दिल की आवाज सुनने की प्रेरणा देती हैं ये फिल्में, विश्व बधिर दिवस पर एक नजर कुछ ऐसी फिल्मों पर

हिंदी सिनेमा में दिखाए गए कुछ किरदार शारीरिक तौर पर भले ही अधूरे हों मगर किसी भी परिस्थिति से पार पाने का हौसला खुश कर जाता है। विश्व बधिर दिवस (26 सितंबर) पर कुछ ऐसी फिल्में जिनके किरदार भले ही सुन-बोल न पाते हों मगर वे मजबूर नहीं हैं।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 24 Sep 2022 05:09 PM (IST) Updated:Sat, 24 Sep 2022 05:09 PM (IST)
दिल की आवाज सुनने की प्रेरणा देती हैं ये फिल्में, विश्व बधिर दिवस पर एक नजर कुछ ऐसी फिल्मों पर
कोशिश से लेकर खामोशी, इकबाल, ब्लैक और बर्फी के किरदार बताते हैं जीवटता का किस्सा

आरती तिवारी

 जया बच्चन व संजीव कुमार अभिनीत ‘कोशिश’ (1972) पहली ऐसी फिल्म थी, जिसमें दोनों ही मुख्य किरदार बधिर थे। इससे पहले बधिर किरदार कहानी का छोटा सा हिस्सा होते थे। गुलजार निर्देशित इस फिल्म ने बधिर दंपती के जीवन की कठिनाइयां और जीवटता को बखूबी चित्रित किया।

संगीत में पगी कहानी, जिसके दो अहम किरदार खामोश हों, इस विरोधाभास को संवेदनशीलता से पेश किया गया संजय लीला भंसाली की ‘खामोशी: द म्यूजिकल’ (1996) में। फिल्म में मनीषा कोईराला के बधिर माता-पिता बने सीमा बिस्वास और नाना पाटेकर ने जीवंत अभिनय किया।

2005 में आई ‘ब्लैक’ ने हिंदी सिनेमा में ऐसा रंग बिखेरा, जो आज भी पक्का है। सुन, बोल और देख न पाने वाली मिशेल के किरदार में रानी मुखर्जी के अभिनय ने दर्शकों को दांतों तले अंगुली दबाने पर मजबूर किया, साथ ही मिशेल के अध्यापक के किरदार में अमिताभ बच्चन को भी खूब सराहा गया।

गर हौसला बुलंद हो तो कोई कमी आड़े नहीं आती। नागेश कुकनूर निर्देशित फिल्म ‘इकबाल’ (2005) की कहानी इसी का उदाहरण है। क्रिकेट खेलने के लिए जुनूनी बधिर इकबाल के किरदार में श्रेयस तलपड़े का अभिनय बस कमाल कर गया। फिल्म को मिले दो राष्ट्रीय पुरस्कार इसकी श्रेष्ठता बताते हैं।

सुनने-बोलने में अक्षम बर्फी को किसी बात का दुख नहीं। गलती हुई तो घड़ी का कांटा भी पीछे कर नई शुरुआत करने की सीख देते मस्तमौला बर्फी से पहली नजर में प्यार हो जाना स्वाभाविक है। अनुराग बासु निर्देशित ‘बर्फी’ (2012) में रणबीर कपूर ने किरदार बखूबी निभाया और सबको गुदगुदाया भी।

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