लघुकथा: पत्थर बने हीरे

एक विख्यात ऋषि गुरुकुल में बालकों को शिक्षा प्रदान किया करते थे। गुरुकुल में राजा महाराजाओं से लेकर साधारण बच्चे भी शिक्षा के लिए आया करते थे।

By Babita KashyapEdited By: Publish:Thu, 19 Jan 2017 03:07 PM (IST) Updated:Thu, 19 Jan 2017 03:15 PM (IST)
लघुकथा: पत्थर बने हीरे
लघुकथा: पत्थर बने हीरे

यह कहानी जीवन की भागमभाग को दिखाती है जो दिखाती है कि जीवन की इस भागम भाग में भी अंत में वही सफल होती है तो जीवन की इस व्यस्तता में भी दूसरे लोगों के लिए अपना समय निकालता है।

एक विख्यात ऋषि गुरुकुल में बालकों को शिक्षा प्रदान किया करते थे। गुरुकुल में राजा महाराजाओं से लेकर साधारण बच्चे भी शिक्षा के लिए आया करते थे। वर्षो से शिक्षा प्राप्त कर रहे बच्चों के एक बैच की शिक्षा आज खत्म होने वाली थी । सभी बड़े उत्साह के साथ घर लौटने की तैयारी कर रहे थे तभी ऋषि की तेज आवाज सभी लोगों के कानों में पड़ी। ऋषि कह रहे थे सभी बच्चे मैदान में इक्कठे हो जाएँ।

सभी बच्चे मैदान में इक्कट्ठा हो गये और सब के आ जाने के बाद गुरु ने उनसे कहा चूँकि आप सभी का आज अंतिम दिन है इसलिए मैं चाहता हूँ आप सभी एक दौड़ में हिस्सा लें यह एक बाधा दौड़ होगी आप सभी को कई बाधाओं से होकर गुजरना होगा जहां कही पर आपको पानी में से गुजरना होगा कही पर आपको कूदना भी होगा और अंत में एक अँधेरी सुरंग में से होकर गुजरना है ।

दौड़ शुरू हुई। सब लोग बड़ी तेजी से दौड़ रहे थे लेकिन जब वो उस अँधेरी सुरंग के पास पहुंचे जिसमे से उन्हें गुजरना था और उस रास्ते में जाने से पहले बहुत सारे नुकीले पत्थर पड़े हुए थे इस पर अब तक जो एक जैसा बर्ताव कर रहे थे उन सबका बर्ताव बदल गया क्योंकि पत्थर बहुत नुकीले थे और उस पर पैर रखने पर बहुत पीड़ा हो रही थी खैर सभी ने जैसे तेसे दौड़ पूरी की और आश्रम पहुंचे।

इस पर ऋषि जो इनका इंतजार कर रहे थे कहने लगे मैं देख रहा हूँ तुम में से कुछ लोगों ने बड़ी जल्दी दौड़ को पूरा कर लिया और कुछ लोगों को बहुत समय भी लगा ऐसा क्यों इस पर एक शिष्य ने कहा गुरूजी जब हम सुरंग में घुसने वाले थे उस रास्ते पर शुरू में बहुत सारे पत्थर भी थे तो कुछ लोग तो जैसे तेसे उनकी परवाह किये बिना निकल गये लेकिन कुछ लोग उन पत्थरों को उठाकर अपनी जेब में डालने लगे ताकि वो पीछे आने वाले लोगों के पैरों में नहीं चुभे इसलिए किसी को अधिक समय लगा और किसी को कम ।

इस पर गुरु ने कहा जिन लोगों ने पत्थर इकठा किये वो लोग आगे आयें और मुझे दिखाएं इस पर कुछ शिष्य जिन्होंने ऐसा किया था वो लोग आगे आये तो देखते है वो पत्थर नहीं जबकि हीरे थे जो अँधेरे में उन्हें पत्थर लग रहे थे इस तरह गुरु ने कहा जो दूसरों की परवाह करते हुए जिन्दगी में आगे बढ़ता है उसे ही सफलता मिलती है जिस तरह ये हीरे उन लोगों के लिए मेरी तरफ से उपहार है जिन्होंने दौड़ में जीतने की परवाह नहीं करते हुए दूसरों के पैरों में पत्थर नहीं चुभे इस बात का ख्याल किया।

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