Jharkhand History: ब्रिटिश विरोधी नारेबाजी पर चली गई नौकरी, पकौड़ी बेचकर लड़ी आजादी की लड़ाई, पढ़िए नंदलाल की कहानी

Indian Freedom Struggle भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक से बढ़कर एक स्वतंत्रता सेनानी हुए हैं। उनके त्याग और बलिदान की कहानियां लोगों को प्रेरित करती हैं। आज की पीढ़ी के लिए उनकी कहानियां और भी प्रासंगिक हैं। इन्हीं सेनानियों में एक थे नंदलाल प्रसाद। पढ़िए उनकी संघर्ष कहानी।

By M EkhlaqueEdited By: Publish:Sun, 14 Aug 2022 06:48 PM (IST) Updated:Sun, 14 Aug 2022 06:50 PM (IST)
Jharkhand History: ब्रिटिश विरोधी नारेबाजी पर चली गई नौकरी, पकौड़ी बेचकर लड़ी आजादी की लड़ाई, पढ़िए नंदलाल की कहानी
Jharkhand In Freedom Struggle: स्वतंत्रता सेनानी नंदलाल प्रसाद और उनकी पत्नी सुमित्रा देवी।

पलामू, {मृत्युंजय पाठक}। Indian Freedom Struggle In Jharkhand 15 अगस्त, 2022 को भारत को आजाद हुए 75 वर्ष पूरे हो गए। इस दिन को भारत के लिए एक नई शुरुआत के तौर पर देखा जा रहा है। इस खास मौके को आजादी के अमृत महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। हम सब जानते हैं कि अंग्रेजों की गुलामी से आजादी यूं ही नहीं मिली। यह स्वतंत्रता सेनानियों की बड़ी संख्या में बलिदान, त्याग, तपस्या और संघर्ष का परिणाम है। ब्रिटिश राज के खिलाफ जंग छेड़ी और भारत से खदेड़ने में अहम भूमिका निभाई। ऐसे नायकों में पलामू से भी कई नाम हैं। इन्हीं में एक नाम है- नंदलाल प्रसाद। इनका संघर्ष और त्याग अविस्मरणीय है। देश की आजादी के लिए अंग्रजों के खिलाफ संघर्ष करते रहे। जेल गए तो नौकरी गई। नौकरी जाने के बाद घर परिवार चलाने के लिए पकौड़ी और जलेबी बेची लेकिन फिरंगियों के सामने घुटने नहीं टेके।

गिरिवर हाई स्कूल डालटनगंज में शिक्षक थे नंदलाल प्रसाद

देश की आजादी के लिए नंदलाल प्रसाद के संघर्ष की कहानी प्रेरणादायक है। वे तो इस दुनिया में नहीं हैं। 1995 में निधन हो गया। उनकी धर्मपत्नी सुमित्रा देवी आजादी के अमृत महोत्सव का गवाह बन रही हैं। उम्र 90 के करीब है। बहुत कुछ बोलने और बताने की स्थिति में नहीं हैं। पिता से सुनी कहानी और अपनी मां सुमित्रा देवी से बात कर बेटे दिनेश कुमार (67) ने देश की आजादी के लिए संघर्ष की कहानी सुनाई। गिरिवर हाई स्कूल, डालटनगंज (अब मेदिनीनगर) में नंदलाल प्रसाद शिक्षक थे। 1942 में भारत छोड़़ो आंदोलन के दौरान स्कूल में अंग्रेजों के खिलाफ नारेबाजी की। गिरफ्तार कर लिए गए। हजारीबाग जेल में बंद कर रखा गया। जेल गए तो नौकरी चली गई। जेल से छूटने के बाद घर परिवार चलाने के लिए कापरेटिव बैंक में नौकरी कर ली। यहां भी उन्होंने अंग्रेजों खिलाफ रणनीति बनाकर काम करते। नारेबाजी करते और कर्मचारियों को संघर्ष के लिए प्रेरित करते। यह नौकरी भी चली गई। इसके बाद घर चलाने के लिए पकौड़ी और जलेबी बेची। इसके साथ-साथ अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष करते रहे। बड़े भाई उमाचरण लाल ने नंदलाल को एक टाइपराइटर खरीद कर दी। इसे लेकर वे पलामू कचहरी में जाते और टाइप करने से जो कुछ आय होती उससे घर-परिवार चलाते। इस दौरान जेल से आना-जाना लगा रहा।

आजादी के बाद डालटनगंज में कामर्शियल इंस्टीच्यूट खोला

आजादी के बाद 1948 में नंदलाल ने हमीदगंज, डालटनगंज में नंदलाल कामर्शियल इंस्टीच्यूट खोला। यहां शार्टहैंड और टाइप सिखाई जाती। यहां से शार्टहैंड का प्रमाण पत्र मिलना एक तरह से नौकरी की गारंटी थी। आज भी करीब दस हजार लोग इस संस्थान से निकलकर नौकरी कर रहे हैं। 1978 से इस संस्थान का संचालन नंदलाल प्रसाद के पुत्र दिनेश कुमार कर रहे हैं। कुमार के मुताबिक पिता का एक सपना अधूरा रह गया। इस बात का अफसोस है। वे पलामू के स्वतंत्रता सेनानियों के इतिहास पर किताब लिखना चाहते थे। प्रकाशन के लिए पटना के प्रेम में पांडुलिपि दी थी। उनके निधन के बाद किताब का प्रकाशन न हो सका। बहुत कोशिश की लेकिन पांडुलिपि का पता नहीं चला।

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