नवंबर में आगनबाड़ी सेविकाओं को बढ़ा हुआ मानदेय : डॉ. लुइस मरांडी

रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड के 38, 432 आंगनबाड़ी केंद्रों से जुड़ी सेविकाओं और सहायिकाओं को नवंबर महीने से बढ़ा हुआ मानदेय देने का मसौदा तैयार हो चुका है। इसका सीधा लाभ विभिन्न केंद्रों से जुड़ी लगभग 77 हजार आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को मिलेगा।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 15 Oct 2018 02:54 PM (IST) Updated:Mon, 15 Oct 2018 02:54 PM (IST)
नवंबर में आगनबाड़ी सेविकाओं को बढ़ा हुआ मानदेय : डॉ. लुइस मरांडी
नवंबर में आगनबाड़ी सेविकाओं को बढ़ा हुआ मानदेय : डॉ. लुइस मरांडी

रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड के 38, 432 आंगनबाड़ी केंद्रों से जुड़ी सेविकाओं और सहायिकाओं को नवंबर महीने से बढ़ा हुआ मानदेय देने का मसौदा तैयार हो चुका है। इसका सीधा लाभ विभिन्न केंद्रों से जुड़ी लगभग 77 हजार आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को मिलेगा। सेविकाओं को इस मद में अब 5900 रुपये, जबकि सहायिकाओं को 2950 रुपये मिलेंगे। सरकार उनके लिए कल्याणकारी सोच रखती है, जिसका एहसास सेविकाओं-सहायिकाओं को निकट भविष्य में होगा। दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में महिला, बाल विकास एवं सामाजिक सुरक्षा सह कल्याण विभाग की मंत्री डॉ. लुइस मरांडी ने विभागीय गतिविधियों पर खुलकर चर्चा की। प्रस्तुत है उनसे बातचीत के मुख्य अंश : सरकार ने सितंबर महीने को पोषण माह के रूप में मनाया। घर-घर पोषण त्योहार का नारा दिया। इसके लिए उसे 13 पुरस्कार भी मिले। इससे इतर आंगनबाड़ी केंद्रों पर पिछले कुछ महीने से पोषाहार का टोटा है, क्या कहेंगी?

-इसके कुछ तकनीकी कारण रहे हैं। विभाग इस मामले में गंभीर है। एजी से फाइल लौट आई है। पूजा बाद इस मामले का निपटारा हो जाएगा। फिर पोषाहार की शिकायत नहीं रहेगी। पूजा का मौसम है। कई जिलों की सेविकाओं-सहायिकाओं को दो से पांच महीने का मानदेय नहीं मिला है। इससे उनमें आक्रोश है। अन्य मांगों को लेकर एक बार फिर आंदोलन की तैयारी है। विभाग की क्या तैयारी है? -पूजा से पूर्व आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के खाते में मानदेय चला जाएगा। ऐसा नहीं होने पर डीएसडब्ल्यूओ और सीडीपीओ को भी वेतन मिलेगा। आंदोलन राज्यहित में नहीं है, उनसे बातचीत की जाएगी। सरकार उनकी मांगों पर गंभीर है। किसी भी तरह का निर्णय लेने से पूर्व कई तरह की प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। चालू वित्तीय वर्ष के छह महीने बीते चुके हैं। बजटीय राशि का 31 फीसद हिस्सा ही खर्च हुआ है। क्या महिलाओं और बच्चों का हक नहीं मारा जा रहा?

- ऐसी बात नहीं है। कई योजनाएं पाइप लाइन में है, इसके सतह पर आते ही यह आंकड़ा खर्च के औसत प्रतिशत के करीब पहुंच जाएगा। राज्य के जनजातियों के हित में जनजातीय परामर्शदातृ समिति ने कई अनुशंसाएं की हैं। इस दिशा में क्या पहल हो रही है।

-चाहे आरक्षण से वंचित जातियों को इसका लाभ देने का मसला हो अथवा आदिवासियों की घटती आबादी के कारणों की पड़ताल की जानी हो। आदिवासी भूमि की खरीद-बिक्री में थाना क्षेत्र की बाध्यता खत्म करने आदि मसले विभागीय समन्वय से सुलझाए जा रहे हैं। मसानजोर डैम पर पश्चिम बंगाल के आधिपत्य पर आपने सवाल खड़ा किया था। क्या यह मामला एक बार फिर ठंडे बस्ते में चला गया?

- ऐसा नहीं है, जनहित में आवाज बुलंद करना जनप्रतिनिधि का दायित्व है। संबंधित मामला मेरे क्षेत्र का है। अन्याय का विरोध लाजमी है। पिछले दिनों इस मामले में दोनों राज्यों के शीर्ष नेतृत्व के बीच वार्ता हुई है। मामला ठंडे बस्ते में जाने का सवाल ही नहीं उठता है। राज्य के जनजातियों के लिए दर्जनों योजनाएं संचालित है। इसमें निश्शुल्क शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास भोजन से लेकर सीधी बहाली तक समाहित है। इसके बावजूद कई मामलों में वे हाशिये पर क्यों है?

- ऐसी बातें नहीं है, स्थिति तेजी से बदल रही है। वे सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्तहो रहे हैं। जनजातीय बच्चों में प्रतिस्पद्र्धा की भावना जाग्रत करने के लिए राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताएं आयोजित की जा रही हैं। स्वास्थ्य और शिक्षा के मामले में उनकी स्थिति पूर्व की अपेक्षा सुदृढ़ हुई है। अगर कोई वास्तव में हाशिये पर है तो सरकार उसके साथ खड़ी है। नागरिकों से गुजारिश है कि वे ऐसे मामले हम तक पहुंचाए।

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