गर्म पानी के कुंडों के नीचे छिपा हीलियम का अकूत भंडार, खोज पर जियोथर्मल जर्नल लंदन की मुहर

Helium Reserve In India भारत में हीलियम और आर्गन गैस का अकूत भंडार है। इसका खोज कर एनआइटी दुर्गापुर के विज्ञानियों ने दावा किया है। यह भंडार देश के गर्म कुंडों के नीच स्थित है। इसका दोहन कर देश हीलिमय और आर्गन गैस के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकता है।

By MritunjayEdited By: Publish:Mon, 10 Jan 2022 07:19 PM (IST) Updated:Mon, 10 Jan 2022 07:19 PM (IST)
गर्म पानी के कुंडों के नीचे छिपा हीलियम का अकूत भंडार, खोज पर जियोथर्मल जर्नल लंदन की मुहर
हीलियम की खोज करते एनआइटी दुर्गापुर के विज्ञानी दल के सदस्य ( फोटो साैजन्य)।

हृदयानंद गिरि, दुर्गापुर। Helium Reserve In India हीलियम गैस के मामले में हमारा देश आत्मनिर्भर नहीं है। भारत में प्रतिवर्ष करीब 400 करोड़ रुपये की इस गैस का आयात अमेरिका से होता है। अंतरिक्ष व स्वास्थ्य क्षेत्र में इसकी बढ़ती मांग से आयात और बढ़ेगा। यह तब है जब हमारे देश मेंभूगर्भ में हीलियम और आर्गन गैस का अकूत भंडार है। यह गैस देश में मौजूद गर्म कुंडों के नीचे मौजूद हैं। बंगाल के दुर्गापुर स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी (एनआइटी) के भौतिक विज्ञान विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. हीरक चौधरी व उनकी टीम ने करीब दस वर्ष के गहन शोध के बाद यह निष्कर्ष निकाला है। उनका शोध जियोथर्मल जर्नल लंदन में व अरेबियन जर्नल जियोसाइंस में प्रकाशित हुआ है।

देश में करीब 340 गर्मकुंड

डा. हीरक चौधरी ने बताया कि देश में करीब 340 गर्म कुंड हैं, वहां से साल भर गर्म पानी निकलता है। इन कुंड के नीचे से पाइप के माध्यम से हीलियम व आर्गन गैस निकाली जा सकती है। इसके लिए 500 से 1,000 मीटर की गहराई तक पाइप डालना होगा। इतनी गहराई में कुंड के नीचे यह गैस होती हैं। बंगाल के बीरभूम स्थित वक्रेश्वर, अंडमान निकोबार के बाराटांड़, दुमका के तातलोई व जम्मू के राजौरी स्थित तप्ता पानी गर्म कुंड का अध्ययन किया गया। इसके लिए वहीं प्रयोगशालाएं भी स्थापित की गईं। कई परीक्षणों के बाद पता चला कि भूगर्भ से निकाले गए हवा के नमूनों में हीलियम तीन फीसद, आर्गन एक से दो फीसद, नाइट्रोजन 92 फीसद व शेष आक्सीजन व मीथेन गैस हैं। नाभिकीय प्रक्रियाओं के कारण बनी गैसों से इन कुंडों से गर्म पानी निकलता है।

नाभिकीय प्रक्रिया से बनती हीलियम

हीलियम व आर्गन गैस अक्रिय गैसें हैं। ये किसी से अभिक्रिया नहीं करतीं। हीलियम के अणु पृथ्वी के वातावरण में नहीं टिकते, अंतरिक्ष में पलायन कर जाते हैं। भूगर्भ में मौजूद रेडियोएक्टिव तत्वों मसलन यूरेनियम, थोरियम व पोटेशियम की नाभिकीय प्रक्रिया से यह बनती रहती है। आर्गन की तुलना में हीलियम महंगी गैस है।

एक गर्मकुंड से हर माह 300 सिलेंडर

भारत हर वर्ष 65.66 मिलियन क्यूबिक मीटर हीलियम का प्रयोग करता है। जो दुनिया में प्रयुक्त हो रही हीलियम का 2.5 प्रतिशत है। हीलियम व आर्गन को भूगर्भ से निकाली गई गैसों के मिश्रण से प्रेशर स्विंग एडसोब्र्शन विधि से अलग कर लिया जाता है। देश में मौजूद डेढ़ सौ गर्म कुंड से इन गैसों का उत्पादन हो सकता है। अध्ययन में पता चला है कि वक्रेश्वर कुंड से हर माह 300 सिलेंडर हीलियम व आर्गन का उत्पादन हो सकता है। एक सिलिंडर में छह मीटर क्यूब गैस होती है। शोध में डा. हीरक चौधरी के साथ सिदो कान्हू विश्वविद्यालय के भौतिक विज्ञान के प्रो. चिरंजीव वर्मन, क्वांटम यूनिवर्सिटी उत्तराखंड के चिरंजीत माजी, एनआइटी की शोध छात्रा कंकना व सरोज खुंटिया शामिल रहे।

यहां काम आती हीलियम

अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले राकेट, कृत्रिम श्वसन प्रणाली, चिकिस्ता विज्ञान के अन्य क्षेत्र, मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एमआरआइ) मशीन समेत कई क्षेत्रों में हीलियम गैस का उपयोग होता है। विज्ञानियों द्वारा खोजी गई विधि में भूगर्भ से निकली गैसों में मौजूद हीलियम व आर्गन को प्रेशर स्विंग एडसोब्र्शन विधि से अलग किया जा सकता है।

गर्म कुंड से हीलियम एवं आर्गन गैस प्राप्त हो सकती है। इस दिशा में सटीक प्रयास से भारत हीलियम उत्पादन में आत्मनिर्भर बन सकेगा। अधिकांश गर्म कुंड ग्रामीण क्षेत्र में है, वहां हीलियम उत्पादन का काम होगा तो क्षेत्र का अर्थ तंत्र सुधरेगा।

-डा. हीरक चौधरी, एसोसिएट प्रोफेसर, नेशनल इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी, दुर्गापुर

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