धनबाद के लल्लू ने तब विवादित ढांचे पर फहराया था भगवा झंडा, अब लॉकडाउन के कारण नींव पूजन का साक्षी नहीं बन पाने का मलाल

विवादित ढांचा ध्वस्त करने से पहले लल्लू तिवारी उसपर चढ़ गए थे एवं भगवा झंडा फहराया। तब वह तस्वीर एक पत्रिका में प्रकाशन हुई थी। उसी के आधार पर धनबाद में लल्लू पर केस हुआ था।

By Sagar SinghEdited By: Publish:Sun, 02 Aug 2020 09:35 PM (IST) Updated:Mon, 03 Aug 2020 02:04 PM (IST)
धनबाद के लल्लू ने तब विवादित ढांचे पर फहराया था भगवा झंडा, अब लॉकडाउन के कारण नींव पूजन का साक्षी नहीं बन पाने का मलाल
धनबाद के लल्लू ने तब विवादित ढांचे पर फहराया था भगवा झंडा, अब लॉकडाउन के कारण नींव पूजन का साक्षी नहीं बन पाने का मलाल

धनबाद, जेएनएन। हीरापुर माडा कॉलाेनी की एक संकरी गली में एक किराना दुकान पर लल्लू तिवारी (रंजीत कुमार तिवारी) व्यवसाय में तल्लीन हैं। तभी छह-सात वर्ष का एक बच्चा वहां से अपने पिता के साथ गुजरते हुए जाेर से नारा लगाता है- जय श्री राम। प्रत्युत्तर में लल्लू तिवारी भी बाेल उठते हैं- जय श्री राम। तिवारी का यह परिचय अनायास ही नहीं है। वे विवादित ढांचा विध्वंस के पाेस्टर ब्वाय रह चुके हैं। अब जबकि राम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर के नींव पूजन की तिथि निकट आ चुकी है, तिवारी बेचैन हैं कि वे इस समाराेह में शरीक हाेने अयाेध्या नहीं जा सकते। काेराेना वायरस के कारण लगे लॉकडाउन के कारण वे बेबस हैं।

विवादित ढांचा के नजदीक एक दीवार फादने की जुगत में कारसेवकों के बीच लल्लू। (साभार : लल्लू तिवारी)

मस्जिद ध्वस्त करने से पहले फहराया था झंडा : लल्लू तिवारी तब सुर्खियाें में आ गए थे जब विवादित ढांचा पर चढ़कर भगवा झंडा फहराते उनकी तस्वीर एक पत्रिका में छपी थी। इसके बाद उनकी तलाश सरगर्मी से हाेने लगी। ढांचा ध्वस्त हाेने के बाद सरकार ने भीड़ हटाने के लिए विशेष ट्रेनें चलाईं। वे उसी ट्रेन से धनबाद लाैटे ताे बाहर कर्फ्यू लग चुका था। बचते-बचाते अपने मुहल्ले के करीब आए ताे पता चला कि उनकी शिनाख्त हाे चुकी है। पुलिस घर काे घेरे हुए है। उनके संदेह में उनके बड़े भाई दिलीप तिवारी काे हिरासत में ले लिया गया है। लिहाजा वे उल्टे पांव भागे।

लाैटने पर एक सप्ताह श्मशान में साेए : तिवारी की यादाें में उन दिनाें की एक-एक घटना आज भी ताजा है। वे बताते हैं कि पुलिस से बचने के लिए उन्हें लगभग एक सप्ताह तक हीरापुर श्मशान में साेना पड़ा। उनके साथ ही पार्क मार्केट के प्रकाश सिंह चाैधरी भी अयाेध्या गए थे। कुछ दिन बाद वे भी लाैटे ताे श्मशान पहुंचे। उनके ब़े भाई विजय सिंह चाैधरी ने देवघर के सिकटिया स्थित अपनी ससुराल में दाेनाें के ठहरने की व्यवस्था कराई। लगभग तीन महीने बाद जब सबकुछ शांत हुआ ताे वे लाैटे। हालांकि उनके नाम पर मुकदमा हाे चुका था। लगभग 18 वर्ष मुकदमा लड़ने के बाद कुछ महीने पहले उसे निरस्त किया गया।

काशी से पैदल पहुंचे अयाेध्या, लाैटते वक्त ट्रेन पर हुआ पथराव : तिवारी बताते हैं कि ट्रेन से वे साथियाें के साथ वाराणसी स्टेशन पर उतरे ताे वहीं कई लाेगाें काे गिरफ्तार किया गया। बचते-बचाते वे लाेग दीवाल फांद कर भागे। वहां से पैदल ही अयाेध्या काे रवाना हुए। रास्ते में लाेग चाय, नाश्ता, खाना खिलाते, रात हाेने पर अपने घर भी ठहराते थे। वही बताते कि किधर पुलिस है किधर नहीं। खेत-खलिहान होते हुए उनका जत्था तीसरे दिन अयोध्या पहुंचा। हालांकि कारसेवा की तिथि काे अभी 10 दिन बाकी था। सरयू किनारे कारसेवक जमा हुए थे। वहीं उन्हें रस्सी से ऊपर चढ़ने और उतरकर भागने का प्रशिक्षण मिला। हालांकि वापसी वैसी सुखद नहीं रही। अल्पसंख्यक बहुल इलाकाें में कई जगह ट्रेन पर पथराव हुआ। वहां लाेगाें ने काला झंडा फहरा रखा था।

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