बेमौसम बारिश ने बढ़ाई किसानों की चिंता; सरकार व प्रशासन से भी स्थानीय कृषकों को नहीं मिल रहा लाभ Dhanbad News
लॉकडाउन के दौरान साग-सब्जियां काफी सस्ती रही। इनकी कम दर ने आम शहरियों को जहां काफी राहत दी वहीं किसानों की हालत बिगाड़ दी। इधर बेमौसम बरसात से नकद फसल बर्बाद हो गईं।
धनबाद, जेएनएन। आशंका थी कि लॉक डाउन से खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ेंगी। पर अभी तक ऐसा कुछ नहीं हुआ। अनाज व अन्य खाद्य वस्तुओं की कीमतों पर तो सरकार व प्रशासन की शुरू से ही निगाह रही। हर सप्ताह दर निर्धारित किया जाता रहा जिससे वे नियंत्रण में रहे। वहीं साग-सब्जियां भी काफी सस्ती रही। इनकी कम दर ने आम शहरियों को जहां काफी राहत दी, वहीं किसानों की हालत बिगाड़ दी। खासताैर पर वे छोटे किसान जो आसपास के गांवों रहते हैं।
ये किसान स्वयं साग-सब्जियां उगाते हैं और बाजार लाकर बेचते हैं। मूल बाजारों से अलग खुले मैदानों की कड़ी धूप और कम समय में व्यापार कर तय समय से पहले घर पहुंचने की जल्दबाजी ने तो उन्हें उत्पादों को औने-पाैने दाम में बेचने को विवश किया ही, रही-सही कसर बेमौसम बारिश व ओलावृष्टि ने पूरी कर दी। ढांगी पहाड़ की तलहटी में बसे नयाडीह के किसानों ने बताई कोरोना संकट से हुई बर्बादी की व्यथा।
नकद फसल पर कोई बीमा नहीं : कृषक राजेश महतो कहते हैं कि नकद फसल बर्बाद हो गई। इस पर कोई बीमा कवर भी किसानों को नहीं मिलने वाला है। बीज से दवा तक सबकुछ हमें अपने खर्च पर करना पड़ता है। एक किसान मित्र इस क्षेत्र के लिए बनाया गया है लेकिन उससे कभी कोई मदद नहीं मिली। बेमाैसम बारिश और ओला वृष्टि के कारण फसल बर्बाद हो गई है। इससे आने वाले समय में साग-सब्जियों की कीमतें बढ़ेंगी, लेकिन इसका लाभ हमें नहीं मिलेगा। कारण कि हमारी फसल मारी गई है। स्थानीय साग-सब्जी की आपूर्ति बाजार में कम होगी। बाहरी साग-सब्जियों पर निर्भरता बढ़ेगी। किसानों को नुकसान हुआ है।
आधे उत्पाद खेतों में ही बर्बाद हो रहे : नयाडीह के किसान सुरेश महतो ने बताया कि पहले दिन भर साग-सब्जी बेचते थे। जितना लेकर जाते थे सब बिक जाता था। अब कोशिश रहती है कि दो बजे तक घर पहुंच जाएं। रास्ते में भी पुलिस से पाला न पड़े। लिहाजा 12 बजे तक ही दुकान उठा लेना पड़ता है। इससे आधी साग-सब्जी ही बिक पाती है। जितनी फसल लगाए थे उससे काफी उत्पादन होता है, लेकिन आधा ही लेकर जाते हैं। सुट्टी पेड़ों में ही सूख गए। अन्य फसल भी खेत में ही बर्बाद हो रहे हैं। इसे देखनेवाला कोई नहीं है। पहले स्थानीय साग-सब्जी की कीमत चलानी से अधिक होती थी। आजकर उल्टा हो गया है। भंडारण की सुविधा नहीं होने की वजह से औने-पाैने कीमत में बेच आते हैं।
लॉक डाउन ने बर्बाद कर दिया : किसान नमन महतो के मुताबिक, पहले एक व्यक्ति हटिया में सामान बेचता था और एक कॉलोनियों में, या एक लौट कर खेती करता था। अब छ: बजे जाइये और 12 बजे लौटना होता है। किराए का वाहन मिलेगा नहीं सो दोनों व्यक्ति को हटिया में ही रहना होता है। हर तरफ से नुकसान हो रहा है। लागत भी नहीं निकल रहा। 400-450 रुपये का 100 ग्राम बीज मिलता है। दवा, खेत तैयार करने और पटाने में लगी मेहनत अलग से। सब बेकार हो रहा है। मेरी तरह अधिकतर किसान कर्जदार हो गए हैं। सरकार को हम जैसे किसानों के लिए भी कोई योजना लानी चाहिए।
आधी कीमत भी नहीं मिल रही : युवा कृषक विनोद कुमार महतो बताते हैं कि इस सीजन में जो खीरा 40 रुपये किलो बिकने चाहिए वह 10 से 15 रुपये बेच रहे हैं। 50 की भिंडी 30 में, 60 का झींगा-नेनुआ 25-30 रुपये किलो बेच कर आए। टमाटर और करेला का हाल तो सबसे बुरा रहा। 20 रुपये से कीमत ऊपर ही नहीं उठा। यही हाल बरबट्टी, कद्दू, कोंहरा व साग की फसल का भी है। ऐसा भी हुआ कि बाजार से साग बच गया तो बकरियों को खिला दिया गया। रखकर करें भी तो क्या खेत में बर्बाद हो रहे हैं। सूखने से बचा लें तो बारिश और ओला गिरने से बर्बाद हो रहे हैं। इस वर्ष तो हम कहीं के नहीं रहे।