क्यों नहीं बनते इनोवेशन में नंबर वन?

देश के काबिल युवा जब भी कोई इनोवेशन पेश करते हैं, तो उन्हें देख-सुन कर हम सभी हर्षित होते हैं। पिछले कुछ वर्षों से हमारे देश में इनोवेशन को इनकरेज करने की लगातार कोशिशें हो रही हैं। इसका नमूना महानगरों से लेकर छोटे शहरों और आइआइटी से लेकर स्कूल-कॉलेज तक

By Babita kashyapEdited By: Publish:Mon, 15 Dec 2014 12:15 PM (IST) Updated:Mon, 15 Dec 2014 12:21 PM (IST)
क्यों नहीं बनते इनोवेशन में नंबर वन?

देश के काबिल युवा जब भी कोई इनोवेशन पेश करते हैं, तो उन्हें देख-सुन कर हम सभी हर्षित होते हैं। पिछले कुछ वर्षों से हमारे देश में इनोवेशन को इनकरेज करने की लगातार कोशिशें हो रही हैं। इसका नमूना महानगरों से लेकर छोटे शहरों और आइआइटी से लेकर स्कूल-कॉलेज तक में लगने वाले इनोवेशन फेयर्स में देखा जा सकता है। हालांकि देश की विशाल युवा आबादी को देखते हुए इन प्रयासों को अभी भी मामूली ही कहा जाएगा। कुछ दिन पहले आई युनाइटेड नेशंस की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत दुनिया का सबसे युवा देश है, जहां की 35.6 करोड़ आबादी युवा है। यानी युवा आबादी के मामले में हम नंबर वन हैं, जबकि चीन 26.9 करोड़ की युवा आबादी के साथ नंबर दो पर है। दुनिया के सबसे समृद्ध माने जाने वाले अमेरिका में महज 6.5 करोड़ युवा ही हैं। संयुक्त राष्टï्र ने अपनी रिपोर्ट में इन युवाओं को 'जन-धनÓ कहा है, लेकिन सवाल यह है कि हम इस युवा जन-धन का कितना और कैसा उपयोग कर पा रहे हैं? क्या हम उन्हें समुचित तरीके से तराशने के लिए उपयुक्त प्लेटफॉर्म तैयार कर पा रहे हैं? पिछले कुछ वर्षों से हम अपनी विशाल युवा आबादी पर इतराते तो रहे हैं, लेकिन आइटी जैसी फील्ड में अपनी पहल पर आगे बढऩे और दुनिया में भारत की पहचान बनाने वाले युवा टैलेंट को छोड़ दें, तो बाकी दूसरे क्षेत्रों में सरकार, संस्थानों, स्कूलों, कॉलेजों आदि की कोशिशें कुछ खास नहीं कही जा सकतीं।

हमारे यहां विकास की बड़ी-बड़ी बातें तो लगातार की जाती रही हैं, लेकिन विकसित देशों से सबक लेकर अपने बच्चों-युवाओं के टैलेंट को पहचानने और उसे आगे बढ़ाने को लेकर ठोस कदम उठाने पर अभी भी गंभीरता नहीं दिखती। अमेरिका, जर्मनी, जापान, यूके जैसे देशों में जहां बच्चों के नेचुरल इनोवेटिव टैलेंट को निखारने के लिए स्कूल लेवल पर ही समुचित प्लेटफॉर्म मुहैया करा दिया जाता है, वहीं हमारे देश के स्कूलों-कॉलेजों में ऐसा कोई तंत्र नहीं दिखाई देता। उनमें जो लैब हैं भी, वहां प्राय: एग्जाम पास करने की औपचारिकता ही निभाई जाती है। हमारे ज्यादातर आइआइटीज तो इनोवेशंस को बढ़ावा देने का प्रयास करते दिखते हैं, लेकिन छोटे-छोटे जिलों तक में स्थित आइटीआइ और स्कूल-कॉलेज भी इनोवेशन की खान साबित हो सकते हैं। इसके लिए शासन-प्रशासन और स्कूल-कॉलेजों के मैनेजमेंट तक को कारगर पहल करनी होगी, ताकि शुरुआती स्तर पर ही टैलेंट को तराशा जा सके। जब ऐसा होगा, तभी सही मायनों में हम अपने बच्चों के साथ-साथ देश के भविष्य को भी चमकदार बना सकेंगे। बच्चों-युवाओं की प्रतिभा को तराशकर आर्थिक विकास की नई इबारत लिखी जा सकती है। युवा आबादी में नंबर वन होने के साथ-साथ हम इनोवेशन में भी नंबर वन बनकर पूरी दुनिया के लीडर बन सकते हैं...

संपादक

दिलीप अवस्थी

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