Jharkhand Political Updates: डॉक्टरों में सुलह, मरीजों में कलह; पढ़ें राजनीति की कही-अनकही
Jharkhand Political Updates कई और लोग सुलह की उम्मीद लगाकर दोनों में से किसी एक के सहारे घर वापसी की जुगाड़ में थे लेकिन भरत मिलाप के बाद दूसरों की सुध लेने वाला कोई नहीं बचा। अब इस पर ब्रेक लग गया है।
रांची, [आशीष झा]। रामराज का दावा कर कई दलों ने अपनी रोटी सेंकी है। लेकिन, जो रामराज हाथ वाली पार्टी में है, वह दूसरों में कहां। गांधीजी के नाम पर रघुपति राघव राजा राम... दिन रात गाने वाले लोगों ने भरत मिलाप का एक छोटा सा उदाहरण दो दिन पहले दिया। हुआ यूं कि छोटा भाई अचानक बड़े से मिलने उनके घर पहुंच गया। कहते हैं दोनों डॉक्टर भाइयों ने इस बहाने सुलह भी कर ली। तस्वीरें भी मीडिया में भेजीं, लेकिन इस सुलह से मरीजों की समस्या बढ़ गई है। कई और लोग सुलह की उम्मीद लगाकर दोनों में से किसी एक के सहारे घर वापसी की जुगाड़ में थे, लेकिन भरत मिलाप के बाद दूसरों की सुध लेने वाला कोई नहीं बचा। कहते हैं कि भरत मिलाप का यह आइडिया तो केंद्र का था और आगे भी बढ़ाना था, लेकिन इस पर ब्रेक लग गई है।
मैडम की मंजिल
लालटेन छोड़कर मैडम ने जब से कमल दल वालों का साथ पकड़ा है, उनको पकडऩे वाले अब कहीं नहीं दिख रहे हैं। लेकिन, लाल बाबू भी पुराने और मंजे हुए खिलाड़ी हैं। चुपके से उन्हें राज्य की राजनीति से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। सेंटर में बड़ी जिम्मेदारी देकर उन्हें बड़ी मंजिल का आश्वासन भले ही दे दिया गया है, लेकिन उन्हें भी पता है कि इसके पीछे बिहार का चुनाव है। कहते हैं उन्हें बॉर्डर एरिया के आसपास के इलाकों की जिम्मेदारी भी दी जाएगी। इसमें सफलता मिली तो जाहिर तौर पर मैडम का प्रमोशन होगा और नहीं मिली तो भगवान जाने कि मैडम की मंजिल कहां होगी। बहरहाल, लाल बाबू को इस बात का इत्मीनान है कि उन्हें जिसने चुनाव में हरा दिया, उसे घर की राजनीति में मात दे दी। चुनाव परिणाम ही तय कर देगा कि मैडम आगे जाएंगी या उनकी मंजिल कहीं और होगी।
बंगले का बवाल
बड़े अस्पताल का बड़ा बंगला यूं तो बना था बड़े साहब के लिए, लेकिन उसपर बड़े मरीज ने कब्जा कर लिया है। धीरे-धीरे ऐसी परिस्थितियां बनीं कि कब्जे के खिलाफ कोई मुंह खोलकर भी कुछ बिगाड़ नहीं पाया। अब मगर एक बार फिर बवाल होना तय है। नए साहब का आना तय हो गया है और यह भी तय है कि वे कोई पंगा नहीं लेंगे, लेकिन विपक्ष पहले से घात लगाए बैठा है। कहते हैं, कोई बोले ना बोले, विपक्षी तो बंगले को खाली कराने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। बयान तो अभी से जारी होने लगे हैं। प्रेशर पॉलिटिक्स जारी है। देखते हैं इससे बात बनी तो ठीक, वरना केंद्र से कहकर अतिक्रमण के खिलाफ बुलडोजर ही चलवा दिया जाएगा। फिलहाल चुप्पी तो इस कारण है कि यहां कुछ किए, तो बिहार में चुनावी भावनाएं ना भड़क जाएं।
अधिक जोगी मठ...
हम तो शुरू से कह रहे थे कि इतनी बड़ी टीम को संभालना मुश्किल होगा। लेकिन, जिनके हाथों में खुजली हो उन्हें कौन समझाए। अपनी ही पार्टी को लीजिए, जितने विधायक नहीं उससे अधिक प्रवक्ता हो गए हैं। प्रवक्ताओं को संभालने के लिए जिस किसी ने कोशिश की, उसे राजनीति का सामना करना पड़ा। अब सभी ने अपनी-अपनी टोली बना ली है। कोई अध्यक्ष का प्रवक्ता तो कोई नंबर टू का। नंबर तीन, चार, पांच ... सबके प्रवक्ता मिलेंगे। ऊपर से मीडिया पैनेलिस्ट। इतनी बड़ी फौज को संभालने में सभी को कठिनाई हो रही है। ऊपर से एक से एक मंजे हुए खिलाड़ी। कोई बात मानने को तैयार नहीं। अध्यक्ष से लेकर प्रभारी तक की अनसुनी हो रही है। अब सुनने में आया है कि नए कप्तान को ही इस टीम को टाइट करने के लिए तैयार किया जा रहा है। आखिर इमेज का सवाल जो है।