वामी का है। इस मंदिर की एक विशेष बात इसे मलयालम साहित्य से भी जोड़ती है। प्रसिद्ध मलयालम कवि कुमारन आशान ने अपनी कविता 'वीनापूवु' इसी मंदिर के प्रांगण में लिखी थी।

नेल्लीयामपदी

यह जिला तमिल और मलयाली संस्कृति का संगम है इसलिए इस पर दोनों ही संस्कृतियों का गहरा प्रभाव है। केरल और तमिलनाडु की सीमा पर बसा नेल्लीयामपदी ऐसा हिल स्टेशन है जिसके बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है। यह स्थान पलक्कड़ से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके अलावा, आप शहर से कोयंबटूर, त्रिचूर, आदिरापल्ली और गुरवायुर आदि पर्यटक स्थलों पर भी जा सकते हैं।

कब और कैसे जाएं?

यह देश के अन्य सभी हिस्सों से जुड़ा हुआ है इसलिए यहां जाना बहुत आसान है। नजदीकी हवाई अड्डा कोयंबटूर है। वहां से आप एक से डेढ़ घंटे में पलक्कड़ पहुंच सकते हैं। शहर का अपना रेलवे स्टेशन भी है जो देश के रेल नेटवर्क से जुड़ा हुआ है। सड़क यातायात की सुविधा भी काफी अच्छी है। सरकारी और निजी दोनों ही प्रकार के वाहनों की भरमार है। सार्वजनिक परिवहन की स्थिति बहुत अच्छी है।

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