नीरी के देखरेख में होगा रोरो माइंस का कायाकल्प
पूरे देश में पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण संस्था नेशनल एनवायरमेंटल इंजीनियरिग रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) के माध्यम से पूरे रोरो माइंस क्षेत्र को पूरी तरह से रिक्लेम करने की दिशा में कार्य शुरू कर दिया गया है।
संवाद सहयोगी, चाईबासा : पूरे देश में पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण संस्था नेशनल एनवायरमेंटल इंजीनियरिग रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) के माध्यम से पूरे रोरो माइंस क्षेत्र को पूरी तरह से रिक्लेम करने की दिशा में कार्य शुरू कर दिया गया है। यह बातें उपायुक्त अरवा राजकमल ने झारखंड सरकार के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से रोरो माइंस क्षेत्र में प्रभावित परिवारों के लिए किए गए कार्यों की समीक्षा के दौरान कही। डीसी ने कहा कि क्षेत्र में स्वच्छ वातावरण निर्मित करने के लिए जो आवश्यक कार्य होंगे। इसको लेकर डीपीआर बनाने का निर्देश मुख्य सचिव द्वारा दिया गया है। क्षेत्र में कई अन्य मूलभूत और आधारभूत संरचनाओं संबंधी कार्य जैसे जल मीनार, पीसीसी सड़क निर्माण कार्य भी शुरू हो गए हैं। उक्त स्थल पर डिस्प्ले बोर्ड भी लगाया गया है। प्राथमिक कार्य करने के उपरांत क्षेत्र के पुनर्नवीकरण का कार्य होगा। उन्होंने कहा कि रोरो माइंस क्षेत्र संबंधी विषय राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के विचाराधीन है। मुख्य सचिव के आदेश के बाद प्रमंडल के आयुक्त की अध्यक्षता में क्षेत्रीय समिति का गठन किया गया है। वहीं पिछले माह रोरो माइंस के क्षेत्र में दो दिवसीय कैंप का आयोजन किया गया। उक्त कैंप में कंपनी के प्रोविडेंट फंड से संबंधित 448 की संख्या में क्लेम फॉर्मेट के अनुसार प्राप्त किए गए साथ ही कुछ आवेदन पेंशन के लिए भी प्राप्त हुए हैं। सभी क्षेत्रीय प्रोविडेंट फंड कमिश्नर को अग्रसारित किए गए हैं। इस दौरान आयुक्त कोल्हान प्रमंडल डॉक्टर मनीष रंजन समेत अन्य संबंधित विभाग के पदाधिकारी मौजूद थे।
झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कर रहा मुआवजे की परिगणना
उपायुक्त ने कहा कि जिस कंपनी ने उस समय उक्त क्षेत्र में एसबेस्टस माइंस चलाकर वहां पर पर्यावरण को प्रदूषित किया है। उस पर्यावरण के प्रदूषण के कारण जो प्रभावित परिवार हैं। उनके पीएफ क्लेम या अन्य मुआवजा और खनन गतिविधियों से पर्यावरण को जो नुकसान पहुंचा है, उनसभी का परिकलन झारखंड स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड द्वारा किया जा रहा है। नीरी के साथ डीपीआर बनने के उपरांत अंतिम मुआवजा के रूप में एनजीटी में झारखंड सरकार द्वारा दावा किया जाएगा।