स्वभाव के अनुसार जीना ही धर्म है

दिव्य श्रीराम कथा आयोजन समिति के द्वारा कोकर बिजली आफिस मैदान में रामकथा का आयोजन किया गया। कथा के चौथे दिन सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु जुटे।

By Edited By: Publish:Sat, 30 Jun 2018 09:28 AM (IST) Updated:Sat, 30 Jun 2018 10:05 AM (IST)
स्वभाव के अनुसार जीना ही धर्म है
स्वभाव के अनुसार जीना ही धर्म है
रांची : दिव्य श्रीराम कथा आयोजन समिति, रांची की ओर से कोकर बिजली मैदान में चल रही रामकथा के चौथे दिन स्वामी उमाकांत सरस्वती महाराज ने धर्म की व्याख्या की। कहा, धर्म क्या है, पिता का धर्म क्या है? पुत्र का धर्म क्या है? आप लाख मंदिर जाएं, अगर आप अपने स्वभाव के अनुकूल व्यवहार नहीं करते हैं तो ये अधर्म है। तब, न ही मंदिर जाने का लाभ मिलेगा और न ही किसी सेवा का। अपने स्वभाव के अनुसार जीना ही धर्म है। धर्म में राजनीति नहीं होनी चाहिए। राजनीति में धर्म होना चाहिए। धर्मो रक्षति रक्षित: यानी जब हम धर्म की रक्षा करेंगे तो धर्म हमारी रक्षा करेगा। धर्म का मतलब है स्वभाव। महाराज ने आगे कहा, हमारी प्रकृति है सत्य। यदि हम असत्य की ओर जा रहे हैं तो अपनी मूल प्रकृति को छोड़ रहे हैं। यदि हम पेड़ काट रहे हैं और उसकी उसकी आवश्यकता नहीं है तो यह आने वाले समय में नुकसान पहुंचाएगा और हम अधर्म करेंगे। उमाकांत महाराज ने भक्तों को बताया, जब इस धरती पर धर्म की हानि होने लगती है तो अधर्म की जय होने लगती है। जब सज्जनों को कष्ट होने लगता है, जब पापियों का अत्याचार बढ़ता है, जब धर्मशास्त्र लुप्त होने लगता है, साधु, संत गाय को कष्ट होने लगती है, जब लोग त्राहि-त्राहि करने लगते हैं, तब भगवान अपने भक्तों के कल्याण के लिए और धर्म की रक्षा के लिए अवतरित होते हैं। उन्होंने कहा कि जब-जब धर्म की हानि होती है, प्रभु अवतरित होते हैं। डॉ. दिलीप सोनी व डॉ. गीता सोनी ने व्यासपीठ की पूजा की। कार्यक्रम में सुरेश सिंह, अमरनाथ, रवि अग्रवाल, राजू वर्मा, विनोद सोनी, अजय अग्रवाल, प्रदीप कुमार वर्णवाल सहित सैकड़ों श्रद्धालु उपस्थित थे।
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