कोरोना ने छिना रोजगार, अब कैसे चलेगा परिवार

- प्रवासी मजदूरों के चेहरे पर रोजगार-धंघास तो हो गए। लेकिन इन्हें अब घर परिवाराह बतौर मजदूरी मिल जाता था। इसमें

By JagranEdited By: Publish:Sat, 30 May 2020 06:20 PM (IST) Updated:Sat, 30 May 2020 06:20 PM (IST)
कोरोना ने छिना रोजगार, अब कैसे चलेगा परिवार
कोरोना ने छिना रोजगार, अब कैसे चलेगा परिवार

रमना: दूसरे राज्यों में रोजी-रोटी की तलाश में गए लोग कोरोना संक्रमण से बचने के लिए जैसे-तैसे घर वापस तो आ गए, लेकिन इन्हें अब घर परिवार चलाने की चिता सताने लगी है। कोरोना ने रोजी-रोजगार छिन लिया। अब घर परिवार कैसे चलेगा, दो जून की रोटी का जुगाड़ कहां से होगा। इतनी जमीन जायदाद भी नहीं है कि पूरे परिवार का भरण पोषण हो सके। जमीन है भी तो सिचाई के साधन के अभाव में भूमि बंजर की तरह है। सिचाई, बिजली और सरकारी योजनाओं का हाल खस्ता है। यह दर्द महामारी के कारण परदेश से घर लौटे प्रवासी मजदूरों का है। प्रखंड के मध्य विद्यालय गम्हरिया मे बने सरकारी क्वारंटाइन केन्द्र में रह रहे मजदूरों ने अपनी व्यथा बताई।

- मुंबई, महाराष्ट्र एवं तमिलनाडु में जाकर कारपेंटर का कामकरते थे। लॉकडाउन के कारण काम बंद हो गया है। काम नहीं मिलने के कारण वापस घर चला आया। अब परिवार का परवरिश कैसे होगा समझ में नहीं आ रहा है। थोड़ा बहुत जमीन भी है तो सिचाई और बिजली का साधन नहीं है। वहां लगभग 16 हजार रुपये प्रतिमाह बतौर मजदूरी मिल जाता था। इसमें 8-10 हजार रुपये घर भेजता था। अगर यहीं काम और बेहतर मजदूरी मिले तो बाहर जाने की आवश्कता क्यों पड़ेगी।

फोटो - 4 - महेंद्र कुमार सिंह, बुल्का।

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- गुजरात के सूरत में एक निजी कंपनी में ऑपरेटर का काम कर रहा था। इसी बीच कोरोना संक्रमण को लेकर पूरे देश में लॉकडाउन लग गया। कई दिनों तक तो गुजरात में ही फंसा रहा। जब खाने-पीने पर आफत आ गई तो घर आने को सोचा। बड़ी मुश्किल से घर लौटा हूं। अब बाहर कमाने जाने की इच्छा नहीं होती है। परंतु यहां क्या करेंगे यहां तो रोजी रोजगार है ही नहीं। परिवार चलाने के लिए मेहनत मजदूरी तो करना ही पड़ेगा। यहां वैसा रोजगार नहीं मिलेगा जिससे पूरे परिवार का भरण पोषण हो पाएगा।

फोटो - 3 - संजय राम, गम्हरिया।

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चेन्नई में ट्रक चलाता था। महीने में 15000 रुपये मिलता था। इसमें 8-10 हजार रुपए घर भेजता था। लेकिन कोरोना और लॉकडाउन ने सब खत्म कर दिया। कंपनी पूरा वेतन काट लिया। मजबूरी में घर वापस लौटना पड़ा। गांव में जगह जमीन भी नहीं है जिसमें खेती कर पूरे परिवार का भरण पोषण कर सकूंगा। सबसे बड़ा सवाल रोजगार का है। अपने गांव पंचायत में रोजगार का अभाव है। घर पर रह कर परिवार चलाना मुश्किल है। यदि स्थानीय स्तर पर परिवार का भरण पोषण करने लायक कोई काम मिल जाता तो बाहर काम करने कभी नहीं जाते। परिवार के बीच ही रहकर काम करते।

फोटो - 2- नागेंद्र पासवान, सिलीदाग।

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- महाराष्ट्र के पुणे जिला में रिगर के पद पर काम कर रहा था। वहां करीब 15 से 18 हजार कमाई हो जाती थई। लॉकडाउन के कारण 2 माह से वहां भी बेकार बैठे थे। घर पर भी रोजगार की समस्या है। अब परिवार का भरण पोषण कैसे होगा। कोरोना वायरस ने रोजगार छीन लिया। बहुत मुश्किलों का सामना कर घर परिवार तक पहुंच सके हैं। यदि स्थानीय स्तर पर कोई अच्छा काम मिल जाता तो यहीं काम करते। किसी दूसरे प्रदेश में रोजगार की तलाश में कभी नहीं जाते। परिस्थिति सामान्य होने पर यदि यहां रोजगार नहीं मिलेगा तो बाहर जाना मजबूरी बन जाएगा।

फोटो - 5 - विकास यादव, गम्हरिया।

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