जरूरतों से मुंह मोड़ा, सड़कों पर फिसलते रहे माननीय..

झारखंड के लोकसभा और राज्यसभा सांसदों ने अपनी सांसद निधि का आधा हिस्सा सिर्फ सड़कों पर ही खर्च कर दिया।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 31 Aug 2018 10:27 AM (IST) Updated:Fri, 31 Aug 2018 10:28 AM (IST)
जरूरतों से मुंह मोड़ा, सड़कों पर फिसलते रहे माननीय..
जरूरतों से मुंह मोड़ा, सड़कों पर फिसलते रहे माननीय..

रांची, विनोद श्रीवास्तव। झारखंड की सबसे बड़ी समस्या क्या है? हर कोई कहेगा-गरीबी, बेरोजगारी, अशुद्ध पानी और कुपोषण। लेकिन इन खामियों को दूर करने में हमारे सांसदों की कोई दिलचस्पी नहीं है। उन्हें तो बस हर ओर चकाचक सड़कें ही नजर आती हैं। माननीयों का सबसे ज्यादा ध्यान सड़क बनवाने पर है, जो दूर से नजर तो आता है लेकिन भूख और बीमारी से जूझ रहे लोगों को खास राहत नहीं दे पाता। चालू लोकसभा के दौरान सांसद निधि से इन्हें 350 करोड़ रुपये मिल चुके हैं। जिसका 50 फीसद अब तक सड़क निर्माण पर खर्च किया गया है।

प्रदेश में भूख और बीमारी से मौत के साथ ही नाबालिगों से जुड़ी मानव तस्करी की घटनाएं आम हैं। ऐसे में माननीयों की प्राथमिकता में सड़कों का होना बड़ा सवाल खड़ा करता है। इसके पीछे की मानसिकता चाहे जो रही हो लेकिन बिजली-पानी, शिक्षा स्वास्थ्य, सिंचाई जैसी मूलभूत जरूरतें लगातार उपेक्षित रह रही हैं।

हर साल मिलते हैं पांच करोड़

23 दिसंबर 1993 को जिस तामझाम और जिन उद्देश्यों के साथ संसद सदस्य स्थानीय विकास योजना की शुरुआत हुई, उसे मेंटेन नहीं रखा जा सका। 90 के दशक में इस मद में सासदों को महज पाच लाख रुपये मिलते थे। बाद के 25 वषरें में इस राशि में 100 गुना इजाफा हुआ। पाच लाख रुपये की यह राशि बढ़कर प्रति संसद अब प्रति वर्ष पाच करोड़ रुपये हो गई है।

सांसद मद के आधे पैसे सड़क और पुल-पुलियों पर खर्च : संबंधित क्षेत्रों की मूलभूत आवश्यकताओं पर माननीयों की नजर-ए-इनायत नहीं हुई। बिजली, पानी, स्वास्थ्य, स्वच्छता, सिंचाई, शिक्षा, खेल आदि से संबंधित योजनाएं हाशिये पर रही।

हमारे सासद सड़कों और पुल-पुलियों के निर्माण पर ही बढ़ते और फिसलते रहे। वित्तीय वर्ष 2011-12 से 2014-15 के बीच चयनित योजनाएं इसकी बानगी है। इस अवधि में सासदों ने इस मद में सासद निधि की लगभग आधी राशि खर्च कर डाली। संबंधित वित्तीय वर्ष में कुल राशि का क्रमश : 44, 44, 45 और 44.83 फीसद हिस्सा खर्च किए गए।

हाशिये पर पानी, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य व सिंचाई : झारखंड के सासदों की प्राथमिकता में पानी, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य, खेल व सिंचाई जैसी सुविधाएं शुरू से ही हाशिये पर रही।

पिछले तीन वित्तीय वषरें के सासदों का लेखा-जोखा इसकी बानगी भर है। वित्तीय वर्ष 2011-12 की बात करें तो सासदों ने अपनी निधि से पेयजल सुविधा के नाम पर 14 फीसद, बिजली पर एक, शिक्षा पर सात, स्वास्थ्य पर एक, जबकि सिंचाई पर महज छह फीसद राशि खर्च की।

वित्तीय वर्ष 2012-13 की बात करें इन सेक्टरों पर सासदों ने क्त्रमश : 15, शून्य, छह, एक तथा छह फीसद तथा वित्तीय वर्ष 2013-14 में 14, शून्य, छह, एक तथा महज छह फीसद राशि खर्च की।

चार बार बढ़ी राशि, अब 25 करोड़ की हो रही माग : 23 दिसंबर 1993 से शुरू हुई संसद सदस्य स्थानीय विकास योजना के तहत प्रति सासद प्रति वर्ष पाच लाख रुपये देने की शुरूआत केंद्र ने की। 1994-95 में यह राशि बढ़ाकर एक करोड़,1998-99 में दो करोड़ तथा वित्तीय वर्ष 2011-12 से यह राशि बढ़ाकर पाच करोड़ रुपये कर दी गई। इस योजना के तहत प्रति वर्ष प्रति सासद जारी होने वाली राशि का 15 फीसद यानी 75 लाख अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों के विकास तथा इसकी आधी राशि अनुसूचित जाति बहुल क्षेत्रों के विकास पर खर्च किए जाने की बाध्यता है। सासद अब पाच करोड़ रुपये की इस राशि को बढ़ाकर सालाना 25 करोड़ करने की माग कर रहे हैं।

फैक्ट फाइल : झारखंड के कुल 20 सांसदों (लोकसभा व राज्यसभा सदस्यों) के खाते में प्रति सदस्य प्रति वर्ष पाच करोड़ के हिसाब से मिले 500 करोड़ रुपये।

अब तक जारी किए जा चुके हैं 227. 50 करोड़।

ब्याज सहित यह राशि होती है 237.42 करोड़।

सासदों ने 233.75 करोड़ रुपये की योजनाओं की अनुशसा की।

जिला स्तर से इस मद में 205.61 करोड़ रुपये योजनाओं के मद में जारी हुए।

183.92 करोड़ रुपये अबतक खर्च हुए।

(आकड़े 16वीं लोकसभा (2014-19) के।

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