16saal16sawal: आखिर क्यों अमीर झारखंड में बच्चे हैं कुपोषित- 45% बच्चे बौने, जानिए

16saal16sawal. झारखंड की आदिवासी आबादी कुपोषण से खासा प्रभावित है। यहां 0 से लेकर पांच साल आयुवर्ग के आधे बच्‍चे अंडरवेट हैं। शहरों से ज्यादा गांवों की स्थिति खराब है।

By Alok ShahiEdited By: Publish:Tue, 19 Feb 2019 11:06 AM (IST) Updated:Tue, 19 Feb 2019 12:35 PM (IST)
16saal16sawal: आखिर क्यों अमीर झारखंड में बच्चे हैं कुपोषित- 45% बच्चे बौने, जानिए
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रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड खनिज संसाधनों से भरा पड़ा है। लेकिन इसकी गोद में कुपोषण है। एनीमिया (खून की कमी) भी कम छोटी समस्या नहीं है। खासकर आदिवासी आबादी इससे सबसे अधिक प्रभावित है। चिंता की बात तो यह है कि यह स्थिति तब है जब तीन-तीन विभाग इससे निपटने को योजनाएं संचालित करते हैं। हाल ही में संपन्न विधानसभा के बजट सत्र में सत्ताधारी दल के मुख्य सचेतक राधाकृष्ण किशोर ने ही राज्य में कुपोषण व एनीमिया की स्थिति पर सरकार को घेरने का काम किया। उन्होंने इनसे निपटने के लिए संचालित कार्यक्रमों पर सवाल उठाए। सरकार इसपर ठोस जवाब भी नहीं दे सकी।

राज्य के नौनिहालों में कुपोषण की स्थिति यह है कि यहां अभी भी पांच वर्ष आयु तक का हर दूसरा बच्चा अपनी उम्र की तुलना में नाटा है। दस में से तीन बच्चे अपनी लंबाई की तुलना में दुबले-पतले हैं। अभी भी 11.4 फीसद बच्चे गंभीर रूप से कुपोषण से ग्रसित हैं, जिनमें मौत का खतरा नौ से बीस गुना अधिक रहता है। ऐसे बच्चों की संख्या 5.8 लाख है। 

नेशनल हेल्थ फैमिली सर्वे-04 की रिपोर्ट के अनुसार, अभी भी झारखंड के 47.8 फीसद बच्चे अंडरवेट हैं। कुपोषण के कारण इनका वजन निर्धारित मानक से कम है। झारखंड में शहरी इलाकों से अधिक ग्रामीण इलाकों की खराब स्थिति है। शहरी इलाकों में कुपोषित बच्चों की संख्या महज 39.3 फीसद है, जबकि ग्रामीण इलाकों में 49.8 फीसद बच्चे इस समस्या से ग्रसित हैं।

पांच जिलों में सबसे अधिक कुपोषण : जिलों की बात करें तो पांच जिले ऐसे हैं जहां आधे से अधिक बच्चे अंडरवेट हैं। इनमें खूंटी (53.8 फीसद) दुमका (53.5 फीसद), चतरा (51.3 फीसद), बोकारो (50.8 फीसद), गढ़वा (50.7 फीसद) जिले शामिल हैं।

45 फीसद बच्चे बौने : एनएफएचएस-4 रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड में अभी भी 45.3 फीसद बच्चे ठिगने (उम्र के अनुसार लंबाई कम) हैं। शहरी क्षेत्रों में ऐसे बच्चों की संख्या 33.7 तथा ग्रामीण क्षेत्रों मेें 48 फीसद है। 2005-06 में 49.8 फीसद बच्चे ऐसे थे।

नहीं मिलता पूरक आहार : झारखंड में पूरक आहार प्राप्त करने वाले छह से आठ माह के शिशुओं की संख्या में गिरावट देखी जा रही है। वर्ष 2005-06 के दौरान यह दर 60 फीसद थी जो 2015-16 में घटकर 47 फीसद हो गई। झारखंड में छह माह से 23 माह केकेवल 7 फीसद बच्चों को ही मां के दूध के साथ पूरक आहार मिल पाता है।

चलाए जा रहे ये कार्यक्रम :

-महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा आइसीडीएस योजना के तहत आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों को पूरक आहार दिए जाते हैं।

-स्कूलों में मिड डे मील का भी यही उद्देश्य है।

-राष्ट्रीय स्वास्थ्य अभियान के तहत गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों के इलाज के लिए कई कुपोषण उपचार केंद्र भी खोले गए हैं।

-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर पोषण अभियान शुरू किया गया है। इसका उद्देश्य 6 वर्ष तक के बच्चों, गर्भवती महिलाओं तथा धात्री माताओं के पोषण स्तर को बेहतर बनाना है। इसकेअलावा नाटेपन, अल्प वजन तथा जन्म के समय कम वजन की समस्या में प्रति वर्ष दो फीसद तथा एनीमिया में प्रतिवर्ष तीन फीसद की कमी लाना है।

कहां है पेच

-कुपोषण व एनीमिया से निपटने को संचालित कार्यक्रमों की मानीटङ्क्षरग सही से नहीं हो पा रही है।

-गरीबी तथा पोषण को लेकर लोगों में जागरूकता का अभाव। 

फैक्ट फाइल

-जन्म के एक घंटे के भीतर नवजात को स्तनपान कराने से नवजातों में होनेवाली 20 फीसद मौत को रोका जा सकता है। लेकिन झारखंड में इसे लेकर महिलाएं जागरूक नहीं है।

-यहां अभी भी 33.2 फीसद नवजात को ही जन्म के पहले घंटे मां का दूध (कोलेस्ट्रॉम अर्थात खिरसा) मिल पाता है। इस दूध में रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है। झारखंड में लगभग 77 फीसद नवजात इससे वंचित हो जाते हैं।

-छह माह तक के बच्चों के एक्सक्लूसिव ब्रेस्टफीडिंग की बात करें तो लगभग 65 फीसद शिशुओं को ही इसका लाभ मिल पाता है। शेष बच्चे या तो मां के दूध के साथ ऊपरी आहार (सामान्य दूध या डिब्बा बंद दूध) लेते हैं या पूरी तरह इसपर निर्भर होते हैं।

यह है स्थिति :

-3 बच्चे 10 में से अपनी लंबाई की तुलना में दुबले-पतले।

-11.4 फीसद बच्चे गंभीर रूप से कुपोषण के शिकार हैं।

-47.8 फीसद बच्चे अभी भी कम वजन के हैं। 

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