नृत्य को बनाया सामाजिक जागरुकता का माध्यम

आज प्रतिभा की धनी नृत्यांगना रेखाकी पहचान सिर्फ एक नृत्यांगना नहीं बल्कि नृत्य निर्देशक और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी है।

By Srishti VermaEdited By: Publish:Sat, 11 Mar 2017 11:37 AM (IST) Updated:Sat, 11 Mar 2017 12:15 PM (IST)
नृत्य को बनाया सामाजिक जागरुकता का माध्यम
नृत्य को बनाया सामाजिक जागरुकता का माध्यम


होली का पर्व आपसी सौहार्द के साथ समाज में मौजूद अमीर-गरीब की खाई को मिटाने का भी प्रतीक है। इसलिए भगवान कृष्ण ने ब्रज की राधा के साथ इस पर्व को उल्लास पूर्वक मनाकर सभी को एक साथ जोड़ने का प्रयास किया था। कथक नृत्यांगना डॉ. रेखा मेहरा ने होली की सार्थकता को कुछ इसी प्रकार बयां किया है। नृत्य एक ऐसा माध्यम है जो न सिर्फ अपने भावों को प्रदर्शित करने में सहायक बनता है बल्कि शरीर को भी स्वस्थ रखता है। बहुआयामी प्रतिभा की धनी नृत्यांगना रेखा कुछ इसी अंदाज में अपने विचारों को प्रस्तुत करती हैं। महज दस वर्ष की आयु से नृत्य प्रारंभ करने वाली रेखा के लिए नृत्य जीवन का एक अंग बना गया। बिना रुके आगे बढ़ती रहीं।
नृत्य में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने अभावग्रस्त और जरूरतमंद बच्चों को भी इसकी निशुल्क शिक्षा देना प्रारंभ किया। नृत्य की भाव भंगिमाओं और मुद्राओं को योग की भांति शारीरिक स्फूर्ति के रूप देखने वाली रेखा ने शास्त्रीय नृत्य की इस विधा को सामाजिक जागरूकता और अच्छे विचारों के आदान-प्रदान के लिए उपयुक्त पाया और उसे सफल बनाया। उनकी बेबाकी ही उन्हें सफल नृत्यांगनाओं की कतार में शामिल करती है। 

नृत्य को माना धरोहर
जयपुर और लखनऊ घराने से ताल्लुक रखने वाली नर्तकी रेखा मेहरा स्वभाव से बेहद संवेदनशील हैं। गुरु पद्मश्री उमा शर्मा से उन्होंने नृत्य की बारीकियां सीखीं। रेखा कहती हैं कि मौजूदा समय में परंपरागत और शास्त्रीय संगीत की तरफ युवाओं का रुझान कम हुआ है लेकिन यह संगीत और नृत्य हमारे देश की धरोहर है, जिसका संरक्षण आवश्यक है।

स्कूल से ही मिले दिशा

दिल्ली के सफदरजंग एंक्लेव में निवासी कर रही 44 वर्षीय रेखा इसी उद्देश्य के तहत अपनी शागिर्दों को नृत्य का पाठ पढ़ा रहीं हैं। इसके माध्यम से वह जीवन के कठिन और मुश्किल दौर से गुजर रहे बच्चों और महिलाओं को भी सशक्त बनाने का प्रयास कर रहीं हैं। उनका मानना है कि यदि सरकार कला के क्षेत्र में विस्तार करना चाहती है तो स्कूल और कॉलेजों में नृत्य और अन्य कला की शिक्षा को अनिवार्य किया जाना चाहिए, ताकि इच्छुक बच्चे इसमें अपना भविष्य आसानी से तलाश सकें।

सामाजिक जागरूकता का प्रयास
पांच साल से निर्धन बच्चों को नृत्य शिक्षा और रोजगार प्रशिक्षण देने का कार्य कर रहीं रेखा समाज में बुनियादी बदलाव की उम्मीद रखती हैं। इसी उद्देश्य के तहत उन्होंने अपने दर्शकों के सामने सामाजिक मुद्दों से जुड़ी प्रस्तुति दीं। जिसे लोगों द्वारा खूब सराहा गया। उनके ऐसे विशेष नृत्य प्रस्तुतियों में सबसे ऊपर है एड्स के प्रति जागरूकता पर आधारित नृत्य निदान। इसके अलावा ग्लोबल वार्मिंग, महिला सशक्तीकरण, युद्ध और शांति, धानी-चुनरिया, सड़क सुरक्षा, अतिथि देवो भव, कन्या भ्रूण हत्या, लाडली जैसी कई अन्य नृत्य नाटिका इनमें शामिल हैं। दुर्गा, शिव और होलिका दहन से जुड़े आध्यात्मिक प्रसंगों को नृत्य के रूप में पेश करते हुए रेखा अक्सर भाव विभोर हो जाती हैं। भारत सरकार के कला मंत्रालय में एक्सपर्ट कमेटी की सदस्य के रूप में कार्य कर रहीं रेखा मेहरा ने प्रयाग संगीत समिति से डॉक्टरेट किया।

दर्शकों को बनाया अपना मुरीद
देश के अलग-अलग हिस्सों में नृत्य महोत्सव और अन्य आयोजनों में अपनी मनमोहक और प्रभावी प्रस्तुति से लोगों का दिल जीतने वाली रेखा ने विदेशी दर्शकों को भी खूब प्रभावित किया है। उन्होंने लखनऊ महोत्सव, महाकुंभ, अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला, खजुराहो फेस्टिवल, फेस्टिवल ऑफ इंडिया, कॉमनवेल्थ गेम, शारजाह महोत्सव, मालदीव के ओनम महोत्सव सहित कई विशेष मौकों पर अपने नृत्य को प्रस्तुत किया है। इसके अलावा मास्को, बीजिंग, अमेरिका, सिंगापुर सहित कई देशों में होने वाले नृत्य महोत्सव में अपने हुनर को बखूबी प्रस्तुत किया है। वह कहती हैं सभी जगहों पर उनके दर्शकों की प्रतिक्रियाओं और सराहना से उन्हें बेहतर करने का हौसला मिला है। उनका सपना है कि वह विदेश में भी भारतीय नृत्य और संगीत का प्रचार करें।

प्रस्तुति: शिप्रा सुमन, बाहरी दिल्ली

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