मिथिलांचल की यह पहचान, माछ, पान और मखान

मखाने का अपना कोई खास स्वाद नहीं होता लेकिन इससे बनने वाली सब्जी हो या खीर को खाकर एक बात तो तय है कि आप इसका स्वाद कभी नहीं भूलेंगे। खाने के अलावा पूजा-पाठ में भी इस्तेमाल होता है।

By Priyanka SinghEdited By: Publish:Fri, 05 Oct 2018 09:12 AM (IST) Updated:Sat, 06 Oct 2018 08:11 PM (IST)
मिथिलांचल की यह पहचान, माछ, पान और मखान
मिथिलांचल की यह पहचान, माछ, पान और मखान

पुष्पेश पंत

कुछ दिन पहले पटना के पड़ोस हाजीपुर में एक होटल प्रबंधन संस्थान में जाने का मौका मिला। हमारे मेजबान हमें बिहार के खानपान की कुछ अनजान, भुला दी गई चीजें चखाना चाहते थे। इनमें एक मखाने की खीर थी। इसे देखते ही बचपन याद आ गया जब व्रत उपवास के दिन यह फलाहारी थाली में खास जगह पाती थी। और सिर्फ बिहार में ही नहीं पूरे हिंदी जगत में! यह भी याद आया जब एक परहेजी वैश्य मित्र के घर पर मखाने मावे मटर मेवे की नमकीन सब्जी चखी थी।

गोरखपुर में एक साठे पर पाठे बुजुर्गवार ने अपनी अक्षुण्ण जवानी का राज खोलते हमें समझाया था कि यह कितना पौष्टिक पदार्थ है। वह रोज सुबह अपने नाश्ते में मखाने घी में भूंज कर खाते थे। प्रयोगप्रेमी एक युवा शेफ मखाने को चॉकलेट की पोशाक पहनाकर पेश कर चुके हैं। हम अपने मेजबान का दिल कैसे दुखाते उन्हें यह बताकर कि मखाने हमारे लिए उतने अपरिचित नहीं जितना वह सोच रहे हैं! जेएनयू, दिल्ली में दरभंगा से आए हमारे एक छात्र ने हमारे ज्ञान चक्षु बरसों पहले खोल दिए थे- 'मिथिलांचल की यह पहचान, माछ, पान और मखान!' इस क्षेत्र में मखाने सात्विक और पवित्र समझे जाते हैं और विवाह संस्कार, पूजा अर्चना में विशेषत: होते हैं।

मखाने की खेती बड़े पैमाने में यहां के तालाबों में की जाती है और यहीं से हजारों टन मखाने विदेश को निर्यात किए जाते हैं। मखाने भारत में ही नहीं चीन, मलेशिया और अफ्रीका में भी खाए जाते हैं। मनुष्य हजारों साल से मखाने का उपयोग अनाज की तरह करते आए हैं। यह मान्यता है कि मखाने में काफी मात्रा में प्रोटीन होता है।

दिलचस्प बात यह है कि मखाने जो कलगट्टे भी कहलाते हैं, कमल के दूर के रिश्तेदार भी नहीं! इनका अंग्रेजी नाम फॉक्स नट है और ये बोलचाल की भाषा में 'लोटस पफ' भी कहलाते हैं। वास्तव में यह कमल के जैसे पानी की सतह पर तैरने वाले पत्तों वाले पौधों की संतान हैं। इस पौधे के फूल बैंगनी होते हैं- वॉटर लिली परिवार के किंतु कमल से फर्क। कमल के बीज तो यह कतई नहीं!

कुछ लोगों को लगता है कि इनका चलन इसलिए कम हो गया है कि यह बहुत मंहगे होते हैं। इस गलतफहमी से छुटकारा पाने की जरूरत है। मखाने बहुत हल्के होते हैं- फूल जैसे- इसलिए इनका एक नाम फूल मखाने भी है।

थोड़े तौल में बहुत सारे मखाने चढ़ जाते हैं और दर्जनों मेहमानों को संतुष्ट-तृप्त कर सकते हैं। हमारी समझ में रसोई में इनकी उपेक्षा का कारण कुछ और है। नौजवान पीढ़ी को इसके गुणों और स्वभाव की जानकारी नहीं। उन्हें डर सताता है कि मखाने सारी तरी सोख लेंगे और फिर खुद लुगदी बन जाएंगे। इनका अपना कुदरती स्वाद बहुत नाजुक होता है। तेज मिर्च मसाले उसे नष्ट कर देते हैं। यदि हम पारंपरिक पाक विधियों को याद रखें तो आसानी से मखाने का रस अपने मनपसंद व्यंजनों में ले सकते हैं। पहले इन्हें रूखा भून लें फिर तरी वाले व्यंजनों में अंत में डालें परोसने के ठीक पहले। फिर देखिए इनका कमाल! 

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