ये हैं कोल्हान के पद्मश्री, पूरा इलाका करता इनपर नाज; पढ़ि‍ए Jamshedpur News

इनकी जब भी चर्चा होती है यहां के लोगों का सिर गर्व से ऊंचा हो उठता है। पूरा इलाका इन पर नाज करता है। आइए रूबरू होते हैं झारखंड के कोल्‍हान क्षेत्र के कुछ ऐसे ही लोगों से।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Sun, 23 Feb 2020 05:33 PM (IST) Updated:Sun, 23 Feb 2020 05:33 PM (IST)
ये हैं कोल्हान के पद्मश्री, पूरा इलाका करता इनपर नाज; पढ़ि‍ए Jamshedpur News
ये हैं कोल्हान के पद्मश्री, पूरा इलाका करता इनपर नाज; पढ़ि‍ए Jamshedpur News

जमशेदपुर, वीरेंद्र ओझा। PadmaShri awardee from Kolhanझारखंड के लौहनगरी और उसके आसपास के इलाके की पहचान सिर्फ खनिज संपदा, खनन और टाटा स्टील कंपनी के कारण ही नहीं है, इन इलाकों में विविध विधा की हस्तियों ने भी जन्म लिया है। इतना ही नहीं, इसे कर्मभूमि बनाया है। यहां के जंगल, जीवन, संस्कृति को ऊंचाई प्रदान की है। इन्हें हस्तियों को भारत सरकार समय-समय पर पद्मश्री जैसे सम्मान से विभूषित करती रही है। इनकी जब भी चर्चा होती है, यहां के लोगों का सिर गर्व से ऊंचा हो उठता है। पूरा इलाका इन पर नाज करता है। आइए, रूबरू होते हैं इस क्षेत्र के कुछ ऐसे ही लोगों से:

छऊ कलाकार सुधेंद्र नारायण सिंहदेव 1992 में हुए थे सम्मानित

सुधेंद्र नारायण सिंह देव एक प्रमुख छऊ कलाकार थे। इनका जन्म 1927 में एकीकृत सिंहभूम (अब सरायकेला-खरसावां) जिले के सरायकेला में हुआ था। ये सरायकेला के पूर्व महाराजा आदित्य प्रताप सिंहदेव के सबसे छोटे बेटे थे। ये राज परिवार में सरायकेला शैली वाले छऊ के सबसे बड़े नर्तक थे। सुधेंद्र नारायण ने अपने चाचा बिजय प्रताप सिंहदेव और बड़े भाई सुरेंद्र नारायण सिंहदेव से यह नृत्य सीखा। भारत की आजादी के बाद ये सरायकेला छऊ के प्रतिनिधि बन गए थे। राजकुमार सुधेंद्र नारायण सिंहदेव ने ना केवल पूरे देश में इस शैली को लोकप्रिय बनाया, बल्कि यूरोप में भी प्रदर्शन किया। तब ये सरायकेला में श्रीकलापीठ संस्थान का नेतृत्व करते थे। इन्हें वर्ष 1963 में सरायकेला छऊ नृत्य के लिए 'संगीत नाटक अकादमी' पुरस्कार मिला, जबकि 1992 में पद्मश्री सम्मान मिला था। इनका निधन वर्ष 2001 में हो गया था। ये कोल्हान में पद्म पुरस्कार पाने वाले पहले शख्स थे। सुधेंद्र नारायण सिंहदेव सरायकेला के विधायक भी चुने गए थे, तब यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित नहीं थी।

वर्ष 2005 में छऊ गुरु केदार नाथ साहू को मिला था यह सम्मान

सरायकेला छऊ के अग्रणी नर्तक केदारनाथ साहू को 2005 में पद्मश्री सम्मान मिला था। छऊ के लिए पद्म सम्मान पाने वाले दूसरे शख्स थे। इन्होंने सरायकेला स्थित राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र में 1974 से 1988 तक प्रशिक्षण दिया। अपने कॅरियर के शुरुआत में बिजय प्रताप सिंहदेव के साथ नेतृत्व में भारत के अलावा पूर्वी यूरोप, दक्षिणी अमेरिका व दक्षिण पूर्व एशिया में छऊ का नृत्य प्रदर्शन किया। इनके शिष्यों में यूके निवासी शेरोन लोवेन, गोपाल प्रसाद दुबे व शशधर आचार्य भी शामिल थे। स्व. केदार साहू को 1981 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार भी मिला था। उनका निधन आठ अक्टूबर 2008 को हुआ।

छऊ नर्तक गोपाल प्रसाद दुबे को 2012 में मिला था सम्मान

छऊ गुरु सुधेंद्र नारायण सिंहदेव व केदारनाथ साहू के शिष्य गोपाल प्रसाद दुबे की गिनती श्रेष्ठ छऊ नर्तक व प्रशिक्षकों में होती है। सरायकेला में 25 जून 1957 को जन्मे गोपाल दुबे 14 वर्ष की उम्र से ही छऊ सीखने लगे। इन्हें एशियन कल्चरल काउंसिल के सौजन्य से न्यूयार्क में भी नृत्य प्रशिक्षण का अवसर मिला। इन्हें 2012 में पद्मश्री और 2016 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिला। फिलहाल ये बेंगलुरू में रहकर त्रिनेत्र नामक संस्था के बैनर तले देश-विदेश में छऊ का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। ये पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में नृत्य के शिक्षक भी रहे। इसके अलावा विदेश में कंसास यूनिवर्सिटी, इंडियाना यूनिवर्सिटी, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, चुंगांग यूनिवर्सिटी, सियोल इंस्टीट्यूट ऑफ द आट्र्स व अमेरिकन कालेज ऑफ ग्रीस के अलावा दक्षिण कोरिया स्थित इंचोन के मल्टी कल्चरल सेंटर में भी छऊ समेत भारतीय शास्त्रीय नृत्य का प्रशिक्षण दिया। इन्होंने रामानंद सागर कृत टेलीविजन धारावाहिक उत्तर रामायण समेत कई धारावाहिकों-नाटकों में प्रस्तुति दी।

संताली भाषा में योगदान के लिए 2018 में सम्मानित हुए दिगंबर हांसदा

जमशेदपुर के करनडीह स्थित लाल बहादुर शास्त्री मेमोरियल कालेज के पूर्व प्राचार्य दिगंबर हांसदा को संताली भाषा में उल्लेखनीय योगदान के लिए 2018 में पद्मश्री पुरस्कार मिला था। 16 अक्टूबर 1939 को जमशेदपुर प्रखंड स्थित डोभापानी गांव में जन्मे दिगंबर हांसदा ने संताली भाषा में भारतीय संविधान का अनुवाद किया था। वे संताली में कई किताब लिख चुके हैं। इनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा भी राजदोहा मिडिल स्कूल व मानपुर हाईस्कूल से हुई, जबकि रांची विश्वविद्यालय से स्नातक व परा-स्नातक किया। हांसदा संथाल साहित्य अकादमी के संस्थापक सदस्य भी हैं।

जंगल बचाने के लिए 2019 में जमुना टुडू हुई थीं सम्मानित

जंगल की रक्षा के लिए समर्पित जमुना टुडू को 2019 में पद्मश्री सम्मान मिला। पूर्वी सिंहभूम जिला स्थित चाकुलिया प्रखंड के मुटुरखाम ग्राम निवासी जमुना को 2014 में 'गॉडफ्रे फिलिप्स बे्भरी अवार्ड' व 2018 में 'वूमेन ट्रांसफार्मिंग इंडिया अवार्ड' भी मिल चुका है। जंगल माफिया से संघर्ष करने की वजह से इन्हें लेडी टार्जन भी कहा जाता है। जंगलों की रक्षा के लिए इन्होंने वन सुरक्षा समिति का गठन किया, जो आसपास के जंगलों में पेड़ों की कटाई रोकने के लिए काम करती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात' कार्यक्रम के दौरान भी जमुना टुडू की प्रशंसा की थी। जमुना ने ना केवल 50 हेक्टेयर में जंगल को कटने से बचाया, बल्कि इसके लिए लगभग 10 हजार महिलाओं को प्रेरित भी किया। इनकी प्रेरणा से ग्रामीण महिलाएं बच्चे के जन्म पर 18 और लड़की के विवाह पर 10 पेड़ लगाती हैं।

इसी वर्ष छऊ गुरु शशधर आचार्य को मिला है यह सम्मान

छऊ गुरु शशधर आचार्य को 2020 में पद्मश्री पुरस्कार मिला। सरायकेला में आचार्य छऊ नृत्य विचित्रा के निर्देशक शशधर 1990 से 1992 तक सरायकेला स्थित छऊ नृत्य कला केंद्र के निर्देशक भी रहे थे। फिलहाल शशधर आचार्य दिल्ली स्थित नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में विजिटिंग प्रोफेसर हैं। पांच वर्ष की उम्र से छऊ सीखने वाले शशधर कई देशों में छऊ का प्रदर्शन कर चुके हैं। इन्होंने छऊ की प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता लिंगराज आचार्य से ग्रहण की। इसके बाद इन्हें पद्मश्री सुधेंद्र नारायण सिंहदेव व केदारनाथ साहू के अलावा गुरु विक्रम कुंभकार व गुरु वनबिहारी पटनायक से भी छऊ नृत्य की शिक्षा हासिल की।

वर्ष 2006 में नर्तक श्यामाचरण पति हुए थे सम्मानित

 सरायकेला शैली वाले छऊ के प्रवर्तक व प्रख्यात नर्तक श्यामा चरण पति 2006 में पद्मश्री से सम्मानित हुए थे। इनका जन्म पश्चिमी सिंहभूम जिले के ईचा में 1940 को हुआ था। यह स्थान पूर्वी सिंहभूम जिले से सटे राजनगर प्रखंड में आता है। इन्हें बचपन से ही नृत्य से लगाव था, लिहाजा जमशेदपुर आ गए। यहां उन्होंने गुरु वनबिहारी आचार्य से कत्थक व भरतनाट्यम का प्रशिक्षण लिया। बाद में इन्होंने पंचानन सिंहदेव व तारिणी प्रसाद सिंह देव से छऊ का प्रशिक्षण लिया। इन्होंने सुजाता माहेश्वरी व शोभनब्रत सिरकार जैसे कई छात्रों को प्रशिक्षित किया, जिन्होंने भारत के अलावा विभिन्न देशों में नृत्य का प्रदर्शन किया। उनकी पुत्री सुष्मिता पति भी छऊ नृत्यांगना हैं।

वर्ष 2009 में सम्मानित किए गए थे मंगलाचरण मोहंती

टाटा कंपनी की सेवा में रहते हुए छऊ गुरु मंगलाचरण मोहंती ने ना केवल देश-विदेश में छऊ का प्रदर्शन किया, बल्कि इन्हीं उपलब्धियों की वजह से भारत सरकार ने इन्हें 2009 में पद्मश्री से सम्मानित किया। हाल के वर्षों तक मोहंती बिष्टुपुर स्थित मिलानी में छऊ का प्रशिक्षण दे रहे थे। वृद्धावस्था की वजह से वे फिलहाल प्रशिक्षण नहीं दे पा रहे हैं।  

छऊ गुरु मकरध्वज दारोघा को 2011 में मिला सम्मान

सरायकेला के छऊ गुरु मकरध्वज दारोघा ने ना केवल देश-विदेश में छऊ का परचम फहराया था, बल्कि इन्होंने दर्जनों गांव में केंद्र खोलकर ग्रामीण बच्चों को छऊ से जोड़ा था। इन्हें 2011 में भारत के राष्ट्रपति ने पद्मश्री से सम्मानित किया था। इन्होंने छऊ का प्रशिक्षण सरायकेला के राजा आदित्य प्रताप सिंहदेव के संरक्षण में प्राप्त किया था।  मकरध्वज दारोघा का जन्म सरायकेला के कायस्थ परिवार में 1934 में हुआ था, जबकि निधन फरवरी 2014 को सरायकेला में ही हुआ।

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