जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी

सिमडेगा स्थानीय जैन भवन में आयोजित सत्संग सभा में कथावाचक डॉ. पद्मराज जी महाराज ने आज पण्डि

By JagranEdited By: Publish:Mon, 11 Mar 2019 09:16 PM (IST) Updated:Mon, 11 Mar 2019 09:16 PM (IST)
जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी
जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी

सिमडेगा: स्थानीय जैन भवन में आयोजित सत्संग सभा में कथावाचक डॉ. पद्मराज जी महाराज ने आज पण्डित कौन? के बारे में विश्लेषण किया। उन्होंने बताया तीर्थंकरों की भाषा में, जो क्षण को जानता है वहीं पण्डित है। पण्डित का अर्थ है ज्ञानी और ज्ञानी का लक्षण है वर्तमान में रहना। जो पूर्णत: वर्तमान में जीता है वहीं पण्डित अर्थात ज्ञानी है। साधारणतया व्यक्ति अतीत या अनागत में जीने का अभ्यासी होता है। ऐसा व्यक्ति निरन्तर कर्मबन्धन करता रहता है। कर्मबन्धन को रोकने का एक ही उपाय है वर्तमान में जीना।

महाराज जी ने आगे बताया ज्ञानी व्यक्ति सोए हुओं के बीच में रहता हुआ भी जागृत रहता है। सचमुच में प्रतिक्षण जागृत रहने वाला ही वर्तमान क्षण को जी पाता है। कहा भी है, वर्तमान वर्ते सदा सो ज्ञानी जगमांय। मन की चंचलता से भी मुक्ति पाने के लिए वर्तमान में जीना आवश्यक है। जो वर्तमान में नहीं जी पाते वे न चाहते हुए भी अवांछनीय कर्मो से बच नहीं पाते। स्वयं के आध्यात्मिक विकास का यह सर्वोत्तम मार्ग है।

स्वामी जी ने आगे कहा जिसकी जैसी भावना होती है वह वैसा ही परिणाम प्राप्त करता है। जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। संसार मे हमारा जीवन हमारी भावना का ही साकार रूप है।अपवित्र भावना से किया गया दान, तप, सेवा भी व्यर्थ हो जाते हैं जबकि शुद्ध भावना रखने वाला व्यक्ति बिना कुछ किये भी जगत का स्वामी बन जाता है।

सभा में श्रेणिक कथा और प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम के सफल प्रतिभागियों को अतिथियों के हाथों से पुरस्कार दिए गए। तीर्थंकर महावीर आरती और मंगलपाठ के बाद गुप्तदानी परिवार की तरफ से प्रसाद का वितरण किया गया। इस मौके पर प्रधान अशोक जैन, ओपी अग्रवाल, सुशील जैन, आरपी. शर्मा, गुलाब जैन, विष्णु बोंदिया, राजू अग्रवाल, बजरंग मित्तल, सीताराम अग्रवाल, महावीर मित्तल, कौशल रोहिल्ला, हेमा बोंडिया, सरोज बामलिया, शकुंतला जैन, उमा जैन, सारिका जैन, विमला बंसल, विमला रोहिल्ला, कुसुम शर्मा आदि उपस्थित थे।

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