लाडले की शहादत पर गर्व पर चीन से बदला लेने का दम

साहिबगंज सदर प्रखंड के डिहारी गांव के कुंदन ओझा की शहादत पर गांव के लोगों को गर्व भी

By JagranEdited By: Publish:Thu, 18 Jun 2020 06:53 PM (IST) Updated:Fri, 19 Jun 2020 06:15 AM (IST)
लाडले की शहादत पर गर्व पर चीन से बदला लेने का दम
लाडले की शहादत पर गर्व पर चीन से बदला लेने का दम

साहिबगंज: सदर प्रखंड के डिहारी गांव के कुंदन ओझा की शहादत पर गांव के लोगों को गर्व भी है और चीन के कारनामे को लेकर गुस्सा भी। गांव का हर नौजवान चीन से बदला देने का दम भर रहा है। कुंदन गांव का अकेला युवा नहीं था जो देश सेवा के लिए कसम खाकर चीन बॉडर पर लड़ रहा था। गांव में अनेक ऐसे युवा हैं जो देश की सेवा कर रहे हैं। कई युवा गांव में हैं वे भी देश सेवा करने का जज्बा रखते हैं। शहीद कुंदन ओझा के दोनों भाई मुकेश ओझा व कन्हैया ओझा बताते हैं कि अपने भाई की शहादत पर गर्व तो है परंतु मोदी को चीन से बदला लेना चाहिए। कभी अंग्रेजों के जमाने में नील की खेती के लिए डिहारी गांव की पहचान होती थी। गांव में कुंदन के शहीद होने पर हलचल ज्यादा है जबकि आम तौर पर गांव शांत रहता है।

शहीद कुंदन ओझा अपने पीछे पत्नी को दोहरा दर्द दे गया है जिसे लेकर पत्नी नेहा जी रही है। एक तरफ नवजात लाडली तो दूसरी तरफ पति के खोने का दर्द। जब भी कोई घर पर जाता है अंदर जाने पर रोने के सिवा शांत रहती है। परिवार के सभी लोगों को जिसमें पिता रविशंकर ओझा व माता भवानी देवी बोझिल नजरों से देखती हैं और रोना शुरू कर देती हैं। कमाउ सपूत के जाने का दर्द मां व पिता को अंदर तक झकझोर कर रख दिया है। गांव के लोग कुछ समय तक शांत कराते हैं परंतु पिता अपने बेटे के पार्थिव शरीर के आने के इंतजार में टूट चुके हैं। एनएच 80 के किनारे डीहारी गांव में अधिकारियों का आना जाना लगा हुआ है। शहीद का तिरंगा में लिपटा शरीर जब गांव पहुंचेगा तो स्थिति को परिवार को संभालना आसान नहीं होगा। डीहारी गांव के लोग बताते हैं कि पहली बाद गांव का कोई सपूत सेना में रहने के दौरान बार्डर पर शहीद हुआ है। इस पीड़ा से पूरा गांव सदमे में हैं।

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