रिश्तों का सम्मान करना सीखें

कहा जाता है कि परिवार से बच्चों को प्राथमिक शिक्षा की प्राप्ति होती है तथा परिवार ही बच्चों को मूल्य, गुण व सामाजिक रीति-रिवाजों के बारे में अवगत कराता है।

By Srishti VermaEdited By: Publish:Thu, 16 Mar 2017 04:07 PM (IST) Updated:Thu, 16 Mar 2017 04:15 PM (IST)
रिश्तों का सम्मान करना सीखें
रिश्तों का सम्मान करना सीखें

समाज के बदलते स्वरूप में रिश्तों का एहसास खत्म होता जा रहा है। आज के युग में अभिभावकों तथा समाज का बच्चों के ऊपर नियंत्रण धीरे-धीरे कम हो रहा है, क्योंकि आज मनुष्य केवल अपने तक ही सीमित रह गया है। कहा जाता है कि परिवार से बच्चों को प्राथमिक शिक्षा की प्राप्ति होती है तथा परिवार ही बच्चों को मूल्य, गुण व सामाजिक रीति-रिवाजों के बारे में अवगत कराता है। परिवार के बाद यह जिम्मेदारी विद्यालय की होती है, जो बच्चों को नैतिकता,अनुशासन तथा सदाचार के बारे में बताता है तथा प्रयास करता है कि बच्चों में सभी सद्गुुणों का समावेश हो। उनके बेहतर चरित्र का निर्माण हो सके।

हालांकि एकल परिवार और वैश्विक सभ्यता से आकर्षित लोग आज रिश्तों के सम्मान को भूलते जा रहे हैं। हम देख रहे हैं कि समाज में दिन-प्रतिदिन सामाजिक कुरीतियां बढ़ती जा रही हैं, जैसे - वृद्धों का निरादर करना, सहनशीलता का ह्रास होना। इस बदलते स्वरूप में अध्यापक, समाज के प्रबुद्ध और प्रतिष्ठित लोगों की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है कि वे आने वाली पीढ़ी को ऐसी दिशा दे सकें, जिससे वे रिश्तों का सम्मान करें। उनके हृदय में सहनशीलता हो, जिससे आपसी संबंधों को और मजबूती मिल सके।

मुझे लगता है कि विद्यालयों में नैतिक मूल्यों पर आधारित शिक्षा का भी व्यावहारिक समावेश हो और विद्यार्थी गुण-अवगुण में अंतर समझ सकें, तभी उनमें एक-दूसरे के प्रति आदर की भावना पैदा हो सकती है। यदि हम हिंदुस्तान के स्वर्णिम युग को पुन: स्थापित करना चाहते हैं, जिसमें लोगों का आपसी प्रेम था, एक-दूसरे के प्रति सम्मान था, सच बोलने में विश्वास था, लोगों में नैतिकता व सदाचार का गुण हो तथा पूरे गांव - नगर को एक कुटुम्ब की दृष्टि से देखा जाता था, तो ऐसे समाज का पुन: निर्माण हो सकता है ।

-डॉ. नीरज अवस्थी प्रधानाचार्य, मॉडर्न स्कूल एस 1, सेक्टर-11, नोएडा

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