क्रोध का त्याग करना ही क्षमा है : आचार्य सुबल

पर्यूषण पर्व पर रांची के अपर बाजार स्थित जैन मंदिरन में श्रद्धालुओं का जमवाड़ा लगा। आचार्य सुबल महराज ने लोगों के अपनी वाणी से मंत्रमुग्ध किया।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 15 Sep 2018 08:44 AM (IST) Updated:Sat, 15 Sep 2018 08:44 AM (IST)
क्रोध का त्याग करना ही क्षमा है : आचार्य सुबल
क्रोध का त्याग करना ही क्षमा है : आचार्य सुबल

जागरण संवाददाता, राची

धर्म किसी परंपरा से बंधा नहीं होता है। यह अपने आप में स्वतंत्र होता है। उपदेश तो धर्म को ग्रहण करने के लिए दिये जाते हैं, लेकिन अज्ञानतावश हमने इसे परंपराओं से बांध रखा है। यह पर्व परंपरा नहीं है, बल्कि हमारे जीवन का सुधारने एवं आत्मशुद्धि करने का अवसर प्रदान करता है।

ये बातें शुक्रवार को पर्यूषण पर्व के पहले दिन उत्तम क्षमा धर्म पर आचार्य सुबल महाराज ने कही। उन्होंने क्षमा धर्म की उपयोगिता बताई, कहा कि उत्तम क्षमा का सही अर्थ है अपने हृदय की बैर गांठ खोलना। जिनके प्रति हमारा दुष्टता का व्यवहार है, उनसे क्षमा नहीं मांगते बल्कि जिनके प्रति प्रेम व्यवहार अच्छा है, उन्हीं से क्षमा मांगते हैं। हमारे हृदय में जब तक जीव दया का भाव नहीं आएगा, तब तक हमारे अंदर क्षमा का भाव नहीं आता है। आचार्य ने कहा, क्रोध का त्याग करना ही क्षमा है। वचन से क्षमा बोलना क्षमा मात्र नहीं है। इसकी परिभाषा समझना जरूरी है। इसके पूर्व सुबह साढे़ पांच बजे जिनेंद्र भगवान का सामूहिक अभिषेक किया गया। जैन मंदिर अपर बाजार एवं वासुपूज्य जिनालय में भक्तों की भीड़ रही। अभिषेक के बाद नित्य पूजन आदि किया गया। डॉ. दीदी एवं हेमंत सेठी ने भजन पेश किया। इसके साथ पांच बजे ही सुबल महाराज ने श्रावक संस्कार शिविर का शुभारंभ किया। ध्यान से शुरुआत की गई। दोपहर में सामाजिक, स्वतंत्र अध्ययन, प्रश्नोत्तर, रत्‍‌नमालिका आदि का विवेचन हुआ। संध्या श्रावक प्रतिक्रमण, आचार्य वंदना, आरती आदि की गई। सामूहिक आरती के बाद पश्चात भिंड, मध्यप्रदेश से आए पं जयकुमार शास्त्री ने उत्तम क्षमा पर प्रकाश डालते हुए क्षमा की उपयोगिता बताई। इस मौके पर जिनवाणी एवं वाचन प्रतियोगिता भी हुई।

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