Weekly News Roundup Jamshedpur Off the Field एक था टाटा एथलेटिक्स अकादमी ... पढि़ए खेल जगत की खबरें

Weekly News Roundup Jamshedpur. टाटा एथलेटिक्‍स अकादमी गुमनामी में कहीं खो गई है। खिलाडि़यों को पुरस्‍कार के लिए इंतजार करना आज भी मजबूरी है।

By Vikas SrivastavaEdited By: Publish:Fri, 21 Feb 2020 10:15 PM (IST) Updated:Sat, 22 Feb 2020 10:25 AM (IST)
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जमशेदपुर, जितेंद्र सिंह। Weekly News Roundup Jamshedpur Off the Field जेआरडी टाटा स्‍पोट़़र्स कांम्‍प्‍लेक्‍स में टाटा एथलेटिक्‍स अकादमी गुमनामी में कहीं खो गई है। आज भी खेल में लालफीताशाही का आलम यह है कि खिलाडि़यों को मिलनेवाली राशि कब मिलेगी कहा नहीं जा सकता। लंबा इंतजार करना पड़ता है। लगातार हार से निराश जेएफसी के प्रशंसक अब विपक्षी टीम की जीत पर खुशी मनाने लगे हैं। रन ए थॉन की तैयारियों में संबंधित पदाधिकारियों को पसीना छूटने लगा है। 

एक था टाटा एथलेटिक्स अकादमी

बड़े अरमानों से टाटा स्टील ने 30 मई 2004 को जेआरडी टाटा स्पोट्र्स काम्प्लेक्स में टाटा एथलेटिक्स अकादमी का स्थापना  टाटा स्टील के तत्कालीन प्रबंध निदेशक वी मुत्थुरमण ने फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह के साथ किया था। लेकिन समय का पहिया ऐसा घूमा कि प्रबंधन की बेरुखी के कारण अकादमी ही काल के गाल में समा गया। अकादमी में मध्यम व लंबी दूरी के धावकों को प्रशिक्षण देने की योजना थी। शुरुआत में 30 एथलीटों की जगह सिर्फ 12 एथलीटों को ही अकादमी में शामिल किया गया था।

एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया का भी सहयोग था। बीजिंग ओलंपिक में भाग लेने वाली अंतरराष्ट्रीय धावक सिनीमोल पौलुस टाटा एथलेटिक्स अकादमी की ही देन है। पहला बैच निकलते ही अकादमी गुमनामी की खाई में गुम हो गया। अब ना तो एकेडमी है और ना ही प्रशिक्षक। बस यूं समझिए, इतिहास में सिमट कर रह गया देश को धुरंधर एथलीट देने का सपना। 

पुरस्कार के इंतजार में पथराई आंखें

कोई यूं ही चैपियन नहीं बनता। उसके लिए मैदान पर खून-पसीना बहाना पड़ता है। लेकिन सरकारी बाबुओं को इन खिलाडिय़ों का दर्द नहीं पता। आखिर हो भी कैसे, कभी किसी साहब ने मैदान का मुंह नहीं देखा। अब देखिए ना। दो महीने हो गए, जब मुसाबनी की बालिका टीम राज्य स्तरीय फुटबॉल चैपियन बनी। रांची में आयोजित चैपियनशिप में उन्हें तीन लाख का डमी चेक थमा दिया गया। जिला स्तरीय फुटबॉल में चैपियन बनने पर 50 हजार रुपये मिलना था। यहां भी डमी चेक धरा दिया गया। चैपियन टीम के साथ साहब की तस्वीर अखबारों में भी छपी। लेकिन दो महीने हो गए, अभी तक खिलाडिय़ों के अकाउंट में पैसे नहीं पहुंचे। बेचारे खिलाड़ी, अब कभी अखबारों में तस्वीरें देख रहे हैैं तो कभी सरकारी बाबुओं को कोस रहे हैैं। अब तो पुरस्कार की आस में आंखें भी पथरा गई है। इसे ही कहते हैैं ना माया मिली ना राम। 

गोवा जीता, जेएफसी के फैंस खुश

इंडियन सुपर लीग में अबतक का सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली जमशेदपुर एफसी के फैंस अपनी टीम से इस कदर नाराज हैैं कि गोवा की जीत पर खुशी का बहाना ढूंढ़ लिया। बुधवार को जेआरडी टाटा स्पोट्र्स कांप्लेक्स में खेले गए एफसी गोवा के खिलाफ मैच के दौरान कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला। मध्यांतर तक तो एफसी गोवा 1-0 से आगे थी। लेकिन मध्यांतर के बाद जैसे ही मेहमान टीम दे दनादन गोल मारना शुरू किया तो जेएफसी को मैदान से भागने का ठिकाना नहीं मिला। फैंस तो फैंस ठहरे। वह तो मनोरंजन के लिए स्टेडियम पहुंचे थे। 60 मिनट के बाद ही जब एफसी गोवा की टीम ने मेन ऑफ स्टील पर गोल बरसाने लगे तो हर गोल पर जमशेदपुर एफसी के प्रशंसक तालियां बजाने लगे। एकबारगी गोवा के खिलाडिय़ों को भी विश्वास नहीं हुआ। टकटकी लगा ताक रहे थे। इसे कहते हैैं, खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे। 

भोज के रोज रोपा रहा कोहरा

रांची के बिरसा मुंडा फुटबॉल स्टेडियम में रविवार को फिट इंडिया के तहत रन-ए-थॉन होना है। इस क्रॉस कंट्री रेस की तैयारी जोरों पर है। सरकारी बाबुओं पर दबाव है कि इस रेस में ज्यादा से ज्यादा एथलीटों का जुटान हो। मरता क्या न करता। वरीय अधिकारियों के आदेश का तामिला करने के लिए सरकारी बाबू भी रेस हो गए। 100 मीटर रेस की तरह। रविवार को रेस होना है और जिला खेल विभाग को शुक्रवार को इसमें शामिल होने की चिट्ठी मिली। अब जिला खेल पदाधिकारी माथा पकड़े हुए हैैं। करे तो क्या करे। आनन फानन में जिला एथलेटिक्स एसोसिएशन सहित अन्य खेल संघों को फरमान भेजा कि रेस में शामिल होना है। अब खेल संघ भी रेस हो चला। बस रेस होने में एक दिन बचा है। अब आनन-फानन में पूर्वी सिंहभूम जिले की टीम तैयार हो रहा है। इसे ही करते हैैं, भोज को रोज कोहरा रोपना। 

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