Yogini Ekadashi 2020: योगिनी एकादशी व्रत करने से हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने जितना फल

Yogini Ekadashi 2020 प्रातकाल विधिविधान पूर्वक भगवान नारायण की पूजन करने एवं श्रीविष्णु सहस्त्रनामार्चणा मंत्र का जाप करने वाले को कोढ़ व वृक्ष काटने के पाप से भी मुक्ति मिलती है।

By Alok ShahiEdited By: Publish:Fri, 12 Jun 2020 06:23 AM (IST) Updated:Wed, 17 Jun 2020 06:55 AM (IST)
Yogini Ekadashi 2020: योगिनी एकादशी व्रत करने से हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने जितना फल
Yogini Ekadashi 2020: योगिनी एकादशी व्रत करने से हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने जितना फल

रांची, जासं। Yogini Ekadashi 2020 आज योगिनी एकादशी है। यह एकादशी व्रत करने से हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने जितना फल मिलता है। आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी भी कहा जाता है। साल के अन्य एकादशी के अपेक्षा योगिनी एकादशी काे व्रत व पूजा अर्चना से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

मान्यता है कि योगिनी एकादशी के दिन व्रत और भगवान विष्णु की पूजा हजारों ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर होता है। पंडित अरुण राज के अनुसार इस दिन प्रात:काल विधिविधान पूर्वक भगवान नारायण की पूजन करने एवं श्रीविष्णु सहस्त्रनामार्चणा मंत्र का जाप करने वाले को कोढ़ व वृक्ष काटने के पाप से भी मुक्ति मिलती है। साथ ही, मृत्यु को प्राप्त हुए सात पीढ़ियों को उनके पापों से मुक्ति मिलती है।

योगिनी एकादशी पर राजधानी के विभिन्न नारायण मंदिरों में भगवान विष्णु की विशेष पूजा अर्चना हो रही है। खासकर रातु रोड बालाजी मंदिर में नारायण रूप भगवान बालाजी का विश्वरूप दर्शन कराने के बाद श्रीविष्णु सहस्त्रनामार्चणा का पाठ किया जाएगा। हरमू रोड श्रीश्याम मंदिर, अग्रसेनपथ श्रीश्याम मंदिर में भी श्रीश्याम प्रभु का दिव्य श्रृंगार के उपरांत विभिन्न प्रकार के मिष्ठान्न का भोग समर्पित किया जाएगा। रात्रि में श्रीश्याम प्रभु के चरणों में भक्ति भजन पेश किए जाएंगे।

एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त

एकादशी तिथि आरंभ: 16 जून प्रात: 5:40 बजे से एकादशी तिथि समाप्त: 17 जून सुबह 7:50 तक पारण: 18 जून प्रात: 5.28 बजे के बाद

क्या है योगिनी एकादशी की महिमा

मान्यता के अनुसार स्वर्गलोक के अलकापुरी नगर के कुबेर नामक राजा भोलेनाथ का बड़ा भक्त था। चाहे जो परिस्थिति हो भगवान की पूजा निश्चित करता था। वहीं हेम नामक माली प्रतिदिन पूजा के लिए फूल देता था। एक दिन फूल तोड़कर तो ले आया लेकिन पूजा में समय है यह सोचकर पत्नी के साथ रमण करने लगा। इधर, जब पूजा बीतने के बाद भी जब माली फूल लेकर नहीं पहुंचा तो कुबेर राजा को क्रोध आया और पत्नी वियोग का श्राप दे दिया। साथ ही, कोढ़ ग्रस्त होकर धरती पर विचरण का श्राप दे दिया।

इधर, धरती पर आने के बाद कोढ़ और भूख-प्यास की पीड़ा के बावजूद वो नियमित रूप से भगवान की शिव की आराधना में जुटा रहा। एक दिन घूमते-घूमते महर्षि मार्कण्डेय के आश्रम में पहुंच गया। महर्षि को उसकी स्थिति पर बड़ा दया आयी और उन्होंने माली को योगिनी एकादशी करने को कहा। महर्षि के बतायेनुसार योगिनी एकादशी व्रत करने से माली को शाप से मुक्ति मिल गई और सुख पूर्वक जीवन जीने लगा।

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