Weekly News Roundup Dhanbad: पानी की पॉलिटिक्स में मैडम पानी-पानी, पढ़ें झरिया की राजनीति की खरी-खरी
झरिया विधायक पूर्णिमा सिंह रोज बयान दे रही कि अधिकारियों से बोल दिए हैं पानी मिल जाएगा। उनकी विरोधी भाजपा नेत्री रागिनी सिंह भी यही राग अलाप रही है। बयानवीरों के कारण लोगों में सुबह उम्मीद जगती है शाम में काफूर। पानी के लिए ऐसी सियासत में बेहद खारापन है।
धनबाद [अश्विनी रघुवंशी]। Weekly News Roundup Dhanbad पानी-पानी चीख रहा था प्यासा दिल, शहर-ए-सितम का कैसा ये दस्तूर हुआ। सात दिनों से झरिया के लोगों को पानी नहीं मिला है। वो झरिया जो दामोदर नद के किनारे धरती की आग के ऊपर आबाद है। वातावरण में तनिक उमस है। गर्मी भी। इसलिए पानी के लिए हाहाकार मच गया है। पानी पर सियासत भी कम नहीं। कांग्रेस विधायक पूर्णिमा सिंह रोज बयान दे रही है कि सरकारी अधिकारियों से बोल दिए हैं, कल पानी मिल जाएगा। उनकी विरोधी भाजपा नेत्री रागिनी सिंह भी यही राग अलाप रही है। बयानवीरों के कारण लोगों में सुबह उम्मीद जगती है, शाम में काफूर। पूर्णिमा हो या रागिनी, पानी के लिए हलकान लोगों का दर्द महसूस होता तो कुछ टैंकरों से झरिया के हरेक मुहल्ले में थोड़ा बहुत पानी जरूर चला जाता। दोनों सामर्थ्यवान हैं। वाकई पानी के लिए ऐसी सियासत में बेहद खारापन है।
खेल को मिल गए साहब : 20 साल बाद आखिरकार झारखंड के हरेक जिले को खेल पदाधिकारी मिल गए। जेपीएससी से चयन के बाद मुख्यमंत्री ने लाटरी कर सीधे जिलों में पदस्थापित कर दिया। बालीबाल खिलाड़ी शिवेंद्र कुमार सिंह भी साहब बन गए, लातेहार के जिला खेल पदाधिकारी। धनबाद पब्लिक स्कूल की हीरक शाखा के अपने स्पोट्र्स टीचर। रोचक बात। बालीबाल खेलने में शिवेंद्र इंटर में अनुत्तीर्ण हो गए थे। खूब लानत-मलानत हुई। दिल्ली में रहने वाली दीदी नीतू सिंह एवं बहनोई मृत्युंजय सिंह ने प्रोत्साहित किया। फिर हो गए शुरू। शिवेंद्र की स्वीटी से शादी हुई। इत्तेफाक से वो भी बालीबाल की राष्ट्रीय खिलाड़ी। साहब बनने पर विनोदनगर स्थित आवास पर पिता राजेंद्र सिंह एवं माता कालिंदी देवी ने उपहार में बालीबाल दिया। शिवेंद्र की बिटिया आराध्या तुरंत उसे जमीन पर पटकने लगी। एक और खिलाड़ी तैयार। खैर, बस पड़ाव के सामने पिता का पिंकराज होटल है। जाइए। मिठाई खाइए।
माओवादी निश्चिंत, पुलिस भी : घने जंगल एवं पहाडिय़ों को अपनी गोद में समेटे टुंडी में कदम रखने से लोग डरते हैं तो इसका मुख्य कारण है माओवाद। अधिकतर गांवों में कभी न कभी लाल सलाम का नारा लग चुका है। टुंडी इसलिए भी सरकारी रिकार्ड में रहता है कि एक करोड़ के इनामी प्रशांत मांझी, अजय महतो, नुनूचंद महतो जैसे खूंखार माओवादी लीडर यही के हैं अथवा उनका कर्म क्षेत्र है। एक साल पहले तक माओवादी लीडरों के आने की भनक लगती थी तो पुलिस कप्तान के कान खड़े हो जाते हैं। 10 महीने में धनबाद ने तीन पुलिस कप्तान देख लिए हैं। इतने कम समय में पुलिस कप्तान कोयला नगरी के अपराध को समझें या टुंडी के माओवाद को। सो, माओवादी लीडर भी बेखौफ हैं। सीआरपीएफ के लोग कभी कभार गश्ती जरूर कर रहे हैं। शायद 'जियो और जीने दो'के सूत्र वाक्य को स्वीकार कर लिया गया है।
डॉक्टर अजय ने फिर फैलाया पंजा : डॉक्टर अजय कुमार। इंसान एक, विशेषता अनेक। पढ़ाई के बाद जीवन की शुरुआत में चिकित्सक। फिर अविभाजित बिहार में बन गए पुलिस अधीक्षक। टाटानगरी में इतने अपराधियों का एनकाउंटर किए कि बच्चे-बच्चे की जुबान पर चढ़ गए। वही पर खाकी वर्दी उतार दी। टाटा मोटर्स में बन गए कॉरपोरेट अफसर। एक के बाद दूसरी कंपनी की यात्रा करते हुए झाविमो के टिकट पर जमशेदपुर से चुनाव लड़ा तो सांसद भी बन गए। फिर कांग्रेस गए तो झारखंड के प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी मिली और राष्ट्रीय प्रवक्ता का दर्जा भी। अचानक कांग्रेस छोड़ कर आप में चले गए। रहने लगे दिल्ली। सहसा उन्होंने आप का जाप छोड़ दिया। दोबारा कांग्रेस में आए। अब झारखंड का मोह कैसे छूटे। शुरू हो गई यात्रा। फैलाने लगे पंजा। कोयलानगरी आए तो कृषि विधेयक पर व्याख्यान दिए। अब बेरमो के उपचुनाव में सियासी डॉक्टरी दिखाने को बेताब हैं।