पेंटिग में दिखती मिथिला की संस्कृति व परंपरा

मिथिला के पेंटिग की लोकप्रियता सात समंदर पार तक पहुंची हुई है। लेकिन अपने देश में इसको लोकप्रिय बनाने की चुनौती अभी भी बरकरार है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 18 Dec 2019 04:37 PM (IST) Updated:Wed, 18 Dec 2019 04:37 PM (IST)
पेंटिग में दिखती मिथिला की संस्कृति व परंपरा
पेंटिग में दिखती मिथिला की संस्कृति व परंपरा

देवघर : मिथिला पेंटिग का नाम आते ही मिथिलांचल नजरों की सामने जीवंत हो जाता है। यह वही मिथिला है, जिसका संबंध माता जानकी से भी है। कहा जाता है कि मईया सीता का घर भी मिथिला में ही था। यहां के पेंटिग की लोकप्रियता सात समंदर पार तक पहुंची हुई है। लेकिन अपने देश में इसको लोकप्रिय बनाने की चुनौती अभी भी बरकरार है। मिथिला महिला मंच ने इस चुनौती का स्वीकार करते हुए इसे आगे बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील है। मंच की ओर से महिलाओं को मिथिला पेंटिग का निश्शुल्क प्रशिक्षण दिया जा रहा है। चार दिन तक चलने वाले इस प्रशिक्षण में महिलाओं की संख्या बढ़ते जा रही है। दूसरे दिन दो और महिलाएं इस शिविर से जुड़ गईं। मंच की सदस्य रूपाश्री ने कहा कि हाल के दिनों में महिलाओं खासतौर से नई पीढ़ी का रूझान मिथिला पेंटिग के प्रति बढ़ा है। इसे देखते हुई ही मंच की सदस्य व प्रशिक्षक पुनीता मिश्रा ने अगले वर्ष 14 जनवरी से ऑनलाइन क्लासेस शुरू करने का निर्णय लिया है। वह खुद भी आने वाले दिनों में मिथिला स्टूडियों की शुरूआत करने वाली है, जहां मिथिला की परंपरागत चीजें रहेंगी। साथ ही स्टूडियों के माध्यम से मिथिला पेंटिग को नया बाजार उपलब्ध कराया जाएगा। मिथिला पेंटिग की ऑनलाइन खरीदारी खूब होती है। इसे घर बैठे तैयार किया जा सकता है। मिथिला पेंटिग के लिए बहुत सामग्री की भी जरूरत नहीं पड़ती है और सबसे खास बात कि हरेक मिथिला पेंटिग वहां की संस्कृति व परंपरा के अलावा लोकप्रिय चीजों जैसे मछली, मखाना, पान-सुपाड़ी व सीता विवाह की झलक अवश्य दिखाई देती है।

वर्ष 1934 में यह कला आई थी सामने : महिला मंच की सदस्यों की माने तो मिथिला पेंटिग का इतिहास बड़ा ही रोचक है। वर्ष 1934 में मिथिला में आए भयानक भूकंप के बाद यह कला लोगों के सामने आई थी। भूकंप के बाद अधिसंख्य घर तबाह हो गए थे। तबाही से उबरने के लिए मिथिला की महिलाएं जब अपने घरों को सजाने, संवारने में जुटी तो इस अद्भूत कला के दर्शन हुए। ब्रिटिश हुकूमत के नुमाइंदों की जब इस पर नजर पड़ी तो उनको भी आश्चर्य हुआ और अंग्रेज इस कला व कई कलाकारों को अपने देश लेकर चले गए। कहा जाता है कि आज भी विदेशों में बड़ी संख्या में मिथिला पेंटिग के कद्रदान मौजूद हैं। जरूरत है तो केवल लोगों को इस बात को समझाने की और मिथिला महिला मंच इस दिशा में जुट गया है। मौके पर किरण बाला झा, चेतना भारती, गुड्डी झा, रचना मिश्रा, पापिया, बन्नो, रिचा झा, अनुभा दास, प्रख्या दास, अनिता केशरी व माया केशरी आदि मौजूद थीं।

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