मिले ताने पर दिनेश नहीं माने, बेटियों को ऐसे पहुंचाया अपने मुकाम तक

श्री शंकर कॉलेज में छोटी-सी नौकरी करने वाले दिनेश ने बेटियों को आसमान पर पहुंचाने की जब एक बार ठान ली तो किसी भी मुश्किल से विचलित नहीं हुए।

By Pratibha Kumari Edited By: Publish:Tue, 07 Mar 2017 12:51 PM (IST) Updated:Tue, 07 Mar 2017 01:35 PM (IST)
मिले ताने पर दिनेश नहीं माने, बेटियों को ऐसे पहुंचाया अपने मुकाम तक
मिले ताने पर दिनेश नहीं माने, बेटियों को ऐसे पहुंचाया अपने मुकाम तक

ब्रजेश पाठक, सासाराम। तीन बेटियों के पिता बनते ही दिनेश को ताने देने वाले मुखर हो गए, लेकिन उन्होंने परवाह किए बगैर बेटियों को उस मुकाम तक पहुंचाया जिस पर हर पिता गर्व कर सकता है। आज बड़ी बेटी अनुपर्मा सिंह बक्सर में वरीय उप समाहर्ता हैं। दूसरे नंबर की बेटी डॉ पूर्णिमा आगरा में डॉक्टर (सर्जन) है। छोटी बेटी स्मिता ने पीएमसीएच से एमबीबीएस करने के बाद दिल्ली एम्स से एमएस की पढ़ाई पूरी की।

नहीं किया समझौता: इसके लिए दिनेश सिंह को कठिन संघर्ष करना पड़ा। श्री शंकर कॉलेज में छोटी-सी नौकरी करने वाले दिनेश ने बेटियों को आसमान पर पहुंचाने की जब एक बार ठान ली तो किसी भी मुश्किल से विचलित नहीं हुए। बड़ी बेटी अनुपमा शादी के कुछ माह बाद ही विधवा हो गईं। उस समय वह गर्भवती थीं। ससुराल वालों ने साथ छोड़ दिया। कुछ माह बाद उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया। दो वर्ष तक वह अवसाद में रहीं। ऐसे में पिता उसके सबसे बड़े संरक्षक बने और हौसला बढ़ाया। पिता की मेहनत व बेटी का जुनून आखिरकार रंग लाया। उनका चयन बिहार प्रशासनिक सेवा के लिए एसडीएम पद पर हुआ।

बेटी की सफलता ने परिवार में दोबारा खुशियां भर दी। अब बारी थी दूसरी दो बेटियों को मंजिल तक पहुंचाने की। इसमें सबसे बड़ी बाधा पैसे की थी। बच्चियों को कहीं कोचिंग नहीं करा सके, लेकिन पूर्णिमा और स्मिता को खुद पढ़कर तैयार होने को कहते थे। मेडिकल परीक्षा में सफलता पाकर पूर्णिमा रिम्स, रांची से एमबीबीएस करने के बाद पीजीआइ चंडीगढ़ से सीनियर रेजीडेंसी कर चुकी हैं। इस समय वह आगरा में डॉक्टर हैं। छोटी बेटी स्मिता ने पीएमसीएच से एमबीबीएस करने के बाद दिल्ली एम्स से एमएस की पढ़ाई पूरी की। वर्तमान में वह कर्नाटक के बेलगांव में डॉक्टर पति के साथ प्रैक्टिस कर रही हैं।

दिनेश सिंह- ''जो पैसा लोग बेटी के जेवर व दहेज के लिए बचत करते हैं वे गलती करते हैं। वही पैसा उनकी शिक्षा पर खर्च करना चाहिए। योग्य बनीं, तो बेटियों की शादी के लिए हमें कहीं नहीं जाना पड़ा। लड़के वालों के प्रस्ताव
खुद आए। बेटियों की शादी बिना दहेज के हुई।''

कर्ज तो अब भी अदा नहीं कर पाए, लेकिन बेटियों ने मेडलों की झड़ी लगा दी

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