डा विक्रम साराभाई पुण्यतिथि : भारत के राष्ट्रपति से बातचीत के एक घंटे बाद ही हो गई थी मौत

डॉ विक्रम साराभाई (Dr Vikram Sarabhai) का जन्म 12 अगस्त 1919 को हुआ था। परमाणु अनुसंधान (Nuclear Research) के क्षेत्र में भाभा के काम को आगे बढ़ाते हुए साराभाई (Sarabhai) भारत के परमाणु ऊर्जा संयंत्रों (Nuclear Power Plants) की स्थापना और विकास के लिए काफी हद तक जिम्मेदार थे।

By Sanjay KumarEdited By: Publish:Thu, 30 Dec 2021 08:50 AM (IST) Updated:Thu, 30 Dec 2021 08:51 AM (IST)
डा विक्रम साराभाई पुण्यतिथि : भारत के राष्ट्रपति से बातचीत के एक घंटे बाद ही हो गई थी मौत
डॉ विक्रम साराभाई पुण्यतिथि : भारत के इस राष्ट्रपति से बातचीत के एक घंटे बाद ही हो गई थी मृत्यू

रांची, डिजिटल डेस्क। Dr Vikram Sarabhai Death Anniversary : डॉ विक्रम साराभाई (Dr Vikram Sarabhai) का जन्म 12 अगस्त 1919 को हुआ था। परमाणु अनुसंधान (Nuclear Research) के क्षेत्र में भाभा के काम को आगे बढ़ाते हुए, साराभाई (Sarabhai) भारत के परमाणु ऊर्जा संयंत्रों (Nuclear Power Plants) की स्थापना और विकास के लिए काफी हद तक जिम्मेदार थे। उन्होंने रक्षा (Defense) उद्देश्यों के लिए परमाणु प्रौद्योगिकी (Nuclear Technology) के स्वदेशी विकास की नींव रखी। 1966 में भौतिक विज्ञानी होमी भाभा (Homi Bhabha) की मृत्यु के बाद, साराभाई को भारत के परमाणु ऊर्जा आयोग (Atomic Energy Commission) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। वह भारत में कुछ प्रमुख संस्था-निर्माण प्रयासों में शामिल थे। जिसमें अहमदाबाद (Ahmedabad) स्थित भारतीय प्रबंधन संस्थान (Indian Institute of Management) शामिल है।

भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति की स्थापना

1962 में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति की स्थापना की। जिसे बाद में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का नाम दिया गया। डॉ विक्रम साराभाई ने दक्षिणी भारत में थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन की भी स्थापना की।

विक्रम साराभाई विरासत:

विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, (वीएसएससी), जो केरल राज्य की राजधानी तिरुवनंतपुरम (त्रिवेंद्रम) में स्थित है, उनका नाम विक्रम साराभाई की स्मृति में रखा गया है। जिसके विकास के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का प्रमुख योगदान है। भारतीय डाक विभाग ने उनकी पहली पुण्यतिथि (30 दिसंबर 1972) पर एक स्मारक डाक टिकट जारी किया। उनकी मृत्यु के दो साल बाद 1973 में इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन ने फैसला किया कि सी ऑफ सेरेनिटी में एक चंद्र क्रेटर, बेसेल ए, को साराभाई क्रेटर के रूप में जाना जाएगा। भारत के चंद्रयान -2 चंद्र मिशन पर लैंडर, जो कि 20 सितंबर, 2019 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरना था, उसका नाम उनके सम्मान में विक्रम रखा गया। 26 जुलाई 2019 को हैदराबाद के बीएम बिड़ला विज्ञान केंद्र में उन्हें एक अंतरिक्ष संग्रहालय समर्पित किया गया था। संग्रहालय को प्रणव शर्मा द्वारा क्यूरेट किया गया था। 30 सितंबर 2020 को इसरो के साथ एसीके मीडिया ने विक्रम साराभाई: पायनियरिंग इंडियाज स्पेस प्रोग्राम नामक एक पुस्तक का विमोचन किया। इसे अमर चित्र कथा के डिजिटल प्लेटफॉर्म और मर्चेंडाइज, एसीके कॉमिक्स पर जारी किया गया था। साराभाई और होमी जे. भाभा के जीवन पर एक वेब सीरीज़ रॉकेट बॉयज़ का निर्माण किया जा रहा है। डॉ साराभाई ने एक ऐसी परियोजना शुरू की जो पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले भारत के पहले कृत्रिम उपग्रह के निर्माण की ओर ले जाएगी। जिसको जुलाई 1976 में लॉन्च किया गया। आर्यभट्ट पहला भारतीय उपग्रह बन गया, जो डॉ साराभाई की मृत्यु के चार साल बाद एक रूसी रॉकेट कापुस्टिन यार पर लॉन्च किया गया था। इसका नाम एक भारतीय खगोलशास्त्री और गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था।

विक्रम साराभाई पुरस्कार

वर्ष 1966 में, विक्रम साराभाई को भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। वर्ष 1972 में, उन्हें मरणोपरांत पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया जो कि भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है।

साराभाई की मृत्यु

साराभाई को 30 दिसंबर 1971 की रात बॉम्बे के लिए प्रस्थान करने से पहले एसएलवी डिजाइन की समीक्षा करनी थी। उन्होंने भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम से टेलीफोन पर बात की थी। हालांकि, बातचीत के एक घंटे के भीतर ही हृदय गति रुकने से साराभाई का 52 वर्ष की आयु में त्रिवेंद्रम (अब तिरुवनंतपुरम) में निधन हो गया। अहमदाबाद में उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया गया।

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