कृषि कानून के सवाल पर अटक गए नेताजी

संदीप केसरी शौर्य गढ़वा केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए कृषि कानून का विरोध हो रहा है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 10 Dec 2020 06:42 PM (IST) Updated:Thu, 10 Dec 2020 06:42 PM (IST)
कृषि कानून के सवाल पर अटक गए नेताजी
कृषि कानून के सवाल पर अटक गए नेताजी

संदीप केसरी शौर्य, गढ़वा :

केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए कृषि कानून का विरोध हो रहा है। विभिन्न दलों के लोग खुद को किसानों का हितैषी बताते हुए आंदोलन कर रहे हैं। गत 8 अगस्त को भारत बंद का आह्वान किया गया था। जिसमें इन दलों से जुड़े नेताओं ने सड़क जाम कर प्रदर्शन किया था। मगर ज्यादातर लोगों को यह पता नहीं है कि यह कानून क्या है तथा कौन से कौन तीन कानून हैं। कृषि कानून का विरोध कर रहे नेताओं से जब इस संबंध में पूछा गया तो इनमें से कई नेता इन तीन कानूनों के बारे में अच्छी तरह बता नहीं पाए तथा अपने-अपने तरीके से कानून की व्याख्या करने लगे। कृषि कानून के सवाल पर नेताजी अटक गए तथा सही जवाब भी नहीं दे सके। तीन कृषि कानून के बारे में पूछे जाने पर झामुमो जिलाध्यक्ष तनवीर आलम खान, कांग्रेस जिलाध्यक्ष अरविद तूफानी, राजद जिलाध्यक्ष तथा राजद जिलाध्यक्ष जमीरूदीन अंसारी ने कानून का विरोध तो किया मगर इसके बारे में पूरी जानकारी नहीं दे सके। जबकि भाकपा माले नेता कालीचरण मेहता ने तीनों कानून के बारे में विस्तृत रूप से जानकारी दी तथा अपने विरोध का कारण भी बताया। विभिन्न दलों के नेताओं की प्रतिक्रिया। -

मैं सबसे पहले किसान को बेटा हूं। बाद में किसी राजनीतिक दल से हूं। इसलिए किसानों के लिए आंदोलन कर रहा हूं। कृषि कानून काला कानून है। मोदी सरकार किसानों के उत्पाद को अडानी व अंबानी के हवाले करना चाहती है। हम किसी कीमत पर यह होने नहीं देंगे। इसको लेकर पुरजोर आंदोलन किया जाएगा। केंद्र सरकार इस कानून को जल्द वापस ले।

तनवीर आलम खान, जिलाध्यक्ष झामुमो

-

इस कानून से किसानों को काफी नुकसान है। एमएसपी तय नहीं होने के कारण किसानों को उनके उत्पाद का सही मूल्य नहीं मिल सकेगा। इसके अलावा कांट्रेक्ट पर खेती किए जाने से भी किसानों को नुकसान होगा। इसलिए हम इस कानून का विरोध कर रहें हैं। सरकार जल्द से जल्द इस कानून को वापस ले।

अरविद तूफानी, जिलाध्यक्ष कांग्रेस -

कृषि कानून किसानों के हक में नहीं है। मोदी सरकार के कथनी व करनी में अंतर है। कहते कुछ हैं। करते कुछ हैं। हिदुस्तान कृषि प्रधान देश है। यह भी अडानी व अंबानी के हक में चला जाएगा तो किसानों का क्या होगा। सरकार इस कानून को वापस ले। किसान है तो हिदुस्तान है। किसानों को उनके उत्पाद का सही मूल्य नहीं मिल पा रहा है।

जमीरूदीन अंसारी, जिलाध्यक्ष, राजद -

किसान बिल का विरोध करने का हमारा मुख्य कारण इस बिल को बगैर अन्य राजनीति दलों की सहमति के बगैर लागू किया जाना है। किसानों के हित के लिए हमारी पार्टी शुरू से विरोध कर रही है। क्योंकि यह कानून किसानों के हित के लिए नहीं बल्कि पूंजीपतियों के हित के लिए है। कृषि उत्पाद व्यापार व वाणिज्य कानून, आश्वासन एवं सेवा कानून तथा आवश्यक वस्तु संशोधन बिल से किसानों का भला नहीं होने वाला है। बल्कि व पूंजीपतियों के गुलाम हो जाएंगे।

कालीचरण मेहता, नेता, भाकपा माले। - जानिए क्या है कृषि कानून के तीन प्रावधान

1. कृषि उत्पाद व्यापार व वाणिज्य कानून-2020: राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बाद इस कानून के तहत अब किसान देश के किसी भी हिस्से में अपना उत्पाद बेचने के लिए स्वतंत्र हैं। इससे पहले की फसल खरीद प्रणाली उनके प्रतिकूल थी, क्योंकि वे सिर्फ पास की मंडी में ही अपने उत्पाद बेच सकते थे। नए कानून से किसान अपने लिए बाजार का चुनाव कर सकते हैं। वे अपने या दूसरे राज्य में स्थित कोल्ड स्टोर, भंडारण गृह या प्रसंस्करण इकाइयों को कृषि उत्पाद बेच सकते हैं। फसलों की सीधी बिक्री से एजेंट को कमीशन नहीं देना होगा। न तो परिवहन शुल्क देना होगा और न ही सेस या लेवी देनी होगी।

2. आश्वासन व कृषि सेवा कानून-2020: यह कानून बनने के बाद किसान अनुबंध के आधार पर खेती के लिए आजाद होगें। अनुबंध फसलों का होगा। किसानों की जमीन सुरक्षित रहेगी। 3.आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून-2020: इस बिल के तहत अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज व आलू को आवश्यक वस्तु की सूची से बाहर करने का प्रावधान है। इसके बाद युद्ध व प्राकृतिक आपदा जैसी आपात स्थितियों को छोड़कर भंडारण की कोई सीमा नहीं रह जाएगी। किसान अपने उत्पादों का भंडारण का ज्यादा कीमत पा सकेंगे।

chat bot
आपका साथी