नवजातों की टूटती सांसों में ऑक्सीजन भर रहा एसएनसीयू

गिरिडीह वैसे तो अधिकतर लोगों के जेहन में यह बात घर कर गई है कि सरकारी अस्पतालों

By JagranEdited By: Publish:Sun, 18 Oct 2020 09:54 PM (IST) Updated:Mon, 19 Oct 2020 05:15 AM (IST)
नवजातों की टूटती सांसों में ऑक्सीजन भर रहा एसएनसीयू
नवजातों की टूटती सांसों में ऑक्सीजन भर रहा एसएनसीयू

गिरिडीह : वैसे तो अधिकतर लोगों के जेहन में यह बात घर कर गई है कि सरकारी अस्पतालों में सही ढंग से इलाज नहीं होता है। इस धारणा के कारण मरीज अपना इलाज कराने के लिए निजी नर्सिगहोम की ओर दौड़ लगाते हैं। चाहे वहां कितना भी रुपया खर्च हो जाए, इसकी परवाह वे नहीं करते हैं, लेकिन इसी सरकारी व्यवस्था के बीच गिरिडीह जिला के चैताडीह स्थित मातृत्व एवं शिशु स्वास्थ्य इकाई परिसर में संचालित है स्पेशल न्यूबोर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) जो नवजातों की टूटती सांसों में ऑक्सीजन भरने का काम कर रहा है वह भी बिल्कुल मुफ्त। यही नहीं जो निजी नर्सिंगहोम संचालक सरकारी अस्पताल पर प्रश्न चिह्न लगाते हैं वे भी अपने यहां से बीमार नवजातों को इलाज के लिए इसी एसएनसीयू में भर्ती कराते हैं।

बताया जाता है कि तत्कालीन उपायुक्त डॉ. नेहा अरोड़ा के अथक प्रयास के बाद गिरिडीह सदर अस्पताल का अंग चैताडीह स्थित मातृत्व एवं शिशु स्वास्थ्य इकाई एवं एसएनसीयू की शुरुआत की गई। इसका लोकार्पण चार अक्टूबर 2018 को स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी ने किया। इसके बाद से वहां गर्भवती, अन्य बीमारियों से ग्रसित महिला व बीमार बच्चों का सफलता पूर्वक इलाज किया जाने लगा।

अगर बात करें एसएनसीयू की तो यहां समय से पूर्व या 34 सप्ताह से पहले जन्म हुए नवजात, 1800 ग्राम से कम वजन वाले शिशु, प्रसव कालीन सांस में कठिनाई, पीलिया, तेज सांस, घरघराहट, पसली का धंसना, 40 सप्ताह में शिशु का वजन 4000 ग्राम से अधिक होना, स्तनपान नहीं करना, नीलापन, खरखराहट, हॉफना, दौरा पड़ना, मधुमेह से ग्रसित मां का शिशु, कम पेशाब होना, पेट फूलना, शरीर का तापमान सामान्य से कम या अधिक होना, रक्त में ग्लूकोज की कमी, सदमा, मिकोनियम एसपीरेशन, शिशु का रक्त स्त्राव, दस्त, बेहोशी आदि लक्षणवाले शिशुओं का इलाज किया जाता है।

आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2018 में यहां मातृत्व एवं शिशु स्वास्थ्य इकाई में जन्म लेनेवाले 127 शिशुओं को इलाज के लिए भर्ती किया गया था, जिसमें गंभीर रूप से बीमार 25 शिशुओं को रेफर किया गया, 14 लोग बगैर सूचना के अपने शिशु को लेकर चले गए, छह शिशुओं की मृत्यु हो गई एवं 82 शिशु स्वस्थ होकर घर गए। वहीं नर्सिगहोम से इस वर्ष 42 शिशुओं को इलाज के लिए भेजा गया जिसमें 22 शिशुओं को रेफर किया गया, तीन लोग बगैर सूचना के अपने शिशु को ले गए, तीन की मृत्यु हुई एवं 14 शिशु स्वस्थ हुए।

वर्ष 2019 में सरकारी अस्पताल के 455 शिशुओं को इलाज के लिए भर्ती किया गया। जिसमें 131 शिशुओं को रेफर किया गया। 47 लोग बगैर सूचना के अपने शिशुओं को ले गए, 15 शिशुओं की मृत्यु हो गई एवं 262 शिशु स्वस्थ हुए। इसी प्रकार इस वर्ष नर्सिगहोम या अन्य संस्थान से 351 शिशुओं को इलाज के लिए यहां भेजा गया, जिनमें गंभीर बीमारी से ग्रसित 173 शिशुओं को रेफर किया गया, 43 लोग बगैर सूचना के अपने शिशु को ले गए,12 शिशुओं की मृत्यु हुई एवं 123 शिशु स्वस्थ हुए।

वर्ष 2020 में एक जनवरी से तीस सितंबर तक सरकारी अस्पतालों के 301 शिशुओं को इलाज के लिए एसएनसीयू में भर्ती किया गया, जिनमें 60 शिशुओं को रेफर किया गया, 16 लाूेग अपने-अपने शिशुओं को ले गए, तीन शिशुओं की मृत्यु हो गई, 222 शिशु स्वस्थ हुए। वहीं इस वर्ष बाहर जन्मे 203 शिशुओं को इलाज के लिए एसएनसीयू में भर्ती कराया गया, जिनमें 78 शिशुओं को रेफर किया गया, 12 लोग बगैर सूचना के अपने शिशु को ले गए, नौ शिशुओं की मृत्यु हो गई एवं 104 शिशु स्वस्थ हुए।

नवजात को बाहर ले जाते थे स्वजन : एसएनसीयू गिरिडीह में जब नहीं था, तो तबीयत बिगड़ने पर नवजात को धनबाद, रांची, बोकारो आदि शहरों में स्वजन ले जाते थे। जबकि प्रसूता गिरिडीह में भर्ती रहती थी। इससे परेशानी के साथ-साथ काफी आर्थिक संकट से भी जूझना पड़ता था।

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