इस शाप की वजह से सिर्फ पुष्कर में ही होती है ब्रम्हा की पूजा

सृष्टि के रचयिता ब्रम्हा जी के मंदिर पूरी दुनिया में सिर्फ एक ही जगह पुष्कर में है। जहां हर साल कार्तिक और वैशाख महीने में एकादशी से पूर्णिमा तक यहां मेले का आयोजन किया जाता है।

By Priyanka SinghEdited By: Publish:Thu, 24 Jan 2019 12:23 PM (IST) Updated:Thu, 24 Jan 2019 12:23 PM (IST)
इस शाप की वजह से सिर्फ पुष्कर में ही होती है ब्रम्हा की पूजा
इस शाप की वजह से सिर्फ पुष्कर में ही होती है ब्रम्हा की पूजा

महाभारत के एक प्रसंग में भीष्म पितामह के साथ अलग-अलग तीर्थों की चर्चा करते हुए पुलस्त्य ऋषि ने पुष्कर का सबसे पवित्र स्थल बताकर उसकी महिमा का गुणगान किया है। तीन प्रधान देवताओं (ब्रम्हा, विष्णु, महेश) में विष्णु भगवान और शिव जी के अनगिनत मंदिर हर जगह दिखाई देते हैं लेकिन पुष्कर के सिवा पूरे दुनिया में ब्रम्हा जी का कोई और मंदिर नहीं है।
प्रचलित कथा
अक्सर लोगों के मन में यह जिज्ञासा होती है कि आखिर ऐसा क्यों है? पद्म पुराण की एक कथा के अनुसार धरती पर व्रजनाश नामक राक्षस के उत्पात से तंग आकर ब्रम्हा जी ने उसका वध कर दिया, उसी वक्त उनके हाथों से तीन कमल जहां-जहां गिरे वहां झीलें बन गई। उसी घटना के बाद इस जगह का नाम पुष्कर पड़ा। इसके बाद दुनिया के कल्याण के लिए ब्रम्हा जी ने यज्ञ करना चाहा, जिसमें हवन के लिए पत्नी के साथ बैठना जरूरी था। किसी कारणवश उनकी पत्नी सरस्वती देवी को देर हो गई तो इस यज्ञ के लिए ब्रम्हा जी ने मृत्युलोक में एक कन्या से विवाह कर लिया। जब सरस्वती देवी ने अपनी पति के साथ किसी अन्य स्त्री को देखा तो वह क्रोधित हो गई। उसी क्षण उन्होंने ब्रम्हा जी को शाप दे दिया कि इस जगह को छोड़ कर पूरे संसार में कहीं भी उनका पूजन नहीं किया जाएगा।

पुष्कर सरोवर को कैलाश मानसरोवर के समान पवित्र माना जाता है। यहां तीन झीलें हैं, जो ज्येष्ठ, मध्यम और लघु पुष्कर के नाम से प्रसिद्ध हैं। ज्येष्ठ के देवता ब्रम्हा, मध्यम के विष्णु और लघु पुष्कर के महेश हैं।

मंदिर की महिमा

पुष्कर तीर्थ अजमेर से 12 किमी दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित है। यहां दिन के तीनों पहर में होने वाले भजन-पूजन और आरती में भारी संख्या में तीर्थयात्री एकत्र होते हैं। इस मंदिर की संरचना और सजावट बहुत सुंदर है। यहां चांदी की चौकी पर चार भुजाओं वाले ब्रम्हा जी की मूर्ति स्थापित की गई है। इनकी बायी और सावित्री और दायीं ओर गायत्री देवी के विग्रह हैं। यह मंदिर राजस्थान के रत्नगिरी पर्वत की तलहटी पर स्थित है। जिसका निर्माण 14वीं शताब्दी में हुआ था।
यह जगतपिता ब्रम्हा जी का एकमात्र मंदिर है। इसलिए यह भारतीय संस्कृति की अनमोल धरोहर है। ऐसी मान्यता है कि महाकवि कालिदास ने अपने महाकाव्य 'अभिज्ञान शांकुतलम' की रचना इस जगह पर की थी। यहां आसपास के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में श्री रंगराज जी, नृसिंह भगवान, वाराह देव और आत्मेश्वर महादेव के मंदिर भी शामिल हैं।

ऐसी मान्यता है कि यहां सूर्य, वसु, रूद्र, सांध्य, मारुत, गंधर्व आदि देवता आठों पहर निवास करते हैं। सनातन धर्म में पुष्कर कुरुक्षेत्र, गया, गंगा और प्रयाग क्षेत्र को पंचतीर्थ कहा गया है। यहां परिक्रमा करते समय कई महर्षियों को तपोभूमि के भी दर्शन होते हैं। पहले अजमेर पहुंचकर वहां से टैक्सी या बस द्वारा पुष्कर के लिए प्रस्थान किया जा सकता है। चूंकि कार्तिक पूर्णिमा को ब्रम्हा जी ने पुष्कर में यज्ञ किया था, इसलिए वहां हर साल एकादशी से पूर्णिमा तक कार्तिक और वैशाख मास में विशाल मेला लगता है। ऊंट और घोड़े की दौड़ के अलावा पारंपरिक नृत्य-संगीत मेले का खास आकर्षण है। पुष्कर में कुछ ऐसा जादू है जो लोगों को बरबस अपनी ओर खींचता है। 

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