Budget 2020: सुधरेगी झारखंड की स्‍वास्‍थ्‍य सेवा, आकांक्षी जिलों में खोले जाएंगे अस्‍पताल

Jharkhand. झारखंड में न्यूमोनिया के लिए वैक्सीन शीघ्र लांच हो सकता है। इससे नौनिहालों को बेहतर स्‍वास्‍थ्‍य सेवा उपलब्‍ध हो सकेगी।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Publish:Sat, 01 Feb 2020 08:08 PM (IST) Updated:Sat, 01 Feb 2020 08:08 PM (IST)
Budget 2020: सुधरेगी झारखंड की स्‍वास्‍थ्‍य सेवा, आकांक्षी जिलों में खोले जाएंगे अस्‍पताल
Budget 2020: सुधरेगी झारखंड की स्‍वास्‍थ्‍य सेवा, आकांक्षी जिलों में खोले जाएंगे अस्‍पताल

रांची, राज्य ब्यूरो। आम बजट 2020-21 में स्वास्थ्य के क्षेत्र में किए गए प्रावधानों से झारखंड को भी लाभ मिलेगा। इसमें कई ऐसे प्रस्ताव शामिल हैं, जो झारखंड जैसे पिछड़े राज्य के लिए प्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष रूप से लाभकारी साबित होंगे। इस बजट से जहां आयुष्मान भारत के तहत अस्पतालों की संख्या बढऩे से लोगों को नजदीकी अस्पतालों में चिकित्सा उपलब्ध हो सकेगी, वहीं मिशन इंद्रधनुष के विस्तार होने से नौनिहालों को कई अन्य बीमारियों से भी बचाया जा सकेगा।

आम बजट में बच्चों के टीकाकरण के लिए संचालित मिशन इंद्रधनुष को विस्तार देने की बात कही गई है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य अभियान, झारखंड के तहत शिशु स्वास्थ्य देखने वाले पदाधिकारी डॉ. अजित कुमार के अनुसार, राज्य में मिशन इंद्रधनुष के तहत अभी दस बीमारियों का टीका बच्चों को दिया जाता है। आम बजट के तहत मिशन इंद्रधनुष के विस्तार होने से कई अन्य बीमारियों का भी टीका इसमें शामिल हो जाएगा।

फिलहाल न्यूमोनिया बीमारी के लिए न्यूमोकोकल कांज्यूगेट वैक्सीन (पीसीवी) को इसमें शामिल करने को लेकर केंद्र सरकार से बात चल रही है। कई राज्यों में यह वैक्सीन मिशन इंद्रधनुष के तहत दिया जाता है, लेकिन झारखंड में अभी तक यह शामिल नहीं हो सका था। उनके अनुसार, मिशन इंद्रधनुष के विस्तार से राज्य में शिशु मृत्यु दर में और भी कमी आएगी, जो वर्तमान में 29 प्रति हजार जन्म है।

आम बजट में आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना में आकांक्षी जिलों में पीपीपी मोड पर अस्पताल खोलने का प्रस्ताव है। यह झारखंड जैसे राज्य के लिए बड़ी बात है, क्योंकि देशभर के 115 आकांक्षी जिलों में 19 झारखंड के हैं। हालांकि, इसमें यह भी कहा गया है कि प्राथमिकता उन जिलों को दी जाएगी, जहां इस योजना के तहत अस्पताल सूचीबद्ध नहीं है।

झारखंड की बात करें, तो ऐसा कोई जिला नहीं है जहां सरकारी या प्राइवेट क्षेत्र का कोई अस्पताल इस योजना से सूचीबद्ध नहीं है। हालांकि, कई जिले ऐसे हैं, जहां या तो सरकारी या प्राइवेट क्षेत्र में बहुत कम तीन या चार अस्पताल ही सूचीबद्ध हैं। बजट में सस्ती दर पर दवा उपलब्ध कराने के लिए जन औषधि केंद्रों की संख्या भी बढ़ाने की बात कही गई है, लेकिन महत्वपूर्ण इन केंद्रों पर दवा उपलब्ध कराना है।

रांची सहित कई सदर अस्पताल बन सकते हैं मेडिकल कॉलेज

चिकित्सकों की कमी को दूर करने के लिए केंद्र सरकार हाल के वर्षों में अधिक से अधिक मेडिकल कॉलेज खोलने की दिशा में काम कर रही है। इस आम बजट में भी यह प्रयास जारी रहा। इसके तहत जिला अस्पतालों को मेडिकल कॉलेजों के रूप में अपग्रेड किया जाएगा। राज्य सरकार 500 बेड वाले रांची सदर अस्पताल को मेडिकल कॉलेज के रूप में अपग्रेड करने का प्रस्ताव पहले भी केंद्र को दे चुकी है।

वहीं, जमशेदपुर, चाईबासा, सरायकेला-खरसांवा के सदर अस्पतालों को भी 500 बेड में अपग्रेड किए जा रहे हैं। इन्हें भी मेडिकल कॉलेज बनाया जा सकता है। राज्य सरकार ने बोकारो में मेडिकल कॉलेज खोलने का भी प्रस्ताव केंद्र को दिया है। बजट में इसके लिए भी प्रावधान हो सकता है। वहीं, कोडरमा तथा चाईबासा में बन रहे मेडिकल कॉलेजों के लिए शेष राशि का प्रावधान इस बजट में किए जाने की उम्मीद है। केंद्र की स्वीकृति के बाद दोनों मेडिकल कॉलेजों का निर्माण कार्य जारी है।

48 फीसद बच्चे कुपोषण के शिकार, बजट की थी दरकार

आम बजट में पोषण कार्यक्रमों के लिए 35,600 करोड़ का प्रस्ताव झारखंड जैसे राज्य के लिए वरदान साबित होगा, जहां लगभग 47.8 फीसद बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। कुपोषण से निपटने के लिए कई कार्यक्रम पहले से संचालित किए जा रहे हैं, लेकिन बजट में बड़ी राशि का प्रावधान किए जाने से इसका लाभ झारखंड को मिल सकता है।

राज्य में कुपोषण की स्थिति यह है कि यहां अभी भी पांच वर्ष आयु तक का हर दूसरा बच्चा अपनी उम्र की तुलना में नाटा है। दस में से तीन बच्चे अपनी लंबाई की तुलना में दुबले-पतले हैं। अभी भी 11.4 फीसद बच्चे गंभीर रूप से कुपोषण से ग्रसित हैं, जिनमें मौत का खतरा नौ से बीस गुना अधिक रहता है। ऐसे बच्चों की संख्या 5.8 लाख है। नेशनल हेल्थ फैमिली सर्वे-04 की रिपोर्ट के अनुसार, अभी भी झारखंड के 47.8 फीसद बच्चे अंडरवेट हैं। कुपोषण के कारण इनका वजन निर्धारित मानक से कम है।

झारखंड में शहरी इलाकों से अधिक ग्रामीण इलाकों की खराब स्थिति है। शहरी इलाकों में कुपोषित बच्चों की संख्या महज 39.3 फीसद है, जबकि ग्रामीण इलाकों में 49.8 फीसद बच्चे इस समस्या से ग्रसित हैं। रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड में अभी भी 45.3 फीसद बच्चे ठिगने (उम्र के अनुसार लंबाई कम) हैं। शहरी क्षेत्रों में ऐसे बच्चों की संख्या 33.7 तथा ग्रामीण क्षेत्रों मेें 48 फीसद है। 2005-06 में 49.8 फीसद बच्चे ऐसे थे।

chat bot
आपका साथी