मत पालिये भ्रम, स्वच्छता सिर्फ कोरम; अस्वच्छ गांवों को बांट दिया प्रमाणपत्र Ground report

Ground report देश में नंबर वन कहलाने की होड़ में झारखंड ने खुद को ओडीएफ घोषित कर लिया था। लेकिन सच्चाई इससे अलग है।

By Divya KeshriEdited By: Publish:Wed, 08 Jan 2020 12:18 PM (IST) Updated:Wed, 08 Jan 2020 12:18 PM (IST)
मत पालिये भ्रम, स्वच्छता सिर्फ कोरम; अस्वच्छ गांवों को बांट दिया प्रमाणपत्र Ground report
मत पालिये भ्रम, स्वच्छता सिर्फ कोरम; अस्वच्छ गांवों को बांट दिया प्रमाणपत्र Ground report

रांची, [विनोद श्रीवास्तव/संदीप कुमार]। Ground report दो अक्टूबर 2018 तक 33.79 लाख शौचालय बनाने का दावा करते हुए झारखंड ने खुद को ओडीएफ घोषित कर लिया। खूब तालियां बजीं। पुरस्कार बंटे। गांवों-शहरों में बोर्ड टंग गए कि खुले में शौचमुक्त इलाके में आपका स्वागत है। स्वच्छता के पैमाने पर शानदार काम करने के लिए आप झारखंड को धन्यवाद करना चाहेंगे, लेकिन आंकड़ों के जाल में मत फंसिये। खुले में शौचमुक्त गांव-शहर के बोर्ड से चंद फासले पर ही आपकी खुशी काफूर हो जाएगी। दरअसल, भ्रम पालिये ही मत। स्वच्छता का यहां सिर्फ कोरम पूरा हुआ है। 

ओडीएफ लिख देने से सिर्फ कागजी आंकड़े खूबसूरत नजर आने लगे। मगर खेत-खलिहान और तालाबों के किनारे फैले बदनुमा दाग दावों की चुगली कर रहे हैं। आलम यह है कि कई जगह लोगों ने बोर्ड उखाड़ कर फेंक दिए हैं तो कुछ जगह बोर्ड लगाने आए कर्मचारी बैरंग खदेड़े गए। कागजी कार्रवाई की यूं आपाधापी रही कि कहीं शौचालय का पैन नहीं बिठाया गया तो कहीं शेड गायब। और तो और पानी की कमी के कारण कई शौचालय बेकार पड़े हैं। उनमें पुआल रखने और बकरी बांधने का काम किया जा रहा है। स्वच्छ भारत मिशन के अलावा मनरेगा, विधायक निधि, डिस्ट्रिक्ट मिनिरल फांउंडेशन ट्रस्ट (डीएमएफटी) आदि योजनाओं से बनाए गए शौचालयों में कितना पैसा जाया हुआ इसकी जांच होनी चाहिए।

खूंटी जिला मुख्यालय से तकरीबन 22 किलोमीटर दूर कर्रा प्रखंड का सिलापट गांव। गांव में प्रवेश करते ही इस गांव के खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) होने का प्रमाण एक बोर्ड पर अंकित मिलेगा। इससे इतर जब आप गांव में प्रवेश करेंगे आपको निराशा हाथ लगेगी। यह वही गांव है, जहां के 65 परिवारों के लिए कुल 37 शौचालयों की स्वीकृति 2018 में मिली थी। इनमें से महज पांच-छह ही धरातल पर उतरे हैं, शेष का निर्माण आज भी आधा-अधूरा पड़ा है। शौचालय के नाम पर कहीं सिर्फ ढांचा खड़ा है तो कहीं सिर्फ दीवारें नजर आती है, कहीं दरवाजा नहीं है तो कहीं पैन का ही ठिकाना नहीं। कहीं सिर्फ गड्ढे भी नजर आएंगे।

गांव के अनिल केरकेट्टा के अनुसार उन्होंने अपनी जेब से पैन खरीदा तब जाकर कहीं शौचालय का निर्माण हो सका। एतवा बलमुचू की शिकायत है कि ठेकेदार ने बस गड्ढ़ा और ईंट गिराकर अपने दायित्व की पूर्ति कर ली, लिहाजा उसकी उपयोगिता आज तक सिद्ध नहीं हो सकी है। बैजू केरकेट्टा के पुत्र महादेव केरकेट्टा दो टूक कहते हैं, शौचालय निर्माण के नाम पर बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हुई है। यहां की बड़ी आबादी खेती और मजदूरी पर आश्रित है। ऐसे में सबके लिए यह संभव नहीं कि वह अपनी जेब ढीली कर शौचालय बनवाए। लिहाजा ओडीएफ गांव की सोच कम से कम इस गांव में धरी की धरी रह गई है। आसपास के गांवों में भी कमोबेश यही स्थिति है। और यही हालत पूरे राच्य की है।

घोटाले की बू 

ऐसे भी झारखंड के लिए घोटाला अब कोई नई बात नहीं रही। छात्रवृत्ति, मेधा, अलकतरा, चारा, मनरेगा, कंबल आदि घोटाला इसकी बानगी भर है। शीघ्र ही घोटालों की इस सूची में एक और नया नाम जुडऩे वाला है, वह है शौचालय घोटाला। इसकी पटकथा राज्य के एक-एक गांव में विद्यमान है, जो धीरे-धीरे सतह पर आ रही है। बहरहाल शौचालय निर्माण में गड़बड़झाले की सिलापाट गांव के ग्रामीणों की शिकायत सरकार तक पहुंच चुकी है। स्थानीय प्रशासन ने 10 मार्च 2018 को ही इस गांव के ओडीएफ होने का बोर्ड गांव के एक छोर पर लगा रखा है, जो सरकार और उसकी डिलीवरी मैकेनिज्म पर सवालिया निशान खड़ा करता है।

कुछ अधिक ही दिखा दी तेजी 

यहां यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि देश में नंबर वन की आने होड़ में सरकार ने शौचालयों के निर्माण में कुछ अधिक ही तेजी दिखा दी। अस्वच्छ गांवों को प्रमाणपत्र बांट दिया गया। केंद्र ने जहां दो अक्टूबर 2019 तक पूरे देश को खुले में शौच से मुक्ति दिलाने का लक्ष्य निर्धारित किया था, वहीं झारखंड ने राज्य के शहरी क्षेत्रों को दो अक्टूबर 2017 और पूरे राज्य को दो अक्टूबर 2018 को ओडीएफ घोषित कर डाला। अलबत्ता यह उपलब्धि कागजों पर ही सिमटी रही। आज भी न तो राज्य का कोई शहर ही पूरी तरह से ओडीएफ हो सका है और न ही गांव। स्वच्छता सर्वेक्षण 2020 की प्रथम दो तिहाई की रिपोर्ट भी इसे पुष्ट करती है। राच्य के अन्य जिलों की बात कौन करे 10 लाख से अधिक आबादी वाले टॉप 50 शहरों में राजधानी रांची आज भी 35वें पायदान पर खड़ी है।

मनरेगा कोषांग ने लिया संज्ञान, डीसी करेंगे मामले की जांच 

बहरहाल ग्रामीणों की इस शिकायत को मनरेगा कोषांग (ग्रामीण विकास विभाग) ने गंभीरता से लिया है। विशेष कार्य पदाधिकारी बैजनाथ राम ने मामले की जांच के लिए खूंटी के उपायुक्त को इस पत्र भेजा है। पत्र में सिलापाट समेत खूंटी के ही तोरपा और कर्रा के 26 गांवों और टोलों से भी शौचालय निर्माण में मिली गड़बड़ी की जांच की बात कही गई है।

यह भी पढ़ें-कई जिलों में लोगों ने उखाड़े ODF का बोर्ड, कहा- पहले शौचालय बनाओ, फिर बोर्ड लगाओ Ground report

chat bot
आपका साथी