ऑनलाइन पढ़ाई ने बजा दी खतरे की घंटी, बच्चों की आंंखों को लेकर माता-पिता चिंतित Dhanbad News

Screen Time अगर बच्चे या किशोर छह या सात घंटे से ज्यादा स्क्रीन पर रहते हैं तो उन पर मनोवैज्ञानिक असर हो सकता है। सामान्य तौर पर नॉर्मल अटेंशन 20 से 30 मिनट होता है।

By MritunjayEdited By: Publish:Tue, 28 Apr 2020 02:28 PM (IST) Updated:Tue, 28 Apr 2020 03:06 PM (IST)
ऑनलाइन पढ़ाई ने बजा दी खतरे की घंटी, बच्चों की आंंखों को लेकर माता-पिता चिंतित Dhanbad News
ऑनलाइन पढ़ाई ने बजा दी खतरे की घंटी, बच्चों की आंंखों को लेकर माता-पिता चिंतित Dhanbad News

धनबाद, जेएनएन। लॉकडाउन के दौरान बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई को लेकर कोयलानगर निवासी राजकुमार सिंह खुश हैं कि स्कूल बंद होने पर भी बेटे की पढ़ाई हो रही है। उन्हें यह भी चिंता सता रही है कि बच्चे को चार-पांच घंटे मोबाइल लेकर बैठना पड़ता है। इसके बाद वो टीवी भी देखता है। तो उसका स्क्रीन टाइम बढ़ गया है। 

इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि स्कूल कब से खुलेंगे और नया सिलेबस कब से शुरू होगा।

ऑनलाइन क्लासेज देकर बच्चों का नया सिलेबस पढ़ाना स्कूलों ने शुरू कर दिया है। स्कूलों का कहना है कि ऑनलाइन क्लासेज में जो सिलेबस कराया गया है वो बाद में नहीं दोहराया जाएगा। कक्षाएं सुबह 9 बजे से शुरू हो जाती है जो चार पांच घंटे चलती हैं। प्रत्येक विषय की कक्षा 40 से 45 मिनट तक चलती है। प्रत्येक कक्षा के बाद 15 मिनट का ब्रेक दिया जाता है। बता दें कि जिले में निबंधित स्कूलों की संख्या करीब 61 है। इनमें से महज 10 से 12 स्कूलों में ही ऑनलाइन पढ़ाई कराई जा रही है। 

क्या कहते है मनोरोग विशेषज्ञ 

धनबाद के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. संजय कुमार कहते हैं कि अगर बच्चे या किशोर छह या सात घंटे से ज्यादा स्क्रीन पर रहते हैं, तो उन पर मनोवैज्ञानिक असर हो सकता है। इससे बच्चों में आत्मसंयम की कमी, जिज्ञासा में कमी, भावनात्मक स्थिरता ना होना, ध्यान केंद्रित नहीं कर पाना जैसी समस्याएं हो सकती हैं। उन्होंने बताया कि ये सभी बातें इस बात पर भी निर्भर करता है कि वो स्क्रीन पर क्या देख रहे हैं। डॉ. संजय कहते हैं कि ये समझना भी जरूरी है कि ऑनलाइन क्लास में जो पढ़ाया जा रहा है, बच्चे उसे कितना समझ पा रहे हैं। सामान्य तौर पर नॉर्मल अटेंशन 20 से 30 मिनट होता है यानी कोई भी व्यक्ति इतनी ही देर तक काम पर अच्छी तरह फोकस कर सकता है। उन्होंने बताया कि यह सीमा अधिक से अधिक 40 मिनट हो सकती है। इसके बाद ध्यान भटकना शुरू हो जाता है।  

क्या होता है स्क्रीन टाइम 

डाक्टर कहते हैं कि बच्चों को लंबे समय तक मोबाइल या लैपटॉप के संपर्क में रहने से मानसिक और शारीरिक तौर पर असर हो सकता है। स्क्रीन टाइम का मतलब होता है कि बच्चा 24 घंटा में कितने घंटे मोबाइल टीवी लैपटॉप और टैबलेट जैसे गैजेट का इस्तेमाल करता है। 18 महीने से कम उम्र के बच्चे स्क्रीन का इस्तेमाल न करें। 18 से 24 महीने के बच्चे को माता पिता उच्च गुणवत्ता वाले प्रोग्राम ही दिखाएं। दो से पांच साल के बच्चे एक घंटे से ज्यादा स्क्रीन का इस्तेमाल न करें। 

ऑनलाइन उलझन अधिक समाधान कम  ऑनलाइन पढ़ाई में उलझन अधिक और समाधान कम। अधिकांश स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान स्मार्टफोन पर वाट्स एप, जूम और स्कूल का एप स्कुल ट्री को माध्यम बनाया गया है।  शिक्षक से एकतरफा संवाद होता है। बच्चों को होमवर्क तो भेज दिया जा रहा है, लेकिन समाधान का तरीका बताने की कोई व्यवस्था नहीं है।  कुछ स्कूल ऐसे भी हैं, जहां जूम एप के माध्यम से लाइव क्लास चलाया जा रहा है और बच्चों को उनके सवालों का जवाब भी दिया जा रहा। लेकिन ऐसे स्कूलों की संख्या कम है।  नए सत्र में किताबें नहीं होने के कारण अभिभावक भी अपने बच्चों को सहयोग नहंी कर पा रहे हैं। बच्चों का होमवर्क पूरा नहीं हो पा रहा है।

हीरापुर के रहने वाले डीएवी स्कूल के छात्र आयुष ने बताया कि ऑनलाइन व्यवस्था हमारे लिए नई है। लेकिन इसे शुरू करने से पहले न तो नई कक्षा की किताबें खरीदी और न ही पाठयक्रम के बारे में कुछ पता है। इस दौरान ऑनलाइन पढ़ाई शुरू हो गई। स्कूल ट्री के जरिए हर रोज ऑनलाइन क्लास कर रहे हैं। होमवर्क दिया जा रहा है। लेकिन समाधान पूछने की गुंजाइश बहुत कम है। आयुष ने बताया कि घर में न तो लैपटॉप की है और न ही अतिरिक्त स्मार्टफोन है। लिहाजा पापा-मम्मी के फोन से काम चलाने की मजबूरी है।

ऑनलाइन क्लास एक वैकल्पिक व्यवस्था है। इसमें कई तरह की परेशानियां आ रही है। समय पर बच्चे ऑनलाइन नहीं जुड़ पा रहे है। नेटवर्क की समस्या है। बच्चों को शिक्षक जो पढ़ा रहे हैं वह उन्हें कितना समझ में आ रहा है, इसका ठीक ढंग से पता नहीं चल पा रहा है। स्कूल में चलने वाली कक्षाओं में सवाल-जवाब का विकल्प खुला रहता है ऑनलाइन में यह सुविधा नहीं के बराबर है। समस्याएं है पर पढ़ाई भी जरूरी है। 

-आर के सिंह, प्रभारी प्राचार्य डीएवी स्कूल कोयलानगर धनबाद 

ऑनलाइन क्लास और स्कूल के क्लास में काफी अंतर है। चूंकि बच्चों की पढ़ाई अवरूद्ध न हो इसके लिए यह व्यवस्था शुरू की गई है। होमवर्क के दौरान बच्चों के समक्ष कई तरह के सवाल है। बच्चे भी सवाल पूछ भी रहे है लेकिन उन्हें बेहतर ढंग से समझाने में परेशानी है। असमय सीमा, बच्चों की संख्या और कई कारणों के वजह से सभी बच्चों के सवाल का जवाब देने में परेशानी हो रही है। वैसे विद्यालय प्रयास कर रहा है कि उनके सवालों का जवाब दे सके। 

- मनीष कुमार झा, प्रधानाध्यापक केंद्रीय विद्यालय   

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