औंधे मुंह गिरा प्रखंड प्रमुख के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव, उठापटक की राजनीति पर लगा विराम

उप प्रमुख के खिलाफ कैलाश महतो ने अविश्वास प्रस्ताव लाया था। प्रस्ताव के खिलाफ रुपेश पासवान के समर्थन में पांच व कैलाश महतो के समर्थन में सात सदस्य ही मौजूद थे।

By mritunjayEdited By: Publish:Tue, 12 Feb 2019 11:23 AM (IST) Updated:Tue, 12 Feb 2019 11:23 AM (IST)
औंधे मुंह गिरा प्रखंड प्रमुख के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव, उठापटक की राजनीति पर लगा विराम
औंधे मुंह गिरा प्रखंड प्रमुख के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव, उठापटक की राजनीति पर लगा विराम

धनबाद, जेएनएन।जिला परिषद के चेयरमैन के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की देखा-देखी जो अविश्वास प्रस्ताव धनबाद प्रखंड प्रमुख के खिलाफ लाया गया था वह भी ध्वस्त हो गया। धनबाद प्रखंड प्रमुख भानु प्रताप सिंह व उप प्रमुख रेणुका देवी के खिलाफ लाया गया अविश्वास प्रस्ताव औंधे मुंह गिरा। सोमवार को तय समय पर अविश्वास प्रस्ताव में भाग लेने को पर्याप्त संख्या में पंचायत समिति सदस्य उपस्थित भी नहीं हो पाए। लिहाजा पीठासीन पदाधिकारी सह एसडीएम राज महेश्वरम प्रस्ताव को खारिज कर दिया। पंचायत समिति की बैठक में प्रखंड प्रमुख भानु प्रताप सिंह व उप प्रमुख रेणुका देवी भी मौजूद नहीं थे। 

बता दें कि प्रमुख के खिलाफ पंसस रुपेश कुमार पासवान व उप प्रमुख के खिलाफ कैलाश महतो ने कार्य में लापरवाही बरतने, समय पर बैठक नहीं करने व मनमाना निर्णय लेने का आरोप लगाते हुए अविश्वास प्रस्ताव लाया था। प्रस्ताव के खिलाफ रुपेश पासवान के समर्थन में पांच व कैलाश महतो के समर्थन में सात सदस्य ही मौजूद थे। अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के लिए बैठक को 16 में 13 सदस्यों को मौजूद रहना था। कोरम पूरा नहीं होने के कारण एसडीओ राज महेश्वरम व समिति के सचिव सह बीडीओ उदय रजक ने बैठक स्थगित कर दी।

जीत पर की आतिशबाजीः बैठक के बाद दोपहर को प्रखंड कार्यालय पहुंचे प्रमुख भानु प्रताप ने समर्थकों के साथ जीत का जश्न मनाया। समर्थकों ने फूल माला से उनका स्वागत किया व एक-दूसरे को मिठाई खिलाई। इस दौरान जमकर आतिशबाजी भी की गई। इस दौरान प्रमुख ने कहा कि विकास विरोधियों ने उनके खिलाफ साजिश रची थी जो नाकाम रही। वे और अधिक ऊर्जा से जनहित के कार्यों को गति देंगे।

कमजोर पड़ी गांव की राजनीति में उबालः पहले जिला परिषद के चेयरमैन रॉबिन गोराई और अब धनबाद प्रखंड प्रमुख भानू प्रताप सिंह के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव गिरने के बाद गांव-पंचायत की राजनीति में उबाल शांत हो गई है। अगर प्रस्ताव पास होता तो दूसरे प्रखंडों में भी प्रमुखों के खिलाफ बगावत तेज हो सकती थी। 

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