बैंकों का हुआ निजीकरण तो जाने क्या करेंगे बैंककर्मी, आम जनता को भी होगी परेशानी

अब बैंक यूनियन निजीकरण से डरी हुई है। झारखंड प्रदेश बैंक इंप्लाइज एसोसिएशन के महासचिव सह सेंट्रल बैंक आफ इंडिया इंप्लाइज यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष आरबी सहाय ने दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में कहा है कि यदि बैंकों का निजीकरण हुआ तो वे चुप नहीं बैठेंगे। ...

By Kanchan SinghEdited By: Publish:Fri, 27 Nov 2020 03:58 PM (IST) Updated:Fri, 27 Nov 2020 03:58 PM (IST)
बैंकों का हुआ निजीकरण तो जाने क्या करेंगे बैंककर्मी, आम जनता को भी होगी परेशानी
अब बैंक यूनियन निजीकरण से डरी हुई है

जमशेदपुर,जासं : बैंक यूनियनों का आरोप है कि केंद्र सरकार बैंकों का निजीकरण कर कारपोरेट सेक्टर को वित्तीय लाइसेंस देने की तैयारी कर रही है। चालू वित्तीय वर्ष में ही केंद्र सरकार द्वारा कई राष्ट्रीयकृत बैंकों का दूसरे बैंकों से विलय किया गया है। लेकिन अब बैंक यूनियन निजीकरण से डरी हुई है। झारखंड प्रदेश बैंक इंप्लाइज एसोसिएशन के महासचिव सह सेंट्रल बैंक आफ इंडिया इंप्लाइज यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष आरबी सहाय ने दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में कहा है कि यदि बैंकों का निजीकरण हुआ तो वे चुप नहीं बैठेंगे। क्योंकि इसका सीधा असर बैंक कर्मचारियों की नौकरी और सुविधओं पर पड़ेगा। इसके विरोध में देश भर के बैंक कर्मचारी अनिश्चितकाल के लिए हड़ताल पर चले जाएंगे। इससे बैंकों का कामकाज भी अनिश्चितकाल के लिए बंद हो जाएगा। बकौल आरबी सहाय, कारपोरेट सेक्टर को बैंकिंग लाइसेंस देने की बात हो रही है। लेकिन सरकार को यह सोचना चाहिए कि बैंकों से होने वाले मुनाफे से देश का विकास होता है। जरूरतमंदों को ऋण दिया जाता है। लेकिन कारपोरेट सेक्टर को लाइसेंस मिलने से मुनाफे का पूरा पैसा सीधे उनकी जेब में जाएगा। इसका अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष रूप से नुकसान देश और उसकी जनता को होगा। वर्ष 1969 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण होने के बाद केंद्र सरकार लगातार रिफार्म के नाम पर बैंकिंग नीतियों में संशोधन कर रही है। लेकिन केंद्र सरकार बैंकिंग सुविधाओं मेंं बढ़ोतरी करने की बजाए विलय कर रही है। कर्मचारियों की छंटनी हो रही है। रिक्त पदों पर बहाली तक नहीं हो रही। जबकि केंद्र सरकार को चाहिए था कि बैंकों का ग्रामीण क्षेत्रों में विस्तार करे ताकि सरकारी योजनाओं का लाभ आम जनता को मिल सके। केंद्र सरकार यदि बैंकों को लेकर इतनी ही गंभीर है तो बड़ी कंपनियों और उद्योगपतियों ने जो कर्ज लिया है। उन पर सख्ती दिखाते हुए उनसे एनपीए वसूले। वर्ष 2017-18 में देश के बैंकिंग सेक्टर का एनपीए 155 लाख करोड़ था, जो चालू वित्तीय वर्ष में बढ़कर 200 करोड़ के ऊपर हो चुका है। इतना पैसा सरकार ने वसूल कर लिए तो बैंक सहित पूरे देश का विकास संभव हो पाएगा।

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