प्राचीन,सुन्दर और कलात्मक है मेड़तनी की बावड़ी, यहां स्नान करने से कुष्ठ रोग भी होता था ठीक

भारत के लोगों के लिए अपना पूरा देश घूमना ही कई देशों की यात्रा करने के बराबर है। विभिन्न संस्कृतियों का समागम, भाषा, आभूषण, पहनावा लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करता है। गहरे सागरों के किनारे, झीलों बर्फों की वादियां, जंगल आदि जगह पर्यटन के केन्द्र हैं। पर्यटन को बढ़ावा

By Preeti jhaEdited By: Publish:Mon, 05 Oct 2015 02:48 PM (IST) Updated:Mon, 05 Oct 2015 03:08 PM (IST)
प्राचीन,सुन्दर और कलात्मक है मेड़तनी की बावड़ी, यहां स्नान करने से कुष्ठ रोग भी होता था ठीक
प्राचीन,सुन्दर और कलात्मक है मेड़तनी की बावड़ी, यहां स्नान करने से कुष्ठ रोग भी होता था ठीक

भारत के लोगों के लिए अपना पूरा देश घूमना ही कई देशों की यात्रा करने के बराबर है। विभिन्न संस्कृतियों का समागम, भाषा, आभूषण, पहनावा लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करता है। गहरे सागरों के किनारे, झीलों बर्फों की वादियां, जंगल आदि जगह पर्यटन के केन्द्र हैं। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार भी कोशिश कर रही है। हर पर्यटन स्थल तक आसानी से पहुंचने के रास्ते तलाशे जा रहे हैं। यदि आप भारत घूमने की योजना बना रहे हैं तो इन सारे जगहों को न भूलें। इन जगहों पर गए बगैर भारत भ्रमण पूरा नहीं हो सकता है।
अगर आप राजस्थान घूमने जा रहे हैं तो मेड़तनी की बावड़ी घूमना आपको एक अलग एहसास देगा। देश की राजधानी दिल्ली से लगभग 275 किलोमीटर दूर राजस्थान के झुन्झुनू में स्थित मेड़तनी की बावड़ी प्राचीन,सुन्दर और कलात्मक है।

इस विशाल एवं वास्तुकला की दृष्टि से संपन्न व अनुपम बावड़ी का निर्माण झुंझुनू के हिन्दू शासक शार्दुल सिंह शेखावत की रानी मेड़तनी जी ने सन 1783 ई० मे करवाया था। जिस कारण इसे मेड़तनी की बावड़ी के नाम से जाना जाता हैं।

इस बावड़ी के निर्माण में उस समय लगभग 70 हज़ार रूपये खर्च हुए थे। इसके एक तरफ कलात्मक कुआँ है तो दूसरी ओर मुख्यद्धार से जल स्तर तक जाने के लिये सैकड़ों सीढ़ियां बनी हुई हैं। बावड़ी लगभग 150 फीट गहरी तथा तीन विशाल खंडो में निर्मित है।

इसके अंदर दोनों तरफ कलात्मक सीढिया, झरोखे और बरामदे बने हुए है। जहाँ लोग जलग्रहण और स्नानादि के बाद आराम कर सकता था।

बावड़ी में स्नान करने से ठीक हो जाता था चर्म रोग-

कहा जाता है कि बावड़ी में स्नान करने से चर्म रोग भी ठीक हो जाते थे। झुंझुनू निवासी का कहना है कि पुराने

ज़माने में इस बावड़ी का बड़ा महत्व था। जब राहगीर बिना रस्सी और बाल्टी के अपनी प्यास बुझाया करता था।

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