मिड डे मील में एलपीजी की राशि देने से केंद्र का इन्कार

केंद्र ने मिड डे मील योजना में एलपीजी के लिए राशि देने से इन्कार कर दिया है। राज्य सरकार ने योजना में केंद्र से मिली राशि पर मिले ब्याज से एलपीजी गैस सिलेंडर खरीदने की अनुमति मांगी थी।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Wed, 26 Oct 2016 06:24 AM (IST) Updated:Wed, 26 Oct 2016 06:33 AM (IST)
मिड डे मील में एलपीजी की राशि देने से केंद्र का इन्कार

नीरज अम्बष्ठ, रांची। केंद्र ने मिड डे मील योजना में एलपीजी के लिए राशि देने से इन्कार कर दिया है। राज्य सरकार ने योजना में केंद्र से मिली राशि पर मिले ब्याज से एलपीजी गैस सिलेंडर खरीदने की अनुमति मांगी थी, लेकिन केंद्र ने अनुमति देने से इन्कार कर दिया। उल्टे केंद्र ने ब्याज की राशि लौटाने का भी फरमान सुना दिया।

राज्य के स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग ने फंड के अभाव में ब्याज की राशि से एलपीजी सिलेंडर खरीदने का निर्णय लिया था। इसे लेकर विभाग ने पड़ताल की तो पता चला कि मुख्यालय में ही ब्याज के लगभग ढाई करोड़ रुपये बैंकों में पड़े हुए हैं। इसी तरह, सभी जिलों में भी बड़ी राशि उपलब्ध है।

विभागीय पदाधिकारियों ने उत्साहित होकर इंडियन ऑयल के पदाधिकारियों के साथ बैठक भी कर ली, जिसमें दो हजार रुपये की दर से सिलेंडर उपलब्ध कराने पर सहमति बनी। इसके बाद ही इसपर केंद्र से स्वीकृति मांगी गई।

87 फीसद स्कूलों में लकड़ी से भोजन
राज्य के 87 फीसद स्कूलों में एलपीजी सिलेंडर उपलब्ध नहीं है। इन स्कूलों में लकड़ी से बच्चों का भोजन बनता है। इससे स्कूलों में प्रदूषण की भी समस्या होती है। दूसरी तरफ, जिन स्कूलों में एलपीजी सिलेंडर उपलब्ध है वहां भी सिलेंडर पर सब्सिडी नहीं मिलती। मिड डे मील योजना में अभी तक ईंधन की राशि कुकिंग कॉस्ट में ही शामिल है।

कितने स्कूलों में चलती है योजना
प्राइमरी स्कूल : 26,573
अपर प्राइमरी स्कूल : 14,260
एनसीएलपी स्कूल: 190

बोकारो में अक्षय पात्र को मिली जिम्मेदारी
राज्य सरकार ने बोकारो में सेंट्रलाइज किचेन से स्कूलों में मिड डे मील पहुंचाने की जिम्मेदारी अक्षय पात्र संस्था को सौंप दी है। स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग ने इसे लेकर जिला शिक्षा अधीक्षक को आदेश जारी कर दिया है। संस्था वहां के 205 स्कूलों में बच्चों को मिड डे मील खिलाएगा। वहीं, जमशेदपुर में इस्कॉन को 45 अन्य स्कूलों की भी जिम्मेदारी दी गई है। यह संस्था पहले से ही वहां सेंट्रलाज्ड किचेन संचालित कर रही है। बदले में राज्य सरकार प्रति बच्चे उतनी ही राशि संस्था को उपलब्ध कराती है, जितना राज्य सरकार स्वयं संचालन में वहन करती है।

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