World Hindi Day 2021: पिता ने देश में रहकर की सेवा, बेटी विदेश में लहरा रही हिन्दी का परचम

हिन्दी अब हिन्दुस्तान से निकलकर विश्व भाषा बनने की तरफ बढ़ रही है। भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया में हिन्दी साहित्य लिखा जा रहा है। पढ़ा जा रहा है। हिन्दी को विश्व पटल पर गौरव दिलाने के लिए झारखंड की प्रतिभाएं पूरे मनोयोग से लगी हुई हैं।

By Vikram GiriEdited By: Publish:Sun, 10 Jan 2021 10:32 AM (IST) Updated:Sun, 10 Jan 2021 10:45 AM (IST)
World Hindi Day 2021: पिता ने देश में रहकर की सेवा, बेटी विदेश में लहरा रही हिन्दी का परचम
पिता ने देश में रहकर की सेवा, बेटी विदेश में लहरा रही हिन्दी का परचम। जागरण

रांची, ब्रजेश मिश्र । हिन्दी अब हिन्दुस्तान से निकलकर विश्व भाषा बनने की तरफ बढ़ रही है। भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया में हिन्दी साहित्य लिखा जा रहा है। पढ़ा जा रहा है। हिन्दी को विश्व पटल पर गौरव दिलाने के लिए झारखंड की प्रतिभाएं पूरे मनोयोग से लगी हुई हैं। प्रतिष्ठित साहित्यकार प्रोफेसर दिनेश्वर प्रसाद (दिवंगत) की बेटी इला प्रसाद को हिन्दी साहित्य में दिए गए योगदान के लिए द संडे इंडियन ने वर्ष 2011 में 111 श्रेष्ठ रचनाकारों की श्रेणी में शामिल किया। इला लोन स्टार कालेज सिस्टम के अंतर्गत संचालित यूनिवर्सिटी पार्क में भौतिकी की प्रोफेसर हैं। वह अमेरिका के न्यूयार्क में संचालित विश्व हिन्दी न्याय से जुड़ी हैं। यह संस्था अमेरिका में हिन्दी जगत के नाम पर पत्रिका का प्रकाशन करता है। इला इस पत्रिका की  सहायक संपादक हैं।

पिता ने देश में रहकर हिन्दी की सेवा की। अब बेटी विदेश में रहकर हिन्दी को समृद्ध कर रही है। इला ने कविता, कहानी, उपन्यास, संस्मरण सहित सभी साहित्यिक विधाओं में रचनाएं की हैं। अब तक पांच पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। तीन प्रकाशित होने वाली हैं। इला की रचनाओं का अनुवाद अंग्रेजी के अलावा मराठी, तेलुगु, ओडिया तथा नेपाली भाषा में हो चुका है। इला की बहन मृदुला रांची के राम लखन सिंह कालेज में हिन्दी की असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। वह वर्तमान में रांची के मोरहाबादी में रहती हैं।

पिता प्रोफेसर दिनेश्वर प्रसाद रांची विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष तथा कला संकाय के अधिष्ठाता रहे। प्रख्यात शिक्षाविद  कामिल बुल्के के निकटतम सहयोगी रहे। हिन्दी साहित्य के क्षेत्र उनके योगदान को देखते हुए सर्वोच्च पुरस्कार राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। पिता की ओर से की जा रही हिन्दी की सेवा को देखते हुए दोनों बेटी इला व मृदुला ने साहित्य के क्षेत्र में कदम रखा। गत आठ नवंबर 2020 को विश्व स्तर पर हिन्दी की ताकत का एहसास कराने के लिए विश्व रंग 2020 नाम से आनलाइन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें दुनिया के 18 अलग-अलग देशों में रहकर हिन्दी की सेवा करने वाले रचनाकारों ने हिस्सा लिया। इला इस वैश्विक स्तर पर आयोजित कार्यक्रम की आयोजन समिति में शामिल रहीं।

विज्ञान के लेख व शोध पत्र का कर रही हिन्दी में अनुवाद

इला बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से पीएचडी हैं। आइआइटीबी में पोस्ट डाक्टोरल किया है। वर्तमान में विज्ञान के लेख व शोध पत्रों का हिन्दी में अनुवाद कर रही हैं। विज्ञान की छात्रा के रूप में उन्होंने अपने छात्र जीवन में ही यह अनुभव किया था कि भाषा की कठिनाई के कारण हिन्दी क्षेत्रों से आने वाले विद्यार्थी विज्ञान के सर्वश्रेष्ठ ज्ञान से वंचित रह जाते हैं। अब तक उन्होंने विज्ञान के क्षेत्र के कई चर्चित लेख व शोध पत्रों का अनुवाद पूरा कर लिया है। अब इसका संकलन तैयार कराने वाली हैं। इला ने बताया कि यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि अपनी भाषा में अध्ययन बहुत सारी समस्याओं को दूर कर देती है। पठन-पाठन अपेक्षाकृत सहज हो जाता है।

यह रचनाएं हो चुकी हैं प्रकाशित

धूप का टुकड़ा, रोशनी आधी अधूरी सी, तुम इतना क्यों रोई रुपाली, इस कहानी का अंत नहीं,उस स्त्री का नाम, संपादन सहयोग : हिन्दी चेतना, कहानियां अमेरिका से।

chat bot
आपका साथी