Weekly News Roundup Dhanbad : यहां के साहब को बदलाव बर्दाश्त नहीं! जानें क्या है छुक-छुक संचालन का हाल...

Weekly News Roundup Dhanbad आम जनों को आधुनिक होते रेलवे से बदलाव की आस है लेकिन मजाल जो साहब को बदलाव बर्दाश्त हो।

By Sagar SinghEdited By: Publish:Fri, 17 Jan 2020 08:02 PM (IST) Updated:Fri, 17 Jan 2020 08:07 PM (IST)
Weekly News Roundup Dhanbad : यहां के साहब को बदलाव बर्दाश्त नहीं! जानें क्या है छुक-छुक संचालन का हाल...
Weekly News Roundup Dhanbad : यहां के साहब को बदलाव बर्दाश्त नहीं! जानें क्या है छुक-छुक संचालन का हाल...

धनबाद, [तापस बनर्जी]। मंत्री जी ने जब से रेलवे को आधुनिक बनाने के दावा किया है, तब से आम जनों में स्थिति बदलने की आस है। तेजस की तेजी से इस उम्मीद को और बल मिला, लेकिन मजाल जो साहब को बदलाव बर्दाश्त हो। कहते हैं कि सब काम जब सिस्टम से चल ही रहा है तो बदलाव की क्या जरुरत। तभी तो यहां साहब की कृपा से सह ठीक-ठाक ही हैं। आइए जानें धनबाद में क्या है छुक-छुक संचालन का हाल...

हमनी लाइने में ठीक हैं सर 

जंक्शन पर भोर में पहुंचो तो लंबी लाइन। शाम और रात में और लंबी लाइन। लंबी होती लाइन को देखकर आखिर रेल अफसरों से रहा नहीं गया। अपने नुमाइंदों को मोबाइल से जनरल टिकट बुक कराने का नुस्खा बताने भेज दिया। काला कोट पहने टीटीई बाबू मेज-कुर्सी लगा लैपटॉप खोलकर बैठ गए। वैसे तो उन्हें मोबाइल पर टिकट बुक कराने का तौर-तरीका बताना था मगर ध्यान मेन गेट पर था जहां से यात्री आराम से बाहर निकल रहे थे और यूं लग रहा था मानो लक्ष्मी रूठ कर जा रही है। बैठना तो पूरे दिन था मगर बाबुओं का मन नहीं लगा। दोपहर होते होते लंच ब्रेक के नाम पर खिसक लिए। दूसरे दिन फिर टिकट खिड़की के बाहर लंबी लाइन। अब साहब ने खुद पहुंचकर पूछ लिया- भैया, मोबाइल पर बुक क्यों नहीं कराते। सवाल खत्म होने से पहले ही जवाब मिला- मोबइलवा में बड़ी लफड़ा है सर, हमनी लाइने में ठीक हैं...। 

फस्ट फ्लोर कमाल है 

धनबाद रेलवे स्टेशन के अंदर अगर लाल परी के साथ पकड़े गए तो यकीनन लाल घर की सैर कर लेंगे। यहां पुलिस ऐसे मामलों में 100 फीसद मुस्तैद रहती है। मजाल कि कोई लाल परी लेकर चला जाए। पर, जाम छलकाने की हसरत है तो परेशानी की कोई बात नहीं। मुख्य द्वार से अंदर और सीढिय़ों से ऊपर चले जाएं। बायीं ओर कुली विश्रामालय का बोर्ड है। उससे सटे कमरों को रेलवे ने चकाचक कर दिया है। यहां आराम से बैठकर जाम का लुत्फ उठा सकते हैं। रात की छोडि़ए, यहां दिन में भी किसी को झांकने की फुर्सत नहीं। मजेदार तो यह है कि स्टेशन के सुरक्षा सिपहसालार कहते हैं- भैया सच कहूं तो मैं जब धनबाद आया था, उस वक्त ऊपर ही रह रहा था। जब से क्वार्टर मिला, कभी ऊपर गया ही नहीं। 

कालिख में सबकी हिस्सेदारी  

रेल के मुखड़े पर कोयले की कालिख फिर दिखने लगी है। चंद माह पहले जब कड़ाई हुई थी तो जीआरपी-आरपीएफ दोनों की आंखों में आंसू थे। दबी जुबान से कहते फिर रहे थे, थाने का खर्च चलाना भी मुश्किल है। वेंडर पहले ही बंद थे, अब कोयले की काली कमाई पर भी आफत आ गई है। हाजीपुर से दिल्ली तक निगहबानी खाकी के लिए सिरदर्द बन गई थी। मगर, अब लगता है जैसे बात आहिस्ता-आहिस्ता ही सही, बन रही है। फिलहाल पैसेंजर ट्रेनों में कोयले की बोरियों को सफर का परमिशन दिया गया है। हालांकि तात्कालिक ऑर्डर सिर्फ छोटे स्टेशन और हॉल्ट के लिए जारी किया गया है। यानी, भूली, प्रधानखंता, धोखरा, निचितपुर जैसी जगहों पर ही इस ऑफर का लाभ ले सकते हैं। एक्सप्रेस ट्रेनों के लिए थोड़ा इंतजार कीजिए।

बच्चे आगे, पीछे कौन...  

डीएवी स्कूल मैदान वर्षों से आमदनी का जरिया थी। दुर्गापूजा मेला तो कभी दिवाली में पटाखे की दुकानें सजती थीं। इस साल भी सजीं, कमाई अलग-अलग जेबों तक पहुंच गई। पर, अगले साल क्या होगा यही सोच-सोच कर मैदान के टेंपररी मालिकान परेशान हैं। रेलवे ने फोरलेन बनाने के लिए न सिर्फ पुराना बाजार की जमीन पर कब्जा करने वालों को खदेड़ा बल्कि स्कूल से खेल का वह मैदान भी छीन लिया जहां शायद ही कभी बच्चे खेलते थे। असल में मैदान से खेल होता रहा। रेलवे का दावा है कि 1988 में लीज खत्म हो गया। स्कूल की दावेदारी 2011 तक लीज की रकम जमा करने की है। चलो मान लेते हैं कि शिक्षा के मंदिर के पुजारी सच बयां कर रहे हैं। अब जरा यह भी बता दीजिए कि नौ साल तक लीज रिन्यूअल से क्यों भागते रहे। अब पछताए का होत जब चिडिय़ा चुग गई खेत।   

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