Weekly News Roundup Dhanbad: झारखंंड में सड़क पर सियासत, कहीं भटक न जाए विकास की राजनीति का रास्ता
शहर का बड़ा स्कूल है। परेशान कर रखा है। हाउसिंग कॉलोनी के शर्मा जी आजिज आ गए तो लंबा मेल कर दिया। माजरा ऑनलाइन क्लास का है। उनका तर्क है कि बच्चा तो घर पर रहकर पढ़ रहा है।
धनबाद [ आशीष सिंह ]। सड़क याद है। ज्यादा पुरानी फिल्म नहीं है। अवरोधों के बाद भी सुखद अंत। एक सड़क यहां भी है। इसने एक ही पार्टी के दो लोगों की राहें जुदा कर दी हैं। सामने कुछ नहीं बोलते, पीठ पीछे होते ही एक-दूसरे की कमियां दिखने लगती हैं। दरअसल, धनबाद में राज्य की पहली आठ लेन सड़क बन रही थी। इस पर सियासत दौड़ पड़ी तो काम बंद हो गया। कौन शुरू कराया, क्यों बंद हो गया, अब इसी पर कहा-सुनी हो रही है। पूर्व मेयर कह रहे कि सड़क बननी चाहिए तो विधायक जी कहते हैं फ्लाईओवर जरूरी है। सड़क तो कभी भी बन सकती है। पहले शहर का जाम हटाना होगा। बैंक मोड़-पूजा टॉकीज फ्लाईओवर इसका निदान है। पूर्व मेयर भी गोला दाग देते हैं- इस फ्लाईओवर का वो छह साल से नक्शा तक नहीं बनवा पाए। अब देखते हैं सड़क कहां लेकर जाती है।
शर्मा जी ने कर दिया कायल...
शहर का बड़ा स्कूल है। परेशान कर रखा है। हाउसिंग कॉलोनी के शर्मा जी आजिज आ गए तो लंबा मेल कर दिया। माजरा ऑनलाइन क्लास का है। उनका तर्क है कि बच्चा तो घर पर रहकर पढ़ रहा है। इंटरनेट का खर्च मेरा बढ़ गया है, बिजली बिल ज्यादा आ रहा है, बच्चों का मोबाइल पर अधिक समय गुजर रहा है, मेरा समय भी ज्यादा खर्च हो रहा है। ऑनलाइन क्लास के साथ और बाद भी बच्चों को समझाना पड़ रहा है। और स्कूल है कि पूरी फीस मांग रहा है, चार्जेज भी। आखिर क्यों भाई। फीस ठीक है, लेकिन मोबाइल एप पर पढ़ाने का चार्ज अलग से क्यों। प्रबंधन सकते में आया तो अपना एक दूत उनके घर भेज दिया। यह बात मोहल्ले में फैल गई। अब स्कूल से परेशान लोग उनके यहां हाजिरी बनाने लगे हैं और महशय चौड़े हो रहे हैं।
बच्चों को बहला गया जुगाड़
धनबाद का टुंडी नक्सल प्रभावित इलाका है। समस्याएं बहुत हैं। दो जून की रोटी जुटाने में पसीने छूट जाते हैं। मुए कोरोना ने गरीबी में आटा और गीला कर दिया है। काम-काज ठीक से नहीं हो रहा, मगर घर खर्च तो चलाना है। यहां के लोगों ने तरीका भी ढूंढ निकाला। स्कूल बंद है तो मास्टर साहब बच्चों को चावल और नगदी घर-घर जाकर बांट रहे हैं। बड़ा सहारा मिल गया। चावल से एक वक्त की भूख मिटने लगी। पैसे से घर का तेल-नमक आने लगा। बच्चों ने कुछ और खाने को मांगा तो क्या करें। पैसा तो नमक-तेल पर खर्च हो गया। मां-बाप ने इसका भी तरीका ढूंढ लिया। बच्चों को ताड़ का फल पकड़ा दिया। यह कहते हुए कि शहर के बच्चे यही खाते हैं। बड़ी-बड़ी गाडिय़ां लेकर खरीदने आते हैं, फिर भी नहीं मिलता। बच्चे तो बच्चे, इसी में खुशी ढूंढ ली।
एप्पल तो गया, विवाह भी बंद
एप्पल याद है। विवाह मंडप तो याद ही होगा। पिछले सप्ताह की ही तो बात है। आप लोगों से रूबरू करवाया था। बेकारबांध के पास एक एप्पल है, तो कला भवन के सामने विवाह भवन। दोनों शहर के बीचोंबीच। आमदनी भी ठीक-ठाक। पांच साल से दोनों पर कब्जा जमा हुआ था। इसकी चर्चा क्या हुई, प्रशासन ने दोनों को ही सील कर दिया। इन्हेंं हथियाने की चाहत हर किसी को थी। यह संपत्ति जिला परिषद के अधीन है। पिछले पांच वर्षों से दोनों भवन खास लोगों के पास थे। इसका मोह संचालक नहीं छोड़ पा रहे थे। अध्यक्ष जी की सरपस्ती जो ठहरी। अब जाकर प्रशासन का डंडा चला तो उनकी बोलती भी बंद हो गई। हर बार उनके पाले में गेंद रहती थी और सामने वाला बोल्ड। इस दफा माहौल उनके अनुकूल न रहा। बस, अध्यक्ष जी और उनके मातहत चारों खाने चित।