Jharkhand : बाबूलाल मरांडी को सीआर माझी की सलाह, आदिवासियों के हित की चिंता करना छोड़ दें

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी को झारखंड आंदोलनकारीसाहित्यकार व समाजसेवी सीआर माझी ने सलाह दी है कि आप आदिवासियों के हित की चिंता करना छोड़ दें क्योंकि अब आपकी विवेकशीलता पर भ्रम होने लगा है। मरांडी को स्पष्ट करना चाहिए कि वे किस वर्ण से हैं।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Tue, 16 Mar 2021 09:43 AM (IST) Updated:Tue, 16 Mar 2021 09:43 AM (IST)
Jharkhand : बाबूलाल मरांडी को सीआर माझी की सलाह, आदिवासियों के हित की चिंता करना छोड़ दें
झारखंड आंदोलनकारी,साहित्यकार व समाजसेवी सीआर माझी ।

जमशेदपुर, जासं। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी को झारखंड आंदोलनकारी,साहित्यकार व समाजसेवी सीआर माझी ने सलाह दी है कि आप आदिवासियों के हित की चिंता करना छोड़ दें, क्योंकि अब आपकी विवेकशीलता पर भ्रम होने लगा है।

माझी कहते हैं कि रविवार को परिसदन में बाबूलाल ने कहा था कि आदिवासी हिंदू ही हैं। बाबूलाल मरांडी स्वयं आदिवासी समुदाय से आते हैं। विद्वान भी हैं, इसलिए माना जाएगा कि उन्होंने यह बयान सोच-समझकर दिया होगा। क्या बाबूलाल बता सकते हैं कि वे हिंदू धर्म के किस वर्ण से आते हैं। मनुस्मृति के अनुसार हिंदू समाज को चार वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र में विभाजित किया गया है। मरांडी को स्पष्ट करना चाहिए कि वे किस वर्ण से हैं।

आगे ये कहा

माझी ने आगे कहा कि बाबूलाल जी को याद दिलाना चाहूंगा कि आप ग्रेटर रांची बनाने का मुखर होकर पक्ष ले रहे थे। उस समय भी आपका बयान 26 अगस्त 2003 को आया था कि छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम एवं संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम आदिवासी विरोधी है़, क्योंकि आदिवासी समुदाय अपने निजी स्वामित्व वाले जमीन को काश्तकारी अधिनियम के कारण बेच नहीं पाए। यह अधिनियम उसमें बाधक बन गए। मेरे ख्याल से आप गंदी राजनीति के दलदल में फंस गए हैं, जिसके कारण आप एक बार फिर आदिवासी विरोधी हो गए हैं। दूसरे घटनाक्रम एवं आपके द्वारा दिए गए बयान की ओर आपका ध्यान आकर्षित करते हुए याद दिलाना चाहूंगा, जब आपकी ओर से 18 मई 2003 को समाचार पत्र के मुखपृष्ठ पर बयान छपा कि “आदिवासी खांटी हिंदू हैं” जो अत्यंत निंदनीय है, क्योंकि संविधान के अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी धर्म को ग्रहण कर सकता है, परंतु किसी व्यक्ति का कोई हक नहीं हो सकता कि वह समस्त समुदाय के धर्म के बारे में कहे, जिसका मैंने उस समय भी तीव्र विरोध किया था। मेरी यह प्रतिक्रिया एक अखबार में चार जून 2003 को प्रकाशित हुई थी।

ये किया निवेदन

आपसे निवेदन करते हुए कहना चाहता हूं कि आदिवासियों के विरोध में विचार करने की प्रवृत्ति आपके मानस पटल पर कैसे आ गई। क्या आपका जुड़ाव मनुवादी संस्था के साथ होने के कारण हुआ है। इससे मुझे आश्चर्य हो रहा है। आपको पता होगा कि क्यों अतीत में करोड़ों लोग हिंदू धर्म से अलग होकर अन्य धार्मिक पहचान के लिए अपने ढंग से निर्माण कहते हुए हट गए। क्यों बाद में बौद्ध, जैन, सिख समेत अन्य धर्म अस्तित्व में आए। देश के महान कानूनविद् व भारत के संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने लाखों अनुयायियों के साथ क्यों बौद्ध धर्म को अंगीकार किया। अंत में आपसे मेरा निवेदन है कि आदिवासियों की धार्मिक आस्था एवं अस्तित्व के संबंध में कोई चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। आप जिस राजनीतिक दल के संगठन से जुड़े हुए हैं, वहीं बने रहें और अपनी धार्मिक पहचान का अपने ढंग से निर्माण करें। अपने राजनीतिक भविष्य के प्रति चिंतित रहें, ताकि पुन: आपके मन में कुतुब मीनार से कूदकर जान देने की बात को याद ना कर बैठें। मुझे लगता है कि बड़े-बड़े राजनेताओं की तरह मन की बातों के साथ व्यवहारिक जीवन एवं मानवीय भावनाओं के साथ कोई तारतम्य नहीं रह पाता है...। यद्यपि गुणात्मक विचारधारा में समुदाय के साथ घनिष्ठ सामंजस्य बना रहना अत्यंत आवश्यक है।

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