राजमहल के जंगलों में 24 प्रकार के औषधीय पौधे

जागरण संवाददाता साहिबगंज राजमहल की पहाड़ियों पर स्थित जंगलों में करीब 24 प्रकार के औ

By JagranEdited By: Publish:Fri, 22 May 2020 07:50 AM (IST) Updated:Fri, 22 May 2020 07:50 AM (IST)
राजमहल के जंगलों में 24 प्रकार के औषधीय पौधे
राजमहल के जंगलों में 24 प्रकार के औषधीय पौधे

जागरण संवाददाता, साहिबगंज : राजमहल की पहाड़ियों पर स्थित जंगलों में करीब 24 प्रकार के औषधीय पौधे हैं जिनका उपयोग दवाओं के निर्माण में होता है। ये पौधे यहां के जंगलों में जहां-तहां मिल जाते हैं। आदिवासी समाज के लोग इलाज के लिए इसका प्रयोग भी करते हैं। आदिवासी बहुल इलाकों में लगनेवाले साप्ताहिक हाट में इसकी दुकानें सजती हैं और खरीद बिक्री भी होती है। चिरैता, गिलोय सहित कुछ अन्य औषधीय पौधे कभी-कभार शहरों तक भी पहुंच जाते हैं। अगर उनके संग्रह व मार्केटिग की व्यवस्था कर दी जाए तो यहां के सैकड़ों लोगों को रोजगार भी मिल सकता है। दवा कंपनियों को इन जड़ी-बूटियों की आपूíत करनेवाली कंपनी मेसर्स सुल्ताने सेवन ब्रदर्स हवर्स सप्लाई कंपनी के संचालक मोहम्मद युनूस आलम कहते हैं कि इन जड़ी-बूटियों की महाराष्ट्र व कर्नाटक में काफी डिमांड है। वहां दवा की कई कंपनियां हैं जहां इससे दवा का निर्माण किया जाता है। हालांकि, साहिबगंज से ट्रांसपोíटंग की बेहतर व्यवस्था नहीं है जिस वजह से परेशानी होती है। वे कहते हैं कि इन जड़ी-बूटियों के प्रसंस्करण की यहां व्यवस्था हो जाए तो उसे दवा कंपनियों को भेजना आसान हो जाएगा। भेजने का खर्च कम होगा और उसके संग्रह में लगे लोगों को अच्छी आय हो सकेगी। कौन-कौन औषधीय पौधे : चिरैता, अश्वगंधा, कालमेघ, खैर, कवाच बीज, गिलोय, वनतुलसी, धतुरा, निर्गुडी, पलास, पूर्णनाका, बेल, जंगली प्याज, गूलर, छतवन, बहेड़ा, सेमल मुसली, सतावर, चिरचिरी, सोनपाठा, रिगेनी, भुई आंवला, धातकी आदि। एक दशक तक खूब होता था कारोबार : एक दशक पूर्व तक इन जड़ी-बूटियों का खूब कारोबार होता था। मेसर्स सुल्ताने सेवन ब्रदर्स हवर्स सप्लाई कंपनी को वन विभाग ने जड़ी-बूटियों के संग्रह का लाइसेंस दिया था। जड़ी-बूटी का संग्रह करने वाली संभवत: राज्य की यह पहली है। जैव विविधता अधिनियम 2002 राज्य में लागू होने के बाद उस कंपनी के लाइसेंस का नवीकरण नहीं किया गया। जैव विविधता अधिनियम 2002 के तहत पंचायतों में ग्राम वन प्रबंधन समिति का गठन करना था। पंचायतों में स्थित वनोत्पादों से मिलने वाली रायल्टी का उपयोग पंचायत के विकास में करना था लेकिन वह बहुत सफल नहीं हुआ। इस वजह से इस काम में लगे लोगों का भी रोजगार समाप्त हो गया। जंगलों में लगा देते आग : पहाड़ों व उसके आसपास रहनेवाले लोग हर साल फरवरी-मार्च में महुआ चुनने व शिकार करने के लिए जंगलों में आग लगा देते हैं जिस वजह से अधिकतर औषधीय पौधे नष्ट हो जाते हैं। वनों की जानकारी रखनेवाले लोगों का कहना है कि अगर ग्रामीणों को जागरूक कर औषधीय पौधों को एकत्र कराया जाए तो हजारों लोगों को रोजगार मिल सकता है। -------------

राजमहल पर्वत श्रृंखला की पहाड़ियां साहिबगंज से लेकर गोड्डा व पाकुड़ जिले तक फैली हुई हैं। इन पहाड़ियों पर स्थित जंगलों में औषधीय पौधों का विशाल भंडार है जिसके संग्रहण व मार्केटिग की सही व्यवस्था हो तो हजारों लोगों को रोजगार मिल सकता है। यहां के आदिवासियों को रोजगार की तलाश में कहीं और जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

रामभरत, अवकाशप्राप्त वन प्रमंडल पदाधिकारी

chat bot
आपका साथी