National Youth Day 2021: स्वामी विवेकानंद को बाबा वैद्यनाथ से मिलती थी उर्जा, शिकागो जाने से पहले और लौटकर की आराधना
Swami Vivekananda Jayanti 2021 स्वामी विवेकानंद का करीब सात बार देवघर आगमन हुआ। मकसद स्वास्थ्य लाभ व तीर्थयात्रा था। आम तौर पर वह यहां दिसंबर व जनवरी में ही आए। स्वामीजी चिट्ठियां भी खूब लिखते थे। चिट्ठियों के माध्यम से वह अपने मित्रों से आत्मीय संबंध बनाए रखते थे।
देवघर [ आरसी सिन्हा ]। शिकागो धर्म सम्मेलन के माध्यम से दुनिया भर में भारतीय अध्यात्म और दर्शन की विजय पताका फहराने वाले स्वामी विवेकानंद का वैद्यनाथ धाम देवघर से भी गहरा नाता रहा है। स्वीमीजी शिकागो के धर्म सम्मेलन में जाने से पहले और सम्मेलन से लौटने के बाद भी यहां आए थे। शिकागो से लौटने के दो साल बाद 1899 में जब वह देवघर आए थे, तब पंडा स्व. हरिचरण मिश्र के निर्देशन में उन्होंने ज्योतिॄलग की पूजा की थी। स्व. हरिचरण मिश्रा के परपोते (चौथी पीढ़ी) दुर्लभ मिश्र बताते हैं कि स्वामी जी के साथ उनके परदादा ने धाॢमक मंथन भी किया था। देवघर आकर पूजा करने के बाद स्वामी विवेकानंद ने पंडा की पोथी में अपने विचार लिखकर हस्ताक्षर किए थे। वह पोथी आज भी पंडा परिवार ने धरोहर के रूप में सहेज रखा है। स्वामी जी का हस्तलेख रामकृष्ण मिशन विद्यापीठ, देवघर के म्यूजियम में भी संरक्षित है। रामकृष्ण मिशन से जुड़े साधक आज भी जब आते हैं तो स्व. हरिचरण मिश्र के वंशज ही उन्हें पूजा कराते हैं।
छह बार आए थे बाबाधाम
स्वामी विवेकानंद का करीब चह बार देवघर आगमन हुआ। मकसद स्वास्थ्य लाभ व तीर्थयात्रा था। आम तौर पर वह यहां दिसंबर व जनवरी में ही आए। स्वामीजी चिट्ठियां भी खूब लिखते थे। चिट्ठियों के माध्यम से वह अपने मित्रों से आत्मीय संबंध बनाए रखते थे और कुशल क्षेम के साथ संदेश भी देते थे। देवघर प्रवास के समय भी उन्होंने अलग-अलग समय में यहां से पांच पत्र लिखे हैं। विवेकानंद की पत्रावली में भी यह दर्ज है।
पूर्ण बाबू की कोठी में ठहरे थे स्वामीजी
24 दिसंबर 1889 को स्वामीजी देवघर आए तो यहां पूर्ण बाबू की कोठी में ठहरे। यहां से अपने मित्र बलराम बसु को लिखे पत्र में उन्होंने इसकी चर्चा की है। लिखा था कि यहां के पानी में आयरन है, इसलिए स्वास्थ्य ठीक नहीं है। कल बनारस चला जाऊंगा। दो दिन बाद 26 दिसंबर को मित्र प्रमदा दास को पत्र लिखा था कि देवघर में एक कोलकाता निवासी के मकान में दो-चार दिन से हूं, किंतु वाराणसी जाने के लिए चित्त अत्यंत व्याकुल है। कुछ दिन वाराणसी में ही रहने की अभिलाषा है, देखते हैं श्रीविश्वनाथ और श्री अन्नपूर्णा क्या करती हैं।
बाल विवाह व विधवा विवाह के प्रश्न पर लिखा पत्र
स्वामीजी तीन जनवरी 1898 को भी वह देवघर आए थे। यहां से उन्होंने मृणालिनी बसु को पत्र लिखा था। पत्र का आरंभ मां के संबोधन से किया गया है। पत्र में बाल विवाह, विधवा विवाह समेत अन्य सामाजिक कुरीतियों के संबंध में पूछे गए सवाल का जवाब भी दिया गया है। हालांकि यह भी लिखा है कि इतने कठिन सवालों का जवाब छोटे से पत्र में नहीं दिया जा सकता है। इसके बाद दिसंबर 1898 में वह फिर देवघर आए। तब यहां से ओलि बुल को पत्र लिखा। उसमें लिखा था कि यूरोप व अमेरिका में शीघ्र ही आकर मिलूंगा। पत्र में आरोग्य की चर्चा की। जो यह दर्शाता है कि वे स्वास्थ्य लाभ के ख्याल से यहां आए थे। स्वामीजी जहां ठहरे थे, आज वह कोठी वजूद में नहीं है, लेकिन स्थानीय लोग जानते हैं कि यहां बंगाली कोठी हुआ करती थी, जहां लोग स्वास्थ्य लाभ के मद्देनजर आते थे।स्वामीजी भी उसी कोठी में ठहरे थे।
समाज सुधारक राजनारायण बोस के साथ हुई थी चर्चा
पहली बार स्वामीजी का देवघर आगमन 1887 की गॢमयों में हुआ था। तब भी वे वे बीमार थे। गुरु भाइयों के अनुरोध पर वे बाबा धाम आए थे। उसके बाद सिमुलतला चले गए थे। 1890 के जुलाई महीने में वे भागलपुर आए थे। यहां से वे अखंडानंद जी के साथ लखीसराय और वहां से देवघर आए थे। उस समय समाज सुधारक ब्रह्मसमाज के राजनारायण बोस पुरनदाहा में ही रहते थे। यहीं उनकी विवेकानंद से मुलाकात हुई थी। बोस महाशय के साथ नरेंद्रनाथ (स्वामी विवेकानंद) की पुरानी तथा आधुनिक काल की घटनाओं, ब्रह्मसमाज जैसे गूढ विषयों पर चर्चा हुई थी। कुछ समय बाद जब स्वामी जी विश्व में प्रसिद्ध हो गए तब राजनारायण बाबू को समझ में आया कि इस संन्यासी से तो हम पूर्व में मिले थे।
विवेकानंद पर उपलब्ध साहित्य के मुताबिक स्वामी जी का देवघर आगमन छह से सात बार हुआ है। वे यहां बाबा के दर्शन करने व स्वास्थ्य लाभ के लिए आए। काशी जाने के दौरान भी वे यहां रुके थे। यहां से कई पत्र भी लिखे थे।
-जयंतानंद जी महाराज, सचिव, रामकृष्ण मिशन विद्यापीठ, देवघर।
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