सरकार को धान अधिप्राप्ति के समय ही राइस मिलों की आती याद, भुगतान नहीं होने से बढ़ा संकट Dhanbad News

वर्ष 2016-17 में प्राइवेट एजेंसी नेकोफ के माध्यम से धान की खरीदारी हुई। नेकोफ द्वारा धान अधिप्राप्ति का विपत्र उपलब्ध नहीं कराया गया। इस कारण बिल नहीं बन पाया है।

By MritunjayEdited By: Publish:Thu, 12 Sep 2019 07:36 AM (IST) Updated:Thu, 12 Sep 2019 07:36 AM (IST)
सरकार को धान अधिप्राप्ति के समय ही राइस मिलों की आती याद, भुगतान नहीं होने से बढ़ा संकट  Dhanbad News
सरकार को धान अधिप्राप्ति के समय ही राइस मिलों की आती याद, भुगतान नहीं होने से बढ़ा संकट Dhanbad News

धनबाद [श्रवण कुमार]। आर्थिक मंदी का असर राइस मिल पर भी दिखने लगा है। हालत यह है कि पांच में से एक राइस मिल बंद हो चुकी है। बाकियों की स्थिति भी खराब है। इनकी बदहाल होती स्थिति की बड़ी वजह मिलिंग के लिए क्षमता से कम धान की उपलब्धता, वर्ष 2011-12 से मिलिंग, लोडिंग व अनलोडिंग राइस और ट्रांसपोर्टिंग खर्च का बकाया समेत रखरखाव पर दिन प्रतिदिन बढ़ता खर्च है।
धनबाद में शिवशंभू, प्रिया, जय हनुमान, जगदंबा व कल्याणी राइस मिल हैं। इसमें चार गोविंदपुर और एक कतरास में है। प्रत्येक राइस मिल की मिलिंग (धान से चावल बनाने) क्षमता सालाना एक हजार लॉट (40 क्विंटल का एक लॉट) है, जिन्हें अभी 30 से 35 लॉट ही मिल पा रहा है। इसके अलावा राइस मिलों को वर्ष 2011-12 से मिलिंग, लोडिंग, अनलोडिंग व ट्रांसपोर्टिंग खर्च का भुगतान नहीं मिलने से नुकसान बढ़कर तीन से चार करोड़ रुपये पहुंच गया है। वर्ष 2011-12 से किसानों से धान खरीदारी कर राइस मिलों के मिलिंग कराई जा रही है। इसके लिए राइस मिल को 20 रुपये प्रति क्विंटल मिलिंग चार्ज, ट्रांसपोर्टिंग, लोडिंग व अनलोडिंग खर्च सरकार स्तर से भुगतान होना है, जो लगातार बकाया चल रहा है।
वर्ष 2011 से 13 और 2015-16 से लेकर मार्च 2019 तक मिलों का भुगतान नहीं हुआ है। इस कारण बकाया करीब चार करोड़ तक पहुंच गया है। वर्ष 2015 में खुली जगदंबा राइस मिल बंद हो चुकी है और जो बची हुई है उसे चलाने में लागत अधिक बैठ रहा है। इससे मिल मजदूरों व स्टॉफ की छटनी की जा रही है। वर्ष 2011 में राइस मिलों में 30 से 35 मजदूर व स्टॉफ थे, जो अब घटकर बमुश्किल 10 ही रह गए हैं। अगर अब भी सरकार द्वारा ध्यान नहीं दिया गया तो बची हुई मिलें भी बंद हो जाएंगी जिसका सीधा असर धनबाद में धान अधिप्राप्ति व किसानों पर पड़ेगा।

राइस मिलों की स्थिति
- वर्ष 2012 में शिवशंभू, प्रिया व हनुमान राइस मिल थी। वर्ष 2015 में दो नई मिल जगदंबा व कल्याणी खुली।
- अभी चार राइस मिल रही चल रही। वर्ष 2015 में खुली जगदंबा बंद हो चुकी है। अन्य राइस मिल  भी बंदी के कगार पर।
- वर्ष 2011 में साइस मिलों में 30 से 35 मजदूर व स्टॉफ थे, जो अब घटकर 10 हो गए हैं।
- राइस मिलों की उत्पादन क्षमता एक हजार लॉट (एक लॉट में 400 क्विंटल) है। वर्ष 2011-12 में 350 लॉट धान मिला था। अभी 30 से 35 लॉट ही धान मिल रहा।
कब किसके माध्यम से हुई धान अधिप्राप्ति व मिलों को भुगतान की स्थिति
- वर्ष 2011-12 और वर्ष 12-13 में पैक्स के माध्यम से धान की खरीदारी हुई। पैक्सों को किसानों से धान खरीदना और मिलों को भुगतान करना था। राइस मिलों को मिलिंग का भुगतान अभी तक नहीं मिला। 
- वर्ष 2015-16 और वर्ष 2017-18 में एफसीआइ के माध्यम धान की खरीदारी हुई। भुगतान के लिए मिलिंग विपत्र मुख्यालय भेजा गया। 
- वर्ष 2016-17 में प्राइवेट एजेंसी नेकोफ के माध्यम से धान की खरीदारी हुई। नेकोफ द्वारा धान अधिप्राप्ति का विपत्र उपलब्ध नहीं कराया गया। इस कारण बिल नहीं बन पाया है।
- वर्ष 2018-19 में एसएफसीआइ के माध्यम से 22684.61 क्विंटल धान की खरीदारी हुई। राइस मिलों द्वारा अभी तक बिल जमा नहीं किया गया है।
नौ प्रखंडों में एक-एक राइस मिल: वर्ष  2011-12 में धान अधिप्राप्ति के लिए पूरे धनबाद में 40 पैक्स थे, जो अब घटकर नौ हैं। हालांकि सहकारिता विभाग जिला में पंचायत स्तर 256 पैक्स निबंधित हैं, लेकिन स्टेट फूड कॉर्पोरेशन की फाइल में धनबाद में नौ पैक्स ही मान्य है। जिन पैक्सों के पास कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था है, कॉर्पोरेशन उसे ही गिनती करता है। इस दृष्टि से धनबाद प्रखंड के पुटकी, गोविंदपुर के बिराजपुर, तोपचांची के कोरकोटा, बाघमारा के राजगंज, बलियापुर के रघुनाथपुर, निरसा के निरसाचट्टी, कलियासोल के उरमा, टुंडी के पुरनाडीह और लटानी में पैक्स चालू हालत में हैं।
अभी तक किसी राइस मिल का बिल नहीं मिला है। जिस किसी बकाया है वो आकर मिले और अपना बिल जमा करें। बकाया भुगतान दिलवाने का पूरा प्रयास किया जाएगा।
-भोगेंद्र ठाकुर, जिला प्रबंधन, एसएफसी
क्या कहते हैं संचालक
राइस मिल संकट के दौर से चल रहे हैं। वर्ष 2011-12 से अभी तक मिलिंग, लोडिंग, अनलोडिंग व ट्रांसपोर्टिंग के खर्च का भुगतान सरकार से नहीं हुआ है। इससे मिल को चलाने में मुश्किल आ रही है।
-बलराम अग्रवाल, राइस मिल संचालक

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