लाइफस्टाइल के साथ ही बदलनी होगी भोजन की भी आदतें, जिससे स्वास्थ्य के साथ पर्यावरण भी रहें सुरक्षित

लॉकडाउन ने भागती-दौड़ती जिंदगी पर ब्रेक लगा दिया। कोरोना सिर्फ एक स्वास्थ्य संकट नहीं है बल्कि यह तमाम लोगों के लिए खाद्य संकट भी है। तो जाने कैसे इनमें बदलाव कर रहें हेल्दी।

By Priyanka SinghEdited By: Publish:Mon, 18 May 2020 09:26 AM (IST) Updated:Mon, 18 May 2020 09:26 AM (IST)
लाइफस्टाइल के साथ ही बदलनी होगी भोजन की भी आदतें, जिससे स्वास्थ्य के साथ पर्यावरण भी रहें सुरक्षित
लाइफस्टाइल के साथ ही बदलनी होगी भोजन की भी आदतें, जिससे स्वास्थ्य के साथ पर्यावरण भी रहें सुरक्षित

नोवेल कोरोना वायरस (कोविड-19) महामारी अभूतपूर्व स्तर पर जारी सिर्फ एक स्वास्थ्य संकट भर नहीं है, बल्कि यह तमाम लोगों के लिए खाद्य संकट भी है। यदि आगे भी देशभर में खाद्य के उत्पादन और आपूर्ति में बाधा जारी रहती है तो आने वाले समय में भोजन का संकट गहरा सकता है। साथ ही इससे जुड़ी ढेरों नई मुसीबतें हमारे सामने आकर खड़ी हो सकती हैं।जीव-जंतु बने जिम्मेदार

इस महामारी से सिर्फ खाद्य ही नहीं बल्कि जानवर, चाहे वह खेत के पशु हों या फिर जंगल के वन्यजीव, सभी बहुत ही आसानी से जुड़े हैं। ये मानव की तरह अपने शरीर में कई संक्रमण एजेंट को रहने की जगह दे सकते हैं और संक्रमण एजेंट की मेजबानी करते हुए उसे सीधा मनुष्य तक पहुंचा सकते हैं या फिर किसी संवाहक के जरिए उनमें भेज सकते हैं। मिसाल के तौर पर, चमगादड़ों का उदाहरण लीजिए, जिसे कोविड-19 विषाणु के साथ ही 2014-2016 में इबोला बीमारी के प्रसार या 2002 में गंभीर श्वसन रोग सार्स महामारी के लिए जिम्मेदार माना जाता है। वहीं, 2012 में मिडिल ईस्ट रेस्पिरेट्री सिंड्रोम यानी मर्स के लिए ऊंट को जिम्मेदार माना गया था। करीब दो दशक पीछे लौटिए तो 1997 के अत्यधिक रोगजनक एवियन इनफ्लुएंजा (एच5एन1) के लिए मुर्गियां और स्वाइन फ्लू (नोवेल इनफ्लुएंजा एच1एन1) के लिए सुअर मुख्य पशु स्रोत थे।विषम परिस्थितियों में उत्पादन

हम जो खाते हैं, वह हमारे स्वास्थ्य को व्यक्तिगत स्तर पर प्रभावित करता है, लेकिन हमारे भोजन का उत्पादन कैसे होता है, इसके वैश्विक प्रभाव क्या हैं? यह अब काफी हद तक स्पष्ट है। यदि खाद्य जानवरों की सघन खेती के मामले को ही लीजिए तो जो पशु प्रोटीन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा प्रदान करता है, उसे समस्त दुनिया अब उपभोग करना चाहती है। एक नजर अगर इनके पालन पर डालें तो खाद्य पशु के तौर पर मुर्गी और सुअरों को पालने के लिए उन्हें एक बेहद तंग जगह में विषम परिस्थितियों के साथ रखा जाता है, जहां उनकी उत्पादकता काफी ज्यादा मायने रखती है। वह रोगों से लड़ने के लिए कितने तैयार हैं, यह कुछ भी मायने नहीं रखता और न ही उत्पादक इस ओर ध्यान देता है।सघन मुर्गी प्रजनन और पालन की व्यवस्था निम्न से उच्च एवियन इनफ्लुएंजा वायरस जैसे एच5 से एच7 के उप प्रकार को बढ़ाने वाले हो सकते हैं, जो पूरी दुनिया में मानव सेहत के लिए बेहद चिंता का विषय है।

बुरे सपने की झलक

अध्ययन बताते हैं कि चीन में एवियन इनफ्लुएंजा एच5एन1 और एच7एन9 का उद्भव किस तरह से बड़े भू-भाग पर फैल रहे सघन पोल्ट्री सेक्टर से जुड़ा हुआ था। दरअसल एवियन इनफ्लुएंजा वायरस के लिए यह सघन और गहन पोल्ट्री फार्म एक वाइल्ड रिजर्वायर की तरह था। दरअसल सघन और गहन कृषि उत्पादन का विस्तार एक जीर्ण प्रकृति वाले जीवाणु संबंधी रोग महामारी तक भी जाता है, जिसे एंटीमाइक्रोबियल रसिस्टेंस कहते हैं। यह एक ऐसी अवधारणा है जिसमें अत्यंत साधारण संक्रमण को भी ठीक करना एक बड़ी चुनौती होती है। 

उठाने होंगे सवाल

कोविड-19 के जारी संकट हमें चुनाव करने के लिए मजबूर करता है। इस बार, हमें भोजन के साथ अपने रिश्ते को ध्यान से सोचना चाहिए, चाहे वह जानवर से हो या गैर-पशु स्रोतों से। इस संबंध पर भी विचार करना चाहिए कि हम जो भोजन करते हैं उसका उत्पादन कैसे होता है और इसका प्रभाव उपभोक्ता के अलावा उत्पादक और पर्यावरण पर क्या पड़ता है। सवाल यह है कि क्या हम वे सवाल पूछना जारी रखेंगे जो हमें खाद्य उत्पादन के स्थायी तरीकों की ओर बढ़ने में मदद करें! क्या एक लचीली व्यवस्था से मिलने वाला स्थानीय, विविध, पोषण से बेहतर भोजन, कुपोषण और पारिस्थितिक गिरावट की हमारी समस्याओं का वास्तविक जवाब नहीं है? इसके इतर, क्या हम सरकारों से यह मांग नहीं कर सकते हैं कि वह कंपनियों द्वारा किए जा रहे जंक फूड के उत्पादन में नियंत्रण लाएं। दरअसल, इन जंक फूड में ऐसे रसायन मोटापा, गैर संचारी रोगों जैसे डायबिटीज, उच्च रक्तचाप और हृदय रोगों की महामारी का ईधन हैं। यह भी एक पुरानी प्रकृति व बड़े संचयी बोझ है और जो आवश्यक ध्यान खींचने में विफल रहते हैं।

अमित खुराना

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