परिस्थतियां बनती हैं प्रेरणा

हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में सिद्धहस्त हैं स्वेता परमार। पहली किताब 'द जेस्टफुल हाइवÓ लिखने के बाद उन्होंने हिंदी में 'मेह की सौंधÓ कहानी संग्रह की रचना की है। स्मिता से बातचीत के अंश...

By Babita KashyapEdited By: Publish:Mon, 10 Apr 2017 01:21 PM (IST) Updated:Mon, 10 Apr 2017 01:32 PM (IST)
परिस्थतियां बनती हैं प्रेरणा
परिस्थतियां बनती हैं प्रेरणा

आपकी पहली किताब अंग्रेजी में है, फिर हिंदी में लिखने का विचार किस तरह बनाया?

स्कूल के बाद मेरा कभी हिंदी से वास्ता नहीं रहा लेकिन मैं हमेशा पाठकों के लिए अपनी मातृभाषा में लिखना चाहती थी। मेरे घरवाले भी चाहते थे कि मैं एक किताब हिंदी में भी लिखूं। सोचा नहीं था कि लिख पाऊंगी लेकिन जब लिखने बैठी तो शब्द अपने-आप बुनते चले गए और मैंने कहानी संग्रह पूरा कर लिया। उम्मीद है कि यह पाठकों को भी पसंद आएगा।

दोनों भाषाओं में समान रूप से विचार किस तरह आते हैं?

विचार तो किसी भी भाषा में आ सकते है। जरूरी यह है कि आप जो सोच रहे हैं, उसमें कितनी सच्चाई है। भावनाएं और एहसास तो एकसमान होते हैं। यदि आप कुछ विशेष सोचकर लिखने बैठते हैं, तो उसे अच्छी तरह नहीं लिख पाते। वहीं जब आप सिर्फ अपने अहसास और स्मृति को शब्द देना चाहते हैं, तो बनावटी न होने के कारण आराम से लिखते चले जाते हैं।

'मेह की सौंध' कैसा कहानी संग्रह है?

लघुकथाओं का संग्रह है 'मेह की सौंध'। वक्त के साथ बदलाव को लेकर मैंने कुछ कहानियां लिखी हैं। जिंदगी में हर व्यक्ति के साथ अच्छे के साथ बुरा वक्त भी आता है। जब बुरा दौर बीत रहा होता है तो लगता है कि इससे बुरा तो कुछ हो नहीं सकता। यदि हम हिम्मत न हारते हुए आगे बढ़ते रहें, तो यह हौसला विपरीत परिस्थितियों से लडऩे का माद्दा देता है। संग्रह की ज्यादातर कहानियां इसी विषयवस्तु पर हैं।

लिखने की शुरुआत किस तरह हुई?

लिखने का शौक मुझे बचपन से है। बेटी योशिमा के अलावा लेखनी ही मेरी प्रिय सखी रही है। एक दिन योशिमा ने कहा कि मैं आपको लेखिका के रूप में देखना चाहती हूं। मेरी मां ने भी मुझे लिखने के लिए प्रोत्साहित किया और पति का साथ तो हमेशा मिला ही। बस यहीं से लेखन की शुरुआत हो गई।

लिखने की प्रेरणा कहां से मिलती है?

बेटी, मां, पति, परिवार, आस-पास के लोग और परिस्थितियां बनती हैं मेरी प्रेरणा। सुख दुख तो जीवन के अलग-अलग रूप हैं। हर परिस्थिति में व्यक्ति की सोच सुदृढ़ और सकारात्मक रहनी चाहिए। यही ध्यान रखकर

लिखती हूं।

लिखने के लिए समय कैसे निकालती हैं?

जैसा कि मैंने कहा, सोच कभी भी किसी भी रूप में आ सकती है। लिखने के लिए समय नहीं, आत्मा और जुनून की आवश्यकता पड़ती है। लिखने का मुझे बहुत शौक है।खाना पकने और कपड़े धुलने के बीच भी मैं लिख लेती हूं। मेरे लिए समय की कोई बाध्यता नहीं है।

आपके प्रिय कवि और कथाकार कौन हैं? इन दिनों कौन-कौन से लेखकों को पढ़ रही हैं?

मुझे अंग्रेजी में शेक्सपियर, वड्र्सवर्थ, पाउलो कोएल्हो बेहद पसंद हैं हालांकि इनकी रचनाओं और भाषा में कोई समानता नहीं है लेकिन भावनाएं, कहानी और कविता का भावार्थ एक सा होता है। अरुंधती रॉय, झुंपा लाहिरी, अमिताभ घोष जैसे कई लेखक हैं, जो बेहद उम्दा लिखते हैं। हिंदी में प्रेमचंद की कहानियां बेहद पसंद हैं। अशोक चक्रधर की हास्य कविताएं पसंद करती हूं। इन दिनों कई युवा कहानीकार और कवि भी उम्दा रच रहे हैं।

भारत और विदेश के कथाकारों में क्या अंतर पाती हैं?

देश कोई भी हो, सिर्फ भाषा का फर्क है वरना एहसास और जज्बात सभी लेखकों के एक समान होते हैं। पश्चिम के हों, पूरब या फिर कहीं और के कथाकार, सभी के विचार और भावार्थ लगभग एक जैसे होते हैं। सिर्फ कहानी कहने का ढंग अलग-अलग होता है। 

क्या अगले उपन्यास में भी स्त्री पात्रों की प्रधानता होगी?

स्त्री और पुरुष दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। कोई किसी से न कम है और न ज्यादा।मेरे अगले उपन्यास में दोनों पात्रों को बराबर स्थान दिया जाएगा।  

क्या वजह है कि इन दिनों युवाओं का लेखन बहुत कम समय तक याद रह पाता है?

तुलना अच्छी चीज नहीं होती है। सभी दिल से ही लिखते हैं। पाठकों की अपनी पसंद पर भी

यह निर्भर करता है कि वे किस तरह की रचनाएं पसंद करते हैं। लेखक यदि ऐसा सोचकर लिखेगा कि यदि मैं इस तरह लिखूंगा, तो मुझे पाठक नहीं मिलेंगे, तो वह कभी कालजयी कृति नहीं लिख पाएगा। दिल से लिखी कृति अविस्मरणीय बनती है।

-स्मिता

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