छह महीने में नक्सल समस्या खत्म होने की बात बेमानी : राजीव कुमार

नक्सल समस्या, पुलिस हिरासत में मौत और आमलोगों के प्रति पुलिसवालों के ¨हसक आचरण, उसके निवारण और पुलिस

By Edited By: Publish:Sun, 31 Jul 2016 01:32 AM (IST) Updated:Sun, 31 Jul 2016 01:32 AM (IST)
छह महीने में नक्सल समस्या खत्म होने की बात बेमानी : राजीव कुमार

नक्सल समस्या, पुलिस हिरासत में मौत और आमलोगों के प्रति पुलिसवालों के ¨हसक आचरण, उसके निवारण और पुलिस वेलफेयर संबंधी मामलों में होमगार्ड के 10वें डीजी राजीव कुमार ने अपने कार्यकाल के अंतिम दिन अपने कार्यालय में शनिवार को बेबाकी से अपनी राय रखी। कहा, झारखंड के सृजन के बाद राज्य सरकार के सबसे बड़ी चुनौती नक्सल समस्या थी, आज भी है। हालांकि तीन-चार वर्षो में नक्सल घटनाओं में कमी आई है लेकिन यह कहना कि छह माह में नक्सल समस्या खत्म हो जाएगी, बेमानी होगा। यह समस्या खत्म करने के लिए यह जानना होगा कि नक्सलवाद क्यों है। इसके पीछे की गरीबी, बेरोजगारी को देखना होगा। विकास योजनाओं का लाभ उन गरीबों और बेरोजगारों को सही मायने में मिले, तभी परिवर्तन देखने को मिलेगा। लोगों को नक्सल विचारधारा से विकास योजनाओं के जरिए मुख्यधारा में लाना होगा। तभी नक्सल समस्या का समाधान होगा। उनसे बातचीत की दैनिक जागरण के सीनियर कॉरेस्पोंडेंट प्रणव कुमार ने, पेश है उसके अंश :

आप झारखंड के डीजीपी रहे, नक्सल समस्या को करीब से देखा, वर्तमान में नक्सल की जड़ें कितनी मजबूत देख रहे हैं आप?

- सही कहूं तो नक्सलियों की जमीन खिसकी है। लगातार पुलिस और केंद्रीय सुरक्षाबलों के अभियान और विकास कार्यो का प्रभाव देखा जा राह है।

हाल के दिनों में पुलिस का बर्बर चेहरा सामने आया है। नाबालिगों के अलावा विभागीय कर्मियों को भी निशाना बनाया गया। कैसे देखते हैं इसको?

- देखिए इस तरह की घटनाएं बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण हैं। विभाग को चाहिए कि मामलों की जांच कर दोषियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करे ताकि इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं हो।

आखिर पुलिसकर्मियों के इस रवैये में सुधार कैसे होगा?

- जो घटनाएं सामने आ रही हैं, उससे प्रतीत होता है कि पुलिसकर्मियों के प्रशिक्षण में कहीं न कहीं गैप है। बेहतर प्रशिक्षण और मानवाधिकार संबंधी कानूनों की जानकारी लगातार पुलिसकर्मियों को दी जाए। साथ ही बर्बरता में शामिल लोगों पर कड़ी कार्रवाई कर बाकी पुलिसकर्मियों को मैसेज दिया जाना चाहिए कि वे गलत करेंगे तो बख्शे नहीं जाएंगे।

आपने भटके नवयुवकों को मुख्यधारा में लाने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से फिल्म 'प्रत्यावर्तन' का निर्माण कराया। नवंबर 2015 में उसका प्रीमियर भी सामने आया, लेकिन फिल्म रिलीज नहीं हुई?

- फिल्म क्यों रिलीज नहीं हुई इस बारे में मैं कोई कमेंट नहीं करूंगा। इस बारे में वर्तमान डीजीपी ही बेहतर बता सकते हैं लेकिन मेरा दावा है कि फिल्म देखने के बाद भटके हुए नवयुवक यह सोचने को विवश हो जाएंगे कि वे जिस रास्ते पर चल रहे हैं वह कितना सही और कितना गलत है।

नक्सल अभियान में शहीद जवानों के परिजनों को सरकारी सहायता देने के बाद विभाग और सरकार उन्हें भूल जाती है। आपने वैसे परिवारों को सम्मानित करने और उनकी समस्याओं को दूर करने के उद्देश्य से शहीद सम्मान समारोह की शुरुआत की थी। लेकिन उस पर एक तरह से ब्रेक लगा गया..।

- आपके सवाल से मैं सहमत हूं। डीजीपी बनने के बाद मैंने कई मौकों पर दिल से इस बात को महसूस किया था। इसके बाद ही मैंने अपने कार्यकाल में लगातार दो सालों तक 350 शहीद परिवारों को देश के विभिन्न राज्यों से बुलाकर सम्मानित किया। खुद सबसे मिलकर उनकी समस्या जानी और उसे दूर करने का प्रयास किया ताकि उन्हें लगे कि पुलिस महकमा उनके दुख दर्द में उनके साथ है। उनके सम्मान में संगीत समारोह भी आयोजित कराया था। यह सिलसिला टूटना नहीं चाहिए।

आपने पुलिस वेलफेयर के तहत जैप, एसटीएफ में 18 कैंटीन खुलवाए ताकि पुलिसकर्मियों को रियायत दर पर सामान मिल सके, लेकिन वह भी बंद हो गई?

-कैंटीन क्यों बंद हो गई, इस पर मैं कुछ टिप्पणी नहीं करना चाहता। पुलिस मुख्यालय इस मामले में बता सकता है लेकिन मैं इतना जरूर कहूंगा कि कैंटीन खोलना केंद्र सरकार की योजना थी। कई प्रयासों के बाद राज्य में इसे खोलने के लिए सेंट्रल पुलिस कैंटीन को प्रस्ताव बनाकर भेजा गया और वहां से अनुमति मिलने के बाद इसे खोला गया। इससे जवानों को काफी लाभ हो रहा था। प्रदेश में सीआरपीएफ और आर्मी के कैंटीन को वैट मुक्त रखा गया है, राज्य पुलिस के कैंटीन को भी मुक्त कर इसे फिर से खुलवाना चाहिए।

आइआरएस से आइपीएस बने थे राजीव कुमार

राजीव कुमार 1979 में भारतीय राजस्व सेवा (आइआरएस) में चयनित हुए। दो सालों का कार्यकाल पूरा करने के बाद वे 1981 में भारतीय पुलिस सेवा (आइपीएस) में आए। 35 साल की सेवा में वे सबसे पहले एकीकृत बिहार में साहिबगंज में एसपी रहे। फिर रांची के एसएसपी, रेल एसपी जमशेदपुर, एसपी सीआइडी, एसपी स्पेशल ब्रांच, केंद्रीय प्रतिनियुक्त सीआइएसएफ में कमांडेंट और डीआइजी रहे। झारखंड बनने के बाद वे पलामू रेंज के डीआइजी, जोनल आइजी रांची और बोकारो, एडीजीपी स्पेशल ब्रांच के तौर पर सेवा दी। फिर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर चीफ विजलेंस आफिसर इपीएफओ, नई दिल्ली रहे। वापस झारखंड आने पर डीजी होमगार्ड सह महासमादेष्टा अग्निशमन, डीजीपी झारखंड, पुलिस हाउसिंग निगम के चेयरमैन और दोबारा होमगार्ड के डीजी सह महासमादेष्टा अग्निशमन रहे। बेहतर कार्य के लिए इन्हें 1997 में पुलिस मेडल, 1997 में सराहनीय सेवा के लिए राष्ट्रपति पुलिस पदक, 2014 में विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति पुलिस पदक और 2014 में इंटरनल सिक्यूरिटी मेडल का सम्मान मिला।

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